मिनर्वा मिल्स बनाम भारत सरकार
मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ(1980) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि अनुच्छेद 368 का खंड (4) विधिसम्मत नहीं (invalid) है क्योंकि यह न्यायिक पुनर्विलोकन को समाप्त करने के लिए पारित किया गया था। न्यायिक पुनर्विलोकन का सिद्धांत संविधान का आधारभूत लक्षण है। अत एव 42 वा संविधान अधिनियम संशोधन 1976 में हुआ इस संशोधन को संविधान का मिनी संविधान भी कहा जाता है । इन संशोधन में तीन नए शब्द जोड़े गए समाजवादी , पंथ-निरपेक्ष अखंडता , संविधान के भाग 4 में 51क जोड़ा गया जिसमें नागरिकों के कर्तव्य को जोड़ा गया , राष्ट्रपति केबिनेट की सलाह के लिए बाध्य किया गया , प्रशासनिक अधिकरणों की व्यवस्था की गई , 1971 की जनगणना के आधार पर लोकसभा एवम राज्य विधानसभा की सीटो को निश्चित किया गया , संवैधानिक संशोधन को न्यायिक जांच से बाहर किया गया , न्यायिक समीक्षा के शक्ति में कटौती , लोकसभा एवम विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष किया गया , DPSP के कार्यन्वयन हेतु बनाई गई विधियों को मूल अधिकार का उलंघन है इस आधार पर अवैध घोषित नही किया जाएगा के उक्त प्रावधान को असंवैधानिक बताते हुए निर्णय दिया गया कि संसद् संविधान के मौलिक ढांचें को नहीं बदल सकता। वामन राव बनाम भारत संघ (1981) वाद में न्यायलय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि आधारभूत लक्षण का सिद्धान्त 24-4-1973 को, अर्थात् केशवानंद भारती के निर्णय सुनाये जाने की तिथि, के बाद पारित होने वाले संविधान संशोधन अधिनियमों पर लागू होगा।
इन संशोधनों और विनिश्चयों का परिणाम यह हुआ कि –
- (१) मूल अधिकारों का संशोधन किया जा सकता है।
- (२) प्रत्येक मामले में न्यायालय यह विचार करेगा कि क्या मूल अधिकारों के संशोधन से संविधान के किसी आधारभूत लक्षण का निराकरण या विनाश या क्षय हो रहा है? यदि इसका उत्तर हाँ में है तो संशोधन उस विस्तार तक अविधिसंगत (invalid) होगा।
- (३) आधारभूत लक्षणों के आधार पर उन्हीं अधिनियमों को अविधिमान्य किया जा सकेगा जो 24-4-1973 के बाद पारित किये गए हैं।