मगही साहित्य

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मगही साहित्य से तात्पर्य उस लिखित साहित्य से है जो पाली मागधी, प्राकृत मागधी, अपभ्रंश मागधी अथवा आधुनिक मगही भाषा में लिखी गयी है। ‘सा मागधी मूलभाषा’ से यह बोध होता है कि आजीवक तीर्थंकर मक्खलि गोसाल, जिन महावीर और गौतम बुद्ध के समय मागधी ही मूल भाषा थी जिसका प्रचलन जन सामान्य अपने दैनंदिन जीवन में करते थे। मौर्यकाल में यह राज-काज की भाषा बनी क्योंकि अशोक के शिलालेखों पर उत्कीर्ण भाषा यही है। जैन, बौद्ध और सिद्धों के समस्त प्राचीन ग्रंथ, साहित्य एवं उपदेश मगही में ही लिपिबद्ध हुए हैं। भाषाविद् मानते हैं कि मागधी (मगही)[१] से ही सभी आर्य भाषाओं का विकास हुआ है।

मगही भाषा की प्राचीनता और क्षेत्र विस्तार

मगही शब्द की उत्पत्ति ‘मागधी’ से मानी गयी है -

मागधी > मागही > मगही

आदि व्याकरणाचार्य कच्चान ने मगही की प्राचीनता के संबंध में कहा है -

"सा मागधी मूलभाषा, नराया आदि कप्पिका।
ब्रह्मणा चस्सुतालापा सम्बुद्धा चापि भासि रे।।"

‘चूलवंश’ में भी मागधी को सभी भाषाओं का मूल भाषा कहा गया है -

"सब्बेसां मूल भाषाय मागधाय निरूक्तियां।"

मौद्गल्यायन, बुद्धघोष और नाट्याचार्य भरतमुनि ने भी मगही को आमजन की लोकप्रिय भाषा के रूप में स्वीकार किया है। संस्कृत नाटकों में आम आम लोगों की भाषा के रूप में मगही का ही प्रयोग हुआ है।

पश्चिमी भाषाविद् और भारतीय भाषाओं के प्रथम सर्वेक्षक जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (1851-1941) ने आधुनिक मगही के दो रुपों को स्वीकार किया है -

(क) पूर्वी मगही
(ख) शुद्ध मगही

पूर्वी मगही झारखंड राज्य के चतरा, हजारीबाग के दक्षिणपूर्व भाग, मानभूम एवं रांची के दक्षिण पूर्व भाग खरसावां तथा दक्षिण में उड़ीसा के मयुरभंज एवं बामड़ा तक बोली जाती है। पश्चिम बंगाल के मालदा जिले का पश्चिमी भाग भी पूर्वी मगही का क्षेत्र है।

शुद्ध मगही अपने क्षेत्र में बोली जाती है। यह पश्चिमी क्षेत्र में पटना, नालन्दा, गया, चतरा,हजारीबाग, मुंगेर, भागलपुर और बेगुसराय जिले में ही नहीं अपितु पूर्व क्षेत्र में रांची के दक्षिण भाग में, सिंहभूम के उत्तरी क्षेत्र में तथा सरायकेला एवं खरसावां के कुछ क्षेत्रों में मगही बोली जाती है।

भाषाविदों ने पूर्वी मगही तथा शुद्ध मगही के साथ ही मिश्रित मगही का एक रूप भी स्वीकार किया है। इसके अनुसार मिश्रित मगही का रुप वहां दिखाई पड़ता है जहां आदर्श मगही अपनी सीमा पर अन्य सहोदर भाषाओं, जैसे मैथिली और भोजपुरी से मिलकर सीमावर्ती बोलियों के रुप में व्यक्त होती है।

आधुनिक काल में मगही भाषा के अनेक रुप दिखाई पड़ते हैं। चूंकि मगही भाषा का क्षेत्र विस्तार बहुत ही व्यापक है, अतः स्थान भेद के कारण इसके रुप में भी कई भेद हो गए हैं। मगही भाषा के क्षेत्रीय भेदों का संकेत कृष्णदेव प्रसाद ने इस प्रकार से किया है -

(क) आदर्श-मगही;
(ख) शुद्ध-मगही;
(ग) टलहा मगही;
(घ) सोनतरिया मगही;
(च) जंगली मगही।[२]

भाषाशास्त्री भोलानाथ तिवारी की मान्यता है कि मगही का परिनिष्ठित रूप पुराने गया जिले में बोला जाता है। ग्रियर्सन[३] ने भी गया जिले की मगही को विशुद्ध मगही माना है।

ग्रियर्सन के भाषा-सर्वेक्षण के अनुसार ‘मगही’ भाषियों की संख्या लगभग 6,504,817 थी। लेकिन 2001 की जनगणना के अनुसार अब मगही भाषी लोगों की संख्या लगभग 1 करोड़ 30 लाख है। इसे प्रयोग में लेने तथा शुद्ध मगही बोलने वाली आबादी मुख्य रूप से बिहार राज्य के पटना, गया, औरंगाबाद, राजगीर, नवादा, नालंदा, जहानाबाद और अरवल के इलाकों में निवास करती है।

मगही (मागधी) साहित्य का इतिहास

  • मगही (मागधी) साहित्य का काल विभाजन

महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने मगही भाषा के विकासात्मक इतिहास को निम्न रूप में प्रस्तुत किया है -

1.पाली -
1.1 अशोक के पूर्व की मागधी - ई0 पू0 600 से 300 तक (अनुपलब्ध)
1.2 अशोक की मागधी - ई0 पू0 300 से 200 तक (सुलभ)
1.3 अशोक के पीछे की मागधी - ई0 पू0 200 से ई0 सन् 200 तक (दुर्लभ)
2.प्राकृत -
2.1 प्राकृत मागधी - 0 से 550 ई. तक (सुलभ)
3.अपभ्रंश -
3.1. अपभ्रंश मागधी - ई0 सन् 550 से 1200 ई. तक (अनुपलब्ध)
4.प्राचीन मगही - ई0 सन् 800 से 1200 तक (सुलभ)
5.मध्यकालीन मगही - ई0 सन् 1200 से 1600 तक (अनुपलब्ध)
6.आधुनिक मगही - ई0 सन् 1600 से . . . (जीवित)[४]

राहुल जी के अलावा भाषा-साहित्य के अन्य कई विद्वानों ने मगही का काल विभाजन किया है। कुछ साहित्येतिहासकारों ने तो पं. रामचंद्र शुक्ल के हिंदी साहित्य का काल विभाजन का अनुसरण करते हुए चारण काल, डा. श्रीकांत शास्त्री काल[५] जैसे मगही साहित्य काल की भी परिकल्पना कर ली है। जो न केवल ब्राह्मणवादी व मनुवादी साहित्यिक संकल्पना है बल्कि व्यक्तिगत महिमामंडन और अवैज्ञानिक भी है।[६] फिर भी अब तक हुए विभाजनों को समेकित करते हुए मगही साहित्य के काल को निम्नांकित तौर पर विभाजित किया जा सकता है -

  1. आदि पाली मगही (मागधी) काल
  2. प्राकृत मगही (मागधी) काल
  3. अपभ्रंश मगही (मागधी) काल
  4. प्राचीन मगही (मागधी) काल
  5. मध्यकालीन मगही (मागधी) काल
  6. आधुनिक मगही (मागधी) काल

आदि पाली मगही (मागधी) काल में मुख्यतः अशोक के पूर्व, समकालीन और परवर्ती समय का साहित्य है। अशोक के पूर्व और परवर्ती काल का मगही साहित्य अनुपलब्ध है परंतु अशोककालीन मगही साहित्य हमें शिलालेखों, गुहालेखों और मौर्यकालीन ग्रंथों में मिलता है।

प्राकृत मगही (मागधी) काल का साहित्य जैन और बौद्ध साहित्य है। सभी जैन आगम और बुद्ध वचन प्राकृत मगही भाषा में ही संग्रहित हुए हैं।

अपभ्रंश मगही (मागधी) काल का समय राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ई0 सन् 550 से 1200 ई. तक का है। दुर्भाग्य से इस काल का मगही साहित्य अनुपलब्ध है।

प्राचीन मगही (मागधी) काल का साहित्य अत्यंत समृद्ध है जिसका आरंभ आठवीं शताब्दी के सिद्ध कवियों की रचनाओं से होता है। इनमें सिद्ध कवि सरहपा सर्वप्रथम हैं जिनकी रचनाएं ‘दोहाकोष’ में संकलित और प्रकाशित हैं। इसका सम्पादन राहुल सांकृत्यायन ने किया है।

मध्यकालीन मगही (मागधी) काल में सिद्ध साहित्य की परम्परा को मध्यकाल के अनेक संत कवियों ने बरकरार रखा और मगही भाषा में उत्कृष्ट रचनाएं की। बाबा करमदास, बाबा सोहंगदास, बाबा हेमनाथ दास आदि इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय संत कवि हैं जिनकी रचनाएं हमें मगही में प्राप्त होती है।

आधुनिक मगही (मागधी) काल औपनिवेशिक समय में आरंभ होता है। इस काल में लोकभाषा और लोकसाहित्य सम्बन्धी अध्ययन के परिणामस्वरुप मगही के प्राचीन परम्परागत लोकगीतों, लोककथाओं, लोकनाट्यों, मुहावरों, कहावतों तथा पहेलियों का संग्रह कार्य हुआ। साथ ही मगही भाषा में आधुनिक और समकालीन समाज-परिवेश और जीवन संबंधी साहित्य, अर्थात् कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, एकांकी, ललित निबन्ध आदि की रचनाएं, पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं भाषा और साहित्य पर नवीन दृष्टि से अनुसंधान हुए तथा हो रहे हैं।

मगही भाषा-साहित्य

‘ए हैंडबुक ऑफ द कैथी कैरेक्टर’ (1881), ‘लैंग्वेज ऑफ मग्गहिया डोम्स’ (1887), अनंत प्रसाद बनर्जी-शास्त्री कृत ‘इवोल्यूशन ऑफ मगही’ (1922), हरप्रसाद शास्त्री कृत ‘मगधन लिटरेचर’ (1923), ‘द बर्थ ऑफ लोरिक’ (मगही) टेक्सट् (1929), प्रो. रामशंकर कृत ‘मगही’ (1958), प्रो. कपिलदेव सिंह कृत ‘मगही का आधुनिक साहित्य’ (1969), डा. युगेश्वर पांडेय कृत ‘मगही भाषा’ (1969), डा. श्रीकांत शास्त्री कृत ‘मगही शोध’ (1969), सम्पत्ति अर्याणी कृत ‘मगही भाषा और साहित्य’ (1976),रास बिहारी पांडेय कृत ‘मगही साहित्य व साहित्यकार’ (1976), रास बिहारी पांडेय कृत ‘मगही भाषा का इतिहास’ (1980), असीम मैत्रा कृत ‘मगही कल्चर: ए मोनोग्राफिक स्टडी’ (1983), डा. ब्रजमोहन पांडेय ‘नलिन’ कृत ‘मगही अर्थ विज्ञान: विश्लेषणात्मक निर्वचन’ (1982), ‘मगही भाषा निबंधावली (1984), राहुल सांकृत्यायन कृत ‘पाली साहित्य का इतिहास’ (1993), डा. राम प्रसाद सिंह कृत ‘मगही साहित्य का इतिहास’ (1998), डा. सत्येंद्र कुमार सिंह कृत ‘मगही साहित्य का इतिहास’ (2002), एसईआरटी, बिहार टेक्सट् बुक कमिटि, पटना का ‘मगही भासा आउ साहित्य के कथा’, सरयू प्रसाद कृत ‘मगही फोनोलॉजी: ए डिस्क्रीप्टिव स्टडी (2008), धनंजय श्रेत्रिय संपादित ‘मगही भाषा का इतिहास एवं इसकी दिशा और दशा’ (2012) और डा. लक्ष्मण प्रसाद कृत ‘मगही साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ (2014)।

मगही लोक साहित्य

डा. उमशंकर भट्टाचार्य कृत ‘मगही कहावत’ (1919), जयनाथ पति और महावीर सिंह कृत ‘मगही मुहावरा बुझौवल’ (1928), डा. विश्वनाथ प्रसाद कृत ‘मगही संस्कार गीत’ (1962), सम्पत्ति अर्याणी कृत ‘मगही लोक साहित्य’ (1965), डा. राम प्रसाद सिंह कृत ‘मगध की लोक कथाएं: अनुशीलन’ (1996), डा. राम प्रसाद सिंह कृत ‘मगही लोक गीत के संग्रह’ (1998), इनामुल हक कृत ‘मगही लोकगाथाओं का साहित्यिक अनुशीलन’ (2006) घमंडीदास कृत मगही रामायण आदि।

मगही गीत-काव्य

प्रबन्ध काव्य एवं महाकाव्य: जनहरिनाथ (हरिनाथ मिश्र) कृत ‘ललित भागवत’ और ‘ललित रामायण’ (1893), जवाहिर लाल कृत ‘मगही रामायण’ (), रामप्रसाद सिंह कृत ‘लोहा मरद’ (), योगेश्वर प्रसाद सिंह ‘योगेश’ कृत ‘गौतम’ (), योगेश पाठक कृत ‘जरासंध’ () आदि।

खण्ड काव्य: मिथिलेश प्रसाद ‘मिथिलेश’ कृत ‘रधिया’ (), रामप्रसाद सिंह कृत ‘सरहपाद’ () आदि।

मुक्तक गीत एवं काव्य: जौन क्रिश्चियन कृत ‘सत्य-शतक’ (1861), जगन्नाथ प्रसाद ‘किंकर’ कृत ‘मगही गीत संग्रह’ (1934), मुनक्का कुँअर कृत ‘मुनक्का कुँअर भजनावली’ (1934), श्रीनंदन शाली कृत ‘अप्पन गीत’, योगेश्वर प्रसाद ‘योगेश’ कृत ‘इँजोर’ (1946), रामनरेश प्रसाद वर्मा कृत ‘च्यवन’ (), स्वर्णकिरण कृत ‘जीवक’ (), ‘सुजाता’ (), सुरेश दूबे ‘सरस’ कृत ‘निहोरा’ (), कपिलदेव त्रिवेदी ‘देव’ कृत ‘मगही सनेस’ (1965), रामविलास रजकण कृत ‘वासंती’ (1965), रजनीगंधा’ (1968), ‘दूज के चान’ (1979), ‘पनसोखा (1979), योगेश्वर प्रसाद ‘योगेश’ कृत ‘लोहचुट्टी’ (1966), रामसिंहासन सिंह ‘विद्यार्थी’ कृत ‘जगरना’ (1967), रामपुकार सिंह राठौर कृत ‘औजन’ (), राम प्रसाद सिंह कृत ‘परस पल्लव’ (1977) डॉ राम सिंहासन सिंह कृत 'अँचरा के छाँव में'(2015) आदि।

मगही कथा (कहानी) साहित्य

तारकेश्वर भारती कृत ‘नैना काजर’, जितेन्द्र वत्स कृत ‘किरिया करम’, श्रीकान्त शास्त्री कृत ‘मगही कहानी सेंगरन’, राजेश्वर पाठक ‘राजेश’ कृत ‘नगरबहू’, लक्ष्मण प्रसाद कृत ‘कथा थउद’, रामनरेश प्रसाद वर्मा कृत ‘सेजियादान’, अभिमन्यु प्रसाद मौर्य कृत ‘कथा सरोवर’, अलखदेव प्रसाद अचल कृत ‘कथाकली’, सुरेश प्रदास निर्द्वेन्द्ध कृत ‘मुरगा बोल देलक’, राधाकृष्ण कृत ‘ए नेउर तू गंगा जा’, रामनन्दन कृत ‘लुट गेलिया’, ब्रजमोहन पाण्डेय ‘नलिन’ कृत ‘एक पर एक’, रामचन्द्र अदीप कृत ‘गमला में गाछ’ और ‘बिखरइत गुलपासा’, दयानंद प्रसाद ‘बटोही’ कृत ‘कफनखोर’, शिव प्रसाद लोहानी कृत ‘घोटाला घर’, रामविलास रजकण कृत ‘कथांकुर’, मिथिलेश कृत ‘कनकन सोरा’, मुद्रिका सिंह कृत ‘जोरन’ आदि।

मगही कथा (उपन्यास) साहित्य

मगही में प्रकाशित उपन्यासों की सूची इस प्रकार है - जयनाथ पति कृत ‘सुनीता’ (1927), ‘फूल बहादुर’ (1928) और गदहनीत (1937), डा. राम प्रसाद सिंह कृत ‘समस्या’ (1958), राजेन्द्र प्रसाद यौधेय कृत ‘बिसेसरा’ (1962), राम नन्दन कृत ‘आदमी आ देवता’ (1965), बाबूलाल मधुकर कृत ‘रमरतिया’ (1968), द्वारिका प्रसाद कृत ‘मोनामिम्मा’ (1969), चन्द्रशेखर शर्मा कृत ‘हाय रे उ दिन’ (), ‘सिद्धार्थ’ () और ‘साकल्य’ (), शशिभूषण उपाध्याय मधुकर कृत ‘सँवली’ (1977), श्रीकान्त शास्त्री कृत ‘गोदना’ (1978), उपमा दत्त कृत ‘पियक्कड़’ (), सत्येन्द्र जमालपुरी कृत ‘चुटकी भर सेनुर’ (1978), रामनरेश प्रसाद वर्मा कृत ‘अछरंग’ (1980), केदार ‘अजेय’ कृत ‘बस एक्के राह’ (1988), रामप्रसाद सिंह कृत ‘नरक-सरग-धरती’ (1992), रामविलास ‘रजकण’ कृत ‘धूमैल धोती’ (1995), डा. राम प्रसाद सिंह कृत ‘बराबर के तरहटी में’ (), ‘सरद राजकुमार’ () और ‘मेधा’ (), मुनिलाल सिन्हा ‘सीसम’ कृत ‘प्राणी महासंघ’ (1995), बाबूलाल मधुकर कृत ‘अलगंठवा’ (2001), आचार्य सच्चिदानन्द कृत ‘बबुआनी अइँठन छोड़ऽ’ (2004), परमेश्वरी सिंह ‘अनपढ़’ कृत ‘बाबा मटोखर दास’ (), मुनिलाल सिन्हा ‘सीसम’ कृत ‘गोचर के रंगे गोरू-गोरखियन के संग’ (), रामबाबू सिह ‘लमगोड़ा’ कृत ‘उनतीसवाँ व्यास’ () और ‘टुन-टुनमें-टुन’ (), परमेश्वरी सिंह ‘अनपढ़’ कृत ‘शालिस’ (2006), रामनारायण सिंह उर्फ पासर बाबू कृत ‘तारा’ (2011) और अश्विनी कुमार पंकज कृत ‘खाँटी किकटिया’ (2018)

मगही एकांकी-नाटक

बाबूलाल मधुकर कृत ‘नयका भोर’, हरिनन्दन किसलय कृत ‘अप्पन गाँव’, सिद्धार्थ शर्मा कृत ‘भगवान तोरे हाथ में’, बाबूराम सिंह ‘लमगोड़ा’ कृत ‘गन्धारी के सराप’, ‘बुज्झल दीया क मट्टी’, ‘कोसा’, अलखदेव प्रसाद अचल कृत ‘बदलाव’, केशव प्रसाद वर्मा कृत ‘सोना के सीता’, दिलीप कुमार कृत ‘बदलल समाज’, अभिमन्यु प्रसाद मौर्य कृत ‘प्रेम अइसन होव हे’, ‘पाँड़े जी के पतरा’, सत्येन्द्र प्रसाद सिंह कृत ‘अँचरवा के लाज’, छोटूराम शर्मा कृत ‘मगही के दू फूल’, केशव प्रसाद वर्मा कृत ‘कनहइया क दरद’, रामनन्दन कृत ‘कौमुदी महोत्सव’, रामनरेश मिश्र ‘हंस’ कृत ‘सुजाता’, रघुवीर प्रसाद समदर्शी कृत ‘भस्मासुर’, गोपाल रावत पिपासा कृत ‘आधी रात के बाद’, घमंडी राम कृत ‘सोहाग के भीख’ आदि।

मगही पत्र-पत्रिकाएं

मगध समाचार (अखौरी शिवनंदन प्रसाद, 1880), तरुण तपस्वी (श्रीकान्त शास्त्री, 1945-46), मागधी (श्रीकान्त शास्त्री, 1950), मगही (श्रीकान्त शास्त्री/शिवराम योगी, 1954-58), महान मगध (गोपाल मिश्र केसरी, 1955-56), बिहान (श्रीकान्त शास्त्री/डा. रामनंदन/सुरेश दुबे ‘सरस’, 1958-78), मगही सनेस (रामलखन शर्मा, 1965), मगही हुंकार (योगेन्द्र, 1966), सरहलोक (1967), सुजाता (बाबूलाल मधुकर, 1967), भोर (आशुतोष चौधरी/नंदकिशोर सिंह, 1968), सारथी (मथुरा प्रसाद नवीन/मिथिलेश, 1971), मगही लोक (रामप्रसाद सिंह, 1977-79), मगही समाचार (सतीश कुमार मिश्र, 1978), भोर (योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश/राम नगीना सिंह ‘मगहिया’, 1978), मगही समाज (रामप्रसाद सिंह, 1979-81), माँजर (बांके बिहारी ‘वियोगी’, 1980), कोंपल (जटाधारी मिश्र, 1979-80), मागधी (योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश, 1980), गौतम (श्यामनन्दन शास्त्री हंसराज, 1983), निरंजना (केसरी कुमार, 1983), पनसोखा (आशुतोष चौधरी, 1986), पाटलि (केशव प्रसाद वर्मा, 1989), कचनार (विश्वनाथ, 1992), मगह के हुँकार (सुशील रंजन, 1994), अलका मागधी (अभिमन्यु प्रसाद मौर्य, 1995), अँकुरी (जनार्दन मिश्र ‘जलज’ 1996), अखरा (ब्रजमोहन पाण्डेय ‘नलिन’, 1998), मगधांचल (जनवादी लेखक संघ, औरंगाबाद, 1998), मगहिया भारती (रामगोपाल पांडेय, 1998), मगधवाणी (1998), मगही पत्रिका (धनंजय श्रोत्रिय, 2001), मगही समाचार (सतीश कुमार मिश्र, 2004), सिरजन (कृष्ण मोहन प्यारे, 2009), टोला-टाटी (सुमंत), बंग मागधी (धनंजय श्रोत्रिय, 2011), मगही मनभावन (ई-पत्रिका, उदय भारती, 2011-15), मगही मंजूषा (उदय शंकर शर्मा, 2017)।

मगही के प्रमुख साहित्यकार

मगही विद्वान और साहित्यकार श्रीकान्त शास्त्री आधुनिक मगही साहित्य की चेतना का आरम्भ श्रीकृष्णदेव प्रसाद की रचनाओं से मानते हैं। आधुनिक मगही साहित्य को विविध विधाओं के जरिए कवियों, लेखकों, नाटककारों, कहानीकारों, उपन्यासकारों एवं निबन्धकारों ने समृद्ध किया है। इनमें पुरानी और नयी पीढ़ी दोनों साहित्यधर्मी समान रूप से मगही में सृजनरत है। ऐसे मगही साहित्यकारों में जयनाथ पति, श्रीकान्त शास्त्री, श्रीकृष्णदेव प्रसाद, रामनरेश, पाठक, जयराम सिंह, रामनन्दन, मृत्युञ्जय मिश्र ‘करुणेश’, योगेश्वर सिंह ‘योगेश’, राम नरेश मिश्र ‘हंस’, बाबूलाल ‘मधुकर’, सतीश मिश्र, रामकृष्ण मिश्र, रामप्रसाद सिंह, रामनरेश प्रसाद वर्मा, रामपुकार सिंह राठौर, गोवर्धन प्रसाद सदय, सूर्यनारायण शर्मा, मथुरा प्रसाद ‘नवीन’, श्रीनन्दन शास्त्री, सुरेश दूबे ‘सरस’, शेषानन्द मधुकर, रामप्रसाद पुण्डरीक, अनिक विभाकर, मिथिलेश जैतपुरिया, राजेश पाठक, सुरेश आनन्द पाठक, देवनन्दन विकल, रामसिंहासन सिंह विद्यार्थी, श्रीधर प्रसाद शर्मा, कपिलदेव प्रसाद त्रिवेदी, ‘देव मगहिया’, हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, हरिनन्दन मिश्र ‘किसलय’, रामगोपाल शर्मा ‘रुद्र’, रामसनेही सिंह ‘सनेही’, सिध्देश्वर पाण्डेय ‘नलिन’, राधाकृष्ण राय आदि के नाम प्रमुख हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. A Grammar of the Hindi Language (1872; Revised edition 1893; 1938) – by Rev. S H Kellogg. Reprint: Asian Educational Services, New Delhi/ Madras., 1989; xxxiv+584 pp.
  2. मगही का भाषिक स्वरुप और उसका साहित्यिक विकास http://www.ignca.nic.in/coilnet/mg005.htm स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. भारत की भाषा का सर्वेक्षण, खण्ड 5 भाग 2, पृ. 123
  4. गंगा पुरातत्वांक, जनवरी, 1933
  5. हरींद्र विद्यार्थी, मगही भाषा का इतिहास एवं इसकी दिशा और दशा (सं. धनंजय श्रोत्रिय), ललित प्रकाशन, दिल्ली, 2012, पृ. 24
  6. मगही साहित्य का इतिहास, मगही अकादमी, 1998 : मगही साहित्य का संक्षिप्त इतिहास http://magahi-sahitya.blogspot.in/2006/08/ स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।