चैती देवी मन्दिर, काशीपुर

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माता बालासुन्दरी मन्दिर
चैती देवी मन्दिर
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धर्म संबंधी जानकारी
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देवताबालासुन्दरी माता
अवस्थिति जानकारी
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वास्तु विवरण
शैलीहिन्दू वास्तुकला एवं मुगल शैली
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स्थापितमुगल काल
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चैती देवी मन्दिर (जिसे माता बालासुन्दरी मन्दिर भी कहा जाता है) उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में काशीपुर कस्बेे में कुँडेश्वरी मार्ग पर स्थित है। यह स्थान महाभारत से भी सम्बन्धित रहा है और इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष चैत्र मास की नवरात्रि में चैती मेला (जिसे चैती का मेला भी कहा जाता है) का आयोजन किया जाता है। यह धार्मिक एवं पौराणिक रूप से ऐतिहासिक स्थान है और पौराणिक काल में इसे गोविषाण नाम से जाना जाता था।[१] मेले के अवसर पर दूर-दूर से यहाँ श्रद्धालु आते हैं।

माता बाला सुंदरी का अन्य प्रसिद्ध मंदिर

माता भगवती बाला सुंदरी का एक प्रसिद्ध मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के नाहन मुख्यालय से लगभग 12 किमी की दूरी पर त्रिलोकपुर नामक स्थान पर है यहाँ मंदिर से तीन किमी दूर पूर्व मे पहाड़ पर ललिता देवी और 10 किमी उत्तर की और त्रिभवानी देवी के भव्य मंदिर है यहाँ माता का मंदिर दोनों मंदिरों के मध्य मे स्थित है कहा जाता है सोलहवी शताब्दी मे माता बाला सुंदरी सहारनपुर के देवबन्द नामक स्थान से त्रिलोकपुर आई थी देवबन्द मे भी माता बाला सुंदरी का भव्य मंदिर है इसके अलावा जम्मू के कठुआ मे भी शिवालिक पर्वत पर देवी का स्थान है

मन्दिर

इस स्थान पर भगवान विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से माता सती के अंगों को काट दिये जाने के बाद माता की दायीं भुजा यहां गिरी थी। तभी यहां माता की कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिला पर उनकी दायीं भुजा की आकृति गढी हुई है, उसी की पूजा की जाती है।[२]

बालासुन्दरी के अलावा यहाँ शिव मंदिर, भगवती ललिता मंदिर, बृजपुर वाली देवी के मंदिर, भैरव व काली के मंदिर भी हैं। माँ बालासुन्दरी का एक स्थाई मंदिर पक्काकोट मोहल्ले में अग्निहोत्री ब्राह्मणों के क्षेत्र में स्थित है। इन ब्राह्मण परिवारों को स्थानीय चंदराजाओं से यह भूमि दानस्वरूप प्राप्त हुई थी। बाद में इस भूमि पर बालासुन्दरी देवी का मन्दिर स्थापित किया गया । बालासुन्दरी की प्रतिमा स्वर्णनिर्मित बताई जाती है।

मेला

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।शाक्त सम्प्रदाय से सम्बन्धित अधिकांश मंदिरों में नवरात्रि में मेले लगते हैं, वैसे ही माँ बालासुन्दरी के इस मन्दिर में भी नवरात्रि में अष्टमी, नवमी व दशमी के दिन यहाँ श्रद्धालुओं का तो समुह ही उमड़ पड़ता है। नवरात्रि के अवसर पर यहाँ तरह-तरह की दुकानें भी मेले में लगती हैं। यहां देवी महाकाली के मंदिर में बलि भी चढाई जाती थी। अन्त में दशमी की रात्रि को बालासुन्दरी की डोली में बालासुन्दरी की सवारी अपने स्थाई भवन काशीपुर के लिए प्रस्थान करती है। प्राय: चैती मेले में पूरी ऊर्जा काशीपुर से डोला चैती मेला स्थान पर पहुँचने पर ही आती है। डोले में प्रतिमा को रखने से पूर्व अर्धरात्रि में पूजन होता है तथा बकरों का बलिदान भी किया जाता है। डोले को स्थान-स्थान पर श्रद्धालु रोककर पूजन अर्चन करते और भगवती को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। मेले का समापन इसके बाद ही होता है। जनविश्वास के अनुसार इन दिनों जो भी मनौती माँगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है।

मान्यताएं

मन्दिर परिसर स्थित खोखला पाकड वृक्ष।

लोक मान्यतानुसार जो लोग इस मन्दिर के वर्तमान पण्डे हैं, उनके पूर्वज मुगलों के समय में यहाँ आये थे और उन्होंने ही इस स्थान पर माँ बालासुन्दरी के इस मन्दिर की स्थापना की। तत्कालीन मुगल सम्राट औरंगजेब ने भी इस मंदिर को बनाने में सहायता दी थी। इस मंदिर परिसर में एक पाकड़ का पेड़ स्थित है। इसका तना और पतली टहनी तक सब खोखला है। स्थानीय पंडा पेड़ के संबंध में मान्यता बताते हैं कि एक बार एक महात्मा आए उन्होंने मंदिर के पुजारी पंडा को शक्ति दिखाने को कहा तो पंडा ने कदंब के पेड़ पर पानी का छींटा मारा तो पेड़ फ़ौरन सूख गया। तब उन्होंने फिर उसे हरा करने को कहा तो पंडा ने पेड़ हरा कर दिया, लेकिन पेड़ खोखला रह गया।[३] यह पेड आज भी यहां दिखाई देता है।

चित्र दीर्घा

स्थानीय थारु जाति के लोगों की इस देवी पर बहुत आस्था है और थारुओं के नवविवाहित जोड़े माँ से आशीर्वाद लेने चैती मेले में जरुर अवश्य पहुँचते हैं।

सन्दर्भ

बाहरी सूत्र

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