सैयद शहाबुद्दीन सल्फ़ी फिरदौसी
| सैयद शहाबुद्दीन सल्फ़ी फिरदौसी | |
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| जन्म | साँचा:br separated entries |
| मृत्यु | साँचा:br separated entries |
| मृत्यु स्थान/समाधि | साँचा:br separated entries |
| व्यवसाय | लेखक, इस्लामी विद्वान, सामाज सेवक |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| उल्लेखनीय कार्यs | अतहर ब्लड बैंक, सिरते बदरूद दूजा, मस्जिद अल-सलाम |
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मौलाना सैयद शहाबुद्दीन सल्फ़ी फिरदौसी (जन्म: 1956) एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान, लेखक और सामाज सेवक हैं। सोलापुर में स्थित अतहर ब्लड बैंक और मस्जिद अल-सलाम के संस्थापक अध्यक्ष हैं।[१][२][३] आप ने उर्दू में पैगंबर मुहम्मद की जीवनी (सीरत) सहित कई पुस्तकें लिखीं हैं।[४][५]
जीवन
मौलाना सैयद शहाबुद्दीन का जन्म 1956 में जिला दरभंगा, बिहार के एक गांव बाबू सलीमपुर के एक धार्मिक परिवार में हुआ। शेख ताजुद्दीन मदारी दरभंगवी, बिहार के एक बुजुर्ग सुफी अापके पूर्वजों में से हैं। 1971 में इस्लामी विद्यालय दारूल उलूम अहमदीया सलफिया, दरभंगा से अपनी पढ़ाई पूरी की और 1981 में सोलापुर चले आने के बाद एक पुस्तिका 'मेरी नमाज़' लिखी।[१]
कार्य
मौलाना सैयद शहाबुद्दीन सल्फ़ी फिरदौसी ने सोलापुर शहर में एक सार्वजनिक ट्रस्ट "अथर माइनॉरिटीज सोशल एंड वेलफेयर एसोसिएशन"(अथर अल्पसंख्यक सामाजिक और कल्याण संघ) के अंतर्गत अथर ब्लड बैंक (अथर रक्त कोष) की स्थापना की। 02 जून 2012 को तत्कालीन ऊर्जा मंत्री (भारत) श्री सुशील कुमार शिंदे ने बैंक का उद्घाटन किया।[१][६][७] मौलाना ने सोलापुर के अम्बेडकर नगर में एक मस्जिद 'मस्जिद अल-सलाम' भी बनायी है।
आप ने निम्नलिखित किताबें लिखी हैं,
- सिरते बदरूद दूजा[५][४] - पैगंबर मोहम्मद की जीवनी
- तलाक तलाक तलाक[८] - इस्लाम में निकाह (विवाह), तलाक और हलाला का विवरण
- मेरी नमाज़ - नमाज़ पढ़ने की पद्धति पर एक पुस्तिका
मौलाना फ़िरदेसी मुस्लिम समाज में महिलाओं के सामाजिक मुद्दों और उत्पीड़न के बारे में बहुत मुखर रहे हैं और एक बार में तीन तलाक और हलाला की निंदा करते हो एस उन्हें गैर इस्लामी और महिलाओं पर जुल्म ढाना कहा है।[९][६]
असग़र अली इंजीनियर ने अक्टूबर 2002 में सोलापुर दंगों के दौरान मौलाना फ़िरदेसी द्वारा निभाई गई भूमिका की सराहना की। नवंबर 2002 के 'सेक्युलर पर्स्पेक्टिव' अंक में उन्होंने लिखा, "यह भी यहां उल्लेख किया जाना चाहिए कि मौलाना शाहबुद्दीन सलफ़ी द्वारा निभाई गई भूमिका बहुत प्रशंसनीय थी। उन्होंने सहारनगर और आसनगर क्षेत्र में मुस्लिम युवाओं को रोका अन्यथा मुसलमानों को अधिक नुकसान होता। मुसलमान युवक उनके व्यवहार में काफी हिंसक थे किंतु मौलाना और पुलिस आयुक्त श्री मोरे ने संयम और ज्ञान का प्रयोग किया और स्थिति को बचाया। मौलाना ने इन क्षेत्रों में कई हिंदू जीवन की रक्षा की।"[१०][११][१२]
सन्दर्भ
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