ढब्बावाली माता मंदिर, खासरवी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>InternetArchiveBot द्वारा परिवर्तित २३:२७, १४ जून २०२० का अवतरण (Rescuing 3 sources and tagging 0 as dead.) #IABot (v2.0.1)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
ढब्बावाली माता मंदिर
लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
ढब्बावाली माता मंदिर
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धतासाँचा:br separated entries
शासी निकायसाँचा:csv
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिसाँचा:if empty
ज़िलाजालौर
राज्यराजस्थान
देश{{flag भारत }}
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 422 पर: No value was provided for longitude।
निर्मातासाँचा:if empty
ध्वंससाँचा:ifempty
साँचा:designation/divbox
साँचा:designation/divbox

साँचा:template otherस्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main other

ढब्बावाली माता मंदिर (English: Dhabbawali Mata Temple ) एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है जो राजस्थान के जालौर जिले में स्थित है। इसमें देवी ढब्बावाली माता[१] की मूर्ति स्थापित है। यह साँचोर से ३५ किलोमीटर उत्तर-पश्चिम दिशा में खासरवी में स्थित है। राजस्थान की पूज्य भूमि पर एक देवी पीठ जो जिला जालोर तहसील सांचोर के ग्राम खासरवी की पावन भूमि पर विराजमान हैं।  यह सिद्ध देवी पीठ माँ भगवती ढब्बावाली के नाम से संसार भर में विख्यात हैं।  इस महाशक्ति के दरबार में राजस्थान से लेकर नेपाल तक कामरू से लेकर कश्मीर तक व कश्मीर से कन्याकुमारी तक अनगिनत भक्त और साधक आते हैं। माता ढब्बावाली की प्राचीन मुर्ति काष्ठ की है। "भटवा " वर्तमान भटवास के संस्थापक राव हिराजी माताजी के अन्नय भक्त थे। उनके ही सैनिक ढब्बाजी कोली ने माताजी के शक्तिपीठ के लिए उन्नत धोरे का चयन किया। ढब्बाजी मा के परम भक्त थे। राव हिराजी के वंशज आज भी भटवास मे निवास करते है। वे मुनैला प्रतिहार शासनिक राव सरदार है।

ढब्बावाली माता के नाम का परिचय

अपने भक्त ढब्बाजी का नाम अमर करने के लिए माँ भगवती ने अपने आपको ढब्बाजी भक्त नाम में शामिल कर लिया और कहलाने लगी “ढब्बा और वाली “ यानि ढब्बाजी तो भक्त का नाम था जो इस महाशक्ति का सच्चा उपासक था और वाली का अर्थ अपनाया, उसी का ये वाली शब्द उपशब्द  में आता हें।  महादेवी ने अपने नाम का परित्याग करके अपने भक्त के नाम में ही समा गई और कहलाने लगी ढब्बावाली[१]

मेला और खास बात

माताजी के इस  मंदिर में हर माह की पूर्णिमा[२] को मेला लगता हैं जिसमे हजारों की संख्या में श्रद्धालु माँ के द्वार माथा टेकने आते हैं। यहाँ से जुड़ी एक खास दिलचस्प बात यह हैं कि माताजी को भोग लगाई हुई प्रसाद हम खासरवी क्षेत्र से बाहर नहीं ले जा सकते।[३]

आवागमन

मां ढब्ब्वाली के  मंदिर तक पहुंचने के लिए साँचोर और वेडिया से बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं। हर मास की पूर्णिमा को भारी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मनौतियां मनाते हैं। यहां तक की आज़ादी से पहले इस मंदिर में पाकिस्तान से भी श्रद्धालु आते थे।[४] श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशाला भी हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. महासिद्ध शक्ति माँ ढब्बावाली देवी India, by Shaktidan Maliya. Published by Rajasthani Granthagar Sojati Gate Jodhpur, 2004. Page 48.
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।