बरवै
imported>InternetArchiveBot द्वारा परिवर्तित ०६:२७, १५ जून २०२० का अवतरण (Rescuing 1 sources and tagging 0 as dead.) #IABot (v2.0.1)
बरवै रामायण सगुण भक्ति धारा के रामभकती शाखा के कवि तुलसीदास द्वारा लिखी गई है ।
परिभाषा
इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में १२ -१२ मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में ७-७ मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण (ISI )होता है। [१]
उदहारण
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित बरवै रामायण से लिया गया छंद:
- चम्पक हरवा अंग मिलि,अधिक सुहाय।
- जानि परै सिय हियरे ,जब कुंभिलाय।।
प्रेम प्रीति को बिरवा ,चले लगाय।
सियाहि की सुधि लीजो ,सुखी न जाय।।
ab jivaan ki hai kapii asha koye, kanguriya ki mudri, kangna house.
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।