भंवाल माता
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भंवाल माता,बैंगानी,झांबड, तोडरवाल (ओसवाल, जैन), राजपूत, गौड़ ब्राह्मण आदि समुदायों की कुलदेवी हैं। भंवाल माता का मंदिर राजस्थान के नागौर जिले की मेड़ता तहसील में भंवालगढ़ गाँव में स्थित है। यहाँ माता काली व ब्राह्मणी दो स्वरूप में पूजी जाती है। यह शक्तिपीठ राजस्थान के जोधपुर के निकट बिरामी गाँव स्थित भुवाल माता मंदिर से अलग है, इसको लेकर बहुत बार भ्रम बन जाता है।
इतिहास
मंदिर प्रांगण में प्राप्त शिलालेख के अनुसार मंदिर का निर्माण विक्रम संवत १११९ में हुआ था। एक अन्य मान्यता के अनुसार वि॰सं॰ ३५० माघ बड़ी एकादशी को हुआ था। मंदिर प्राचीन हिन्दू स्थापत्य कला के अनुसार तराशे गए पत्थरों को आपस में जोड़ कर बनाया गया था। सीमेंट जैसे तत्वों का उपयोग नहीं किया गया था। मंदिर के चारों और देवी-देवताओं की सुन्दर प्रतिमाएं व कारीगरी की गई है।
मंदिर के ऊपरी भाग में गुप्त कक्ष बनाया गया था, जिसे गुफा भी कहा जाता है। इसके द्वार को बंद करने के लिए भारी पत्थर का उपयोग होता था।
प्रचलित कथा
भंवाल माँ प्राचीन समय में भंवालगढ़ गाँव (ज़िला नागौर) में एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुईं थी एसा माना जाता है। इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था। मृत्यु को निकट देख उन्होंने मां को याद किया। माँ ने अपने प्रताप से डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया। इस प्रकार डाकुओं के प्राण बच गए, और उन्होंने मंदिर का निर्माण करवाया था एसी लोककथा है।
पूजन विधि
मंदिर में दो प्रतिमाएँ स्थापित हैं, बांयी ओर कालका माता तथा दायीं ओर ब्रह्माणी माता। ब्रह्माणी देवी को यहाँ फल या मिठाई आदि का प्रसाद अर्पित किया जाता है लेकिन माँ काली को उनके भक्त ढाई प्याला मदिरा चढ़ाते हैं।
कैसे पहुंचे
भंवाल अथवा भुवाल जैतारण- मेड़ता मार्ग पर स्थित है। निकट का रेलवे स्टेशन मेड़तारोड़ है। यहाँ से किराए के वाहन उपलब्ध रहते है।
ठहरने की व्यवस्था
यात्रियों के विश्राम, भोजन व ठहरने हेतु बैंगाणी समुदाय द्वारा निर्मित धर्मशाला मंदिर के निकट ही स्थित है।