क्यूबाई क्रान्ति में फिदेल कास्त्रो

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क्यूबाई क्रांतिकारी और राजनेता फिदेल कास्त्रो ने क्यूबाई क्रांति में 1953 से 1959 तक हिस्सा लिया। अपने प्रारंभिक जीवन से फिदेल कास्त्रो ने फुलगेन्सियो बातिस्ता की सैनिक सरकार का एक अर्थ-सैनिक संगठन "आन्दोलन" के ज़रिए तख़्ता पटने का फ़ैसला किया। जुलाई 1953 में उसने मोनकादा बैरकों पर असफल हमले का प्रयास किया जिसके दौरान कई छापामार मारे गए और कास्त्रो गिरफ़्तार हुए। सुनवाई के दौरान कास्त्रो ने अपनी हरकतों का पक्ष लिया और अपना प्रसिद्ध "इतिहास मुझे निर्दोष पाएगा" भाषण प्रस्तुत किया, जिसके बाद उसे 15 साल मॉडल कारावास की सज़ा इज़्ला दे ला युवेनतूद में सुनाई गई। फिदेल कास्त्रो के गिरोह को जुलाई 26 के आन्दोलन (एम आर 26-7) के रूप में पुनःनामकरण करते हुए बातिस्ता सरकार ने मई 1955 में उसे क्षमा किया क्योंकि सरकार को फिदेल से किसी भी प्रकार की राजनैतिक चुनौती नहीं लग रही थी। एम आर 26-7 की नवीनीकरण करके फिदेल अपने भाई राउल कास्त्रो के साथ मेक्सिको फ़रार हो गया। यहाँ इन लोगों की मुलाक़ात अर्जेण्टीना के मार्क्स्वादी नेता चे ग्वेरा से हुई और इन लोगों ने एकत्रित होकर एक छोटे से क्रान्तिकारी दल का गठन किया जिसका लक्ष्य बातिस्ता का तख़्ता पलटना था।

नम्बर 1956 में कास्त्रो और 81 क्रान्तिकारियों ने मेक्सिको से "ग्रांमा के माध्यम से समुद्र की यात्रा की और तेज़ी से लॉस लॉस कायूएलोस पर उतरे। बातिस्ता की सेना से हमले के कारण ये लोग सिएरा माएस्त्रा पहाड़ियों में भाग आए जहाँ 19 सुरक्षित लोगों ने कैम्प खड़ा किया जहाँ से सेना से युद्ध के प्रयास शुरू हुए। कुछ नई भर्तियों के कारण इस छापा-मार सेना की संख्या 200 हो गई। इस दल ने अन्य क्यूबा के अन्य क्रान्तिकारी दलों से तालमेल किया और कास्त्रो एक "अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित व्यक्ति" बन गए जब दि न्यूयार्क टाइम्स में उनका इन्टर्व्यू छपा। 1958 में बातिस्ता ने जवाबी आक्रमण ऑपरेशन वेरानो प्रारंभ किया। पर उसकी सेना द्वारा पारम्परिक युद्ध की रणनीति कास्त्रो की छापा-मार नीतियों का मुक़ाबला नहीं कर पाई और अंततः एम आर 26-7 सिएरा माएस्त्रा से आगे बढ़कर ओरियंत और लास वियस अधिकांश भागों पर सत्ता जमा चुके थे। इस बात को भाँपते हुए कि युद्ध उसके हाथ से निकल रही थी, बातिस्ता दोमिनिकन गणराज्य चला गया जबकि फ़ौजी नेता यूलोगियो कांतियो ने देश की बाग-डोर संभाली। जब क्रान्तिकारी बलों ने अधिकांश क्यूबा पर क़ब्ज़ा जमाया, कास्त्रो ने कांतियो की गिरफ़्तारी के आदेश जारी किए जबकि मॅनुएल उरुतिया ल्येओ को राष्ट्रपति और होज़े मीरो कार्दोना को प्रधान मंत्री बनाकर एक अल्पकालीन सरकार गठन हुआ ताकि ऐसे क़ानून बनाए जाएँ जिनसे बातिस्ता-दल को निर्बल किया जाए।

आन्दोलन और मोनकादा बैरक्स हमला:आन्दोलन

मार्च 1952 में क्यूबाई फ़ौजी जनरल फ़ुलगेन्सिओ बातिस्ता ने सत्ता को अपने क़ब्ज़े में ले लिया, जिसके कारण चुनावों से बने राष्ट्रपति कारलॉस प्रीओ सोकार्रास को मेक्सीको भागना पड़ा। अपने आप राष्ट्रपति घोषित करते हुए बातिस्ता ने योजनाबन्द राष्ट्रपति चुनावों को मंसूख़़ किया और अपनी नई प्रणाली को "अनुशासन-बद्ध लोकतन्त्र" क़रार दिया। औरों की तरह कास्त्रो भी इसे एक व्यक्ति की तानाशाही मानते थे।[१] बातिस्ता दाएँ ओर बढ़कर पूँजीपतियों और अमरीका से सम्बंध गहरे किए जबकि सोवियत संघ से राजनयिक सम्बंध तोड़ लिए और मज़दूर यूनियनों का दमन किया और क्यूबा के समाजवादी गुटों पर मुक़दमे दर्ज किए।[२] बातिस्ता शासन के विरोध के इरादे से कास्त्रो ने कई क़ानूनी मुक़दमे उनके विरुद्ध लाए और इस बात को पूरे ज़ोर से कहा कि बातिस्ता ने काफ़ी अपराधिक कार्य किए हैं जिसके लिए उसका कारावास जाना आवश्यक है और कई मंत्रियों पर मज़दूर क़ानूनों को तोड़ने का आरोप लगाया। कास्त्रो के मुक़दमे जब बेनतीजे दिखाई पड़ने लगे, तो उसने नई सरकार को निकालने के अन्य विकल्पों पर ग़ौर करना शुरू किया।[३]

पारतीदो ऑरतोदॉक्सो के अहिंसावादी विपक्ष से असन्तुष्ट होकर कास्त्रो ने "आन्दोलन" की स्थापना की, एक ऐसा दल जिसकी नागरिक और सैनिक कमेटियाँ थी। इनमें प्रथम एक भूमिगत समाचारपत्र "एल अकूसादोर" (इलज़ाम लगानेवाला) के माध्यम से विरोध प्रकट करता था जबकि द्वितीय बातिस्ता विरोधियों की भर्ती करता और उन्हें को सशक्त और प्रशिक्षित करता। जब कास्त्रो आन्दोलन के मुख्या बने, संगठन ग़ैरक़ानूनी इकाई प्रणाली पर आधारित था, जिसमें हर इकाई के दस सदस्य थे।[४] आन्दोलन का मुख्य केन्द्र एक दर्जन ऐसे सदस्य थे जो ऑरतोदॉक्सो से असन्तुष्ट थे, हालाँकि जुलाई 1952 से इन लोगों ने बड़े पैमाने पर भर्ती शुरू की, जिसमें एक साल के अन्दर 1,200 सदस्य शामिल हुए, सौ इकाइयाँ बनाई गई, जिनमें से अधिकांश हवाना के गरीब ज़िलों से थे।[५] कास्त्रो के क्रान्तिकारी समाजवाद से गहरे सम्बंध होने के बावजूद उसने कम्यूनिस्ट पी एस पी से जुड़ने से ख़ुद को दूर रखा क्योंकि इससे डर था कि राजनैतिक नरमपंथी डर जाएँगे, हालाँकि व्यक्तिगत रूप से उसने कई पी एस पी सदस्यों से सम्पर्क बनाए रखा, जिसमें उसके भाई राउल कास्त्रो भी रहे।[६]बाद के समय में कास्त्रो ने कहा कि आन्दोलन के सदस्य केवल बातिस्ता-विरोधी थे और उनमें से शायद ही कोई कड़े समाजवादी या साम्राज्यवाद-विरोधी विचार रखता था, जो कि कास्त्रो के मुताबिक़ "न्यूयार्की विचारधारा और विज्ञापन प्रणाली का गहरा प्रभाव" था, जिसके कारण से क्यूबा के कामगार वर्ग की वर्ग चेतना को दबाया जा रहा था।[७]

"अब से कुछ ही लम्हों में या तो आप विजयी हों या पराजित, मगर जो भी हो - कान खोलकर दोस्तों इस बात को मान लें कि इस आन्दोलन को जीतना होगा। अगर तुम कल जीतोगे, मारती की महत्वाकांक्षाएँ जल्दी पूरी होंगी। अगर आप नाकाम हुए तो भी हमारा यह क़दम क्यूबाई जनता के लिए एक ऐसी मिसाल क़ाइम करेगा जिससे ताज़ा-ताज़ा लोग उभरेंगे जो क्यूबा के लिए मरने तय्यार होंगे। ऐसे सभी लोग हमारा झंडा उठाकर आगे बढ़ेंगे..। ओरियंत और सारे टापू के लोग हमारा साथ देंगे। '68 और '92 की तरह हम यहाँ ओरियंत में आज़ादी या मौत का पहला नारा लगाएँगे!"

— फिदेल कास्त्रो का मोनकादा बैरक्स हमले से पहले का भाषण, 1953.[८]

कास्त्रो ने हथियारों को मोनकादा बैरक्स पर हमले के लिए जमा किया जो कि एक संत्यागो दे क्यूबा के बाहर ओरियंत प्रांत में एक फ़ैजी क़िला था। कास्त्रो के छापा-मार ने इरादा किया था कि फ़ौजियों की वरदी पहनकर इस ठिकाने पर जुलाई 25 को आएँगे जो कि सेंट जेम्स के त्योहार का समय था जब अधिकांश अधिकारी मौजूद नहीं हुआ करते थे। बाग़ी हथिरों पर छापा मारकर उन्हें अपने क़ब्ज़े में लेते हुए अधिक सैनिकों के आने से पहले भागना चाहते थे। [९] ताज़ा हथियारों से लैस कास्त्रो अपने हामियों में अस्त्र बाँटना चाहता था जो ओरियंत के ग़रीब छड़ी काटने वालों से तालुक रखते थे। इसके बाद की योजना संत्यागो रेडियो स्टेशन पर क़ब्ज़ा करना, आन्दोलन के घोषणापत्र को प्रसारित करना और बग़ावत को हवा देना थी।[१०] कास्त्रो की योजना 19 वीं सदी की क्यूबाई स्वतंत्रता सेनानियों की नक़ल थी जो स्पेन की बैरकों पर छापे मार चुके थे; कास्त्रो ने ख़ुद को आज़ादी के नेता और राष्ट्रीय हीरो होज़े मारती के उत्तराधिकारी के रूप में देखने लगा। [११]

कास्त्रो ने 165 क्रान्तिकारियों को इस मिशन के लिए जमा किया; 138 सान्तियागो में और अन्य 27 बायामो में। हवाना और पिनार देल रियो के कई नौजवानों के बारे में कास्त्रो ने ये तय किया के ख़ुद को छोड़कर कोई भी बाल-बच्चों वाला न हो,[१२] और उसने सेना को मुठभेड़ के सिवा किसी अन्य स्थिति में ख़ून बहाने से मना कर दिया।[१३] हमला जुलाई 26, 1953 को हुआ पर वह योजना के अनुरूप नहीं हुआ; सान्तियागो से निकलने वाली सोलह गाड़ियों में से तीन वहाँ पहुँच ही नहीं पाई। बैरकों के पहुँचते ही अलारम बज गया जिसके साथ ही ठिकाने के बाहर ही अधिकांश बाग़ियों का सफ़ाया कर दिया गया। जो अन्दर आ पाए उन्हें कठोर रुकावट का सामना करना पड़ा और चार तो कास्त्रो के सामने ही मार दिए गए। इसके बाद कास्त्रो ने पीछे मुड़ने का आदेश दे दिया।[१४] बाग़ियों में से छः मारे गए और पन्दरह ज़ख़्मी हुए जबकि उन्नीस फ़ौजी मारे गए और सत्ताईस घायल हुए। [१५]

सन्दर्भ