सुआ गीत
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सुआ गीत छत्तीसगढ़ राज्य के देवार स्त्रियों का नृत्य गीत है। यह दीपावली के पर्व पर महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला गीत है । सुआ का अर्थ होता है 'तोता'।
सुआ एक पक्षी होता है जो रटी-रटायी बातों को बोलता/दोहराता है। इस लोकगीत में स्त्रियां तोते के माध्यम से संदेश देते हुए गीत गाती हैं। इस गीत के जरिए स्त्रियां अपने मन की बात बताती हैं, इस विश्वास के साथ कि वह (सुवा) व्यथा उनके प्रिय तक पहुँचायेगा। इसलिए इसको कभी-कभी वियोग गीत भी कहा जाता है। धान की कटाई के समय इस लोकगीत को बड़ी उत्साह के साथ गाया जाता है । इसमे शिव-पार्वती (गौरा-गौरी) का विवाह मनाया जाता है। मिट्टी के गौरा-गौरी बनाकर उसके चारो ओर घुमकर सुवा गीत गाकर सुवा नृत्य करते हैं। कुछ जगहों पर मिट्टी के सुवा (तोते ) बनाकर यह गीत गाया जाता है। यह दिपाली के कुछ दिन पूर्व आरम्भ होकर दिवाली के दिन शिव-पार्वती (गौरा-गौरी) के विवाह के साथ समाप्त होता है। यह शृंगार प्रधान गीत है। सालों से गाया जा रहा यह गीत मौखिक है । सुआ गीत में महिलाएं बाँस की टोकनी मे भरे धान के ऊपर सुआ अर्थात तोते कि प्रतिमा रख देती हैं और उनके चारो ओर वृत्ताकार स्थिति मे नाचती गाती हैं।
प्रेमिका बड़े सहज रुप से अपनी व्यथा को व्यक्त करती है। इसीलिये ये गीत मार्मिक होते हैं। छत्तीसगढ़ की प्रेमिकायें कितने बड़े कवि हैं, ये गीत सुनने से पता चलता है। न जाने कितने सालों से ये गीत चले आ रहे हैं। ये गीत भी मौखिक ही चले आ रहे हैं।
सुआ गीत हमेशा एक ही बोल से शुरु होता है और वह बोल हैं -
- तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना
और गीत के बीच-बीच में ये बोल दुहराई जाती हैं। गीत की गति तालियों के साथ आगे बढ़ती है।
- एक सुआ गीत
- तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना
- कइसे के बन गे वो ह निरमोही
- रे सुअना
- कोन बैरी राखे बिलमाय
- चोंगी अस झोइला में जर- झर गेंव
- रे सुअना
- मन के लहर लहराय
- देवारी के दिया म बरि-बरि जाहंव
- रे सुअना
- बाती संग जाहंव लपटाय