ञिङमा

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>InternetArchiveBot द्वारा परिवर्तित २३:१२, १ जनवरी २०२१ का अवतरण (Rescuing 0 sources and tagging 1 as dead.) #IABot (v2.0.7)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

ञिङमा (तिब्बती भाषा: རྙིང་མ་པ།, अंग्रेज़ी: Nyingma), तिब्बती बौद्ध धर्म की पांच प्रमुख शाखाओं में से एक हैं। तिब्बती भाषा में "ञिङमा" का अर्थ "प्राचीन" होता है। कभी-कभी इसे ङग्युर (སྔ་འགྱུར།, Ngagyur) भी कहा जाता है जिसका अर्थ "पूर्वानूदित" होता है, जो नाम इस सम्प्रदाय द्वारा सर्वप्रथम महायोग, अनुयोग, अतियोग और त्रिपिटक आदि बौद्ध ग्रंथों को संस्कृत इत्यादि भारतीय भाषों से तिब्बती में अनुवाद करने के कारण रखा गया। तिब्बती लिपि और तिब्बती भाषा के औपचारिक व्याकरण की आधारशिला भी इसी ध्येय से रखी गई थी। आधुनिक काल में ञिङमा संप्रदाय का धार्मिक संगठन तिब्बत के खम प्रदेश पर केन्द्रित है।[१]

इतिहास

बौद्ध धर्मका सुरुवात तिब्बत में सातवीं शताब्दी के धर्मराज स्रोंचन गम्पो (६१७-६९८) के शासनकाल में हुआ था। लेकिन पूर्णरूप से स्थापना धर्मराज ठ्रीस्रोङ देउचन (७४२-७९७) के शासनकाल में भारतीय आचार्य शान्तरक्षित और आचार्य पद्मसंभव का तिब्बत में निमंत्रण किया गया और उसी आचार्यों के सहयोग से तिब्बती बौद्ध धर्मका पहेली महाविहार अथवा बौद्ध अध्यन केंद्र सम्यस चुग्लग्खङ का निर्माण साथ हुई। सम्यस चुग्लग्खङ का निर्माण समाप्ति के बात बुद्धिमान तिब्बती किशोरों का आचार्य पद्मसंभव और शान्तरक्षित द्वारा विशेष ज्ञान देकर अनुवाद कार्य में सक्रियता बनाया था। जो लोग से तिब्बती महान अनुवादक (लोचावा) वैरोचन, दन्मचेमङ, खछे आनन्त, ञग्स ज्ञानकुमार, खोनलुयि वङपो, मरिन्छेन छोग, क-व पल्चेग्स, चोगरोलुयि ग्यल्छन, शङ येशेस्दे आदि एक सौ आठ वरिष्ठ एवं कनिष्ठ अनुवादक लोग थे। इस अनुवादकों ने धर्मराज ठ्रीस्रोङ देउचन और दो आचार्यो के निर्देशन मुताबिक संपूर्ण महायान बौद्ध ग्रंथो के विनय पिटक, अभिधर्म पिटक, सूत्र पिटक और तंत्र पिटक इत्यादि बुद्धवचनों का संस्कृत भाषा से तिब्बती भाषा में अनुवाद-कार्य प्राम्भ की गया।

ञिङमा सम्प्रदाय का दर्शन एवं साधना

तिब्बत में पुर्वानुदित बौद्ध सूत्र और तंत्रों की अध्यन एवं साधना परंपरा को ङग्युर ञिङमा अथवा प्राचीन पुर्वानुदित परंपरा कहा जाता है।

ञिङमा सम्प्रदाय की प्रारम्भिक परम्परा

दीर्घागम परम्परा (रिङ-ग्युद-क-म)

जिनाभिप्राय परम्परा

विद्याधर संकेतिक परम्परा

पुद्गल श्रवण परम्परा

आसन्न निधि परम्परा (ञे ग्युद तेर-म)

निधि अन्वेषक

ञिङमा सम्प्रदाय के प्रमुख मठ और अध्यन केन्द्र

तिब्बत

  • दोर्जे ड्रग རྡོ་རྗེ་བྲག
  • मिनड्रोल् लिङ སྨིན་གྲོལ་གླིང་།
  • शेछेन ཞེ་ཆེན།
  • कःथोग ཀཿཐོག
  • पल्युल དཔལ་ཡུལ།
  • जोग्छेन རྫོགས་ཆེན།
  • सेर्ता लारूं སེར་རྟ་བླ་རུང་།
  • यछेन् गर ཡ་ཆེན་སྒར།

भूटान

नेपाल

भारत

  • नाम्ड्रोल्लिङ རྣམ་གྲོལ་གླིང་།
  • पल्युल छोस्खोरलिङ དཔལ་ཡུལ་ཆོས་འཁོར་གླིང་།
  • मिन्ड्रोललिङ སྨིན་གྲོལ་གླིང་།
  • जोग्छेन मठ རྫོགས་ཆེན་དགོན་པ།

पश्चिमी देश

तिब्बती बौद्धों के पांच प्रमुख सम्प्रदाय

  • ञिङमा རྙིང་མ།
  • कग्युद བཀའ་བརྒྱུད།
  • सक्या ས་སྐྱ།
  • गेलुग्स དགེ་ལུགས།
  • जोनं ཇོ་ནང་།

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Dudjom Lingpa. Buddhahood Without Meditation, A Visionary Account known as Refining Apparent Phenomena. Padma Publishing, Junction City 1994, ISBN 1-881847-07-1

बाहरी कड़ियाँ