होंठ के छाप

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किसी भी आपराधिक जांच में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका उस की पहचान करने से होती है।

होंठ के छाप

जैसे उंगलियों की छाप अपनेआप में एक अलग पहचान है जो की हर इंसान में अलग होती है, ऐसे ही होंठ के छाप भी अपनेआप में एक विशिष्ट पहचान रखता है। होंठो पर झुर्रियों का स्वरुप अपनेआप में ही विशिष्ट है जो की हर इंसान में अलग होता है। न्यायालयिक विज्ञानं में होंठो के छाप की विधि के परीक्षण को 'चिलोस्कोपी' बोलते हैं। यह होंठ की छाप आपराधिक प्रकरणों में कही भी पाई जा सकती है जैसे की- गिलास, कप, प्लेट, क्रोकरी, चम्मच, खिड़की, दरवाजे, पेन्टिंग आदि। होंठो की छाप भी उंगलियों की छाप की तरह मनुष्य में सारी उम्र एक सामान ही रहती है, जिससे किसी भी अपराधी की पहचान आसानी से की जा सकती है। [१]

वर्गीकरण

सन १९६७ में Santos वह पहले इंसान थे जिन्होंने होंठ की छाप का वर्गीकरण किया था और उन्होंने ४ भाग में बांटा था-

  1. सीधी रेखा
  2. वक्र रेखा
  3. एंगल्ड रेखा
  4. ज्या के आकार की रेखा

इस वर्गीकरण की मदद से ही होंठो की छाप की पहचान की जाती है। [२]

रिकॉर्डिंग

होंठो की छाप लेने के लिए संदिग्ध व्यक्ति के होंठो पर कोई भी स्याही या लिपस्टिक लगाकर रोलर की मदद से फैलाया जाता है और उसके पश्चात कागज पर उसकी छाप ली जाती है। छाप लेने के समय यह याद रखना होता है कि संदिग्ध व्यक्ति ज्यादा जोर ना लगाए और हर एक जगह से एक सामान प्रेशर बनाए रखे|

विकसित करना

होंठो की छाप को मैग्नेटिक पाउडर की मदद से विकसित किया जाता है और उसे एक पारदर्शी प्लेट पर स्थापित क्र लिया जाता है, बिलकुल उन्ग्लियू की छाप की तरह| और उसके बाद उसकी फोटोग्राफी करके उसे परिरक्षित किया जाता है।

सन्दर्भ

  1. Sharma P, Saxena S, Rathod V. Cheiloscopy: The study of lip prints in sex identification. J Forensic Dent Sci. 2009;1:24–7.
  2. Santos M. Queiloscopy: A supplementary stomotalogical means of identification. Int Microform J Legal Med. 1967;1:2