एस्किमो

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एस्किमो, का शाबदिक अर्थ_ कच्चा मॉस खाने वाला एस्किमों जनजाति मंगोल प्रजाति से सम्बन्धीत है।[१]

निवास क्षेत्र

उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र के चारो ओर ग्रीनलैण्ड से लेकर पश्चिम में अलास्का और बेरिंग जलडमरु मध्य के पार साइबेरिया के उत्तरी-पूर्वी चुकची प्रायद्वीप क्षेत्र तक एक पतली पट्टी में एस्किमो लोगो का निवास पाया जाता हैं। वार्षीक औसत तापमान 0 डीग्री सैल्शियस से भी नीचे रहता है। कठोर जलवायु में लगभग 10 लाख एस्किमों विगत दस हजार वर्षों से रह हैं।

मौसम के बदलते कुदरती वसूलों के कारण से स्थायी घरों में नहीं रहते बल्कि वक़्त के साथ अपने निवास स्थानों को भी बदलते रहते हैं. ठंडी के मौसम में ये अपना मकान बर्फ के टुकड़ों से बनाते हैं जिन्हें इग्लू कहा जाता है. इग्लू की बनावट अर्ध गुम्बदाकार होती है. इसमें प्रवेश करने के लिए एक सुरंग नुमा रास्ता बनाया जाता है जिसके कारण घर के अन्दर प्रवेश करने और बाहर आने के लिए एस्किमो को रेंग कर जाना आना पड़ता है. साँस लेने के लिए इसमें ऊपर की तरफ एक छोटा छिद्र होता है.यह घर बने बर्फ के होते हैं मगर माना जाता है की अंदर से यह बहुत ही ज्यादा गर्म होते हैं. इसे और गर्म करने के लिए कई बार इसमें हलकी सी आग भी जलाई जाती है.

बस्तियां

इनके निवास बर्फ की सिल्लियों को अर्द्धगोलाकार रूप में जोड़कर बानाए जाते हैं जिन्हे इग्लू कहा जाता हैं। इस निवास का भीतरी भाग तीन सही एक बटेवा दो मीटर व्यास का होता है|

भोजन

ये लोग मुख्य रूप से सील मछली का हारपून नामक हड्डीयों से बने भाले से शिकार करतें हैं तथा उसका मांस खाते हैं ग्रीष्म ऋतु में एस्किमो अपने घर तट के किनारे - किनारे स्थापित करते हैं । इनके ये ग्रीष्मकालीन घर केरीबो तथा ध्रुवीय भालू की खाल से बने होते हैं । चमङे से बने इन घरों को 'ट्युपिक' कहा जाता है। इस प्रकार के घर अनेक परिवारों के द्वारा समूह में बनाये जाते हैं ।

वस्त्र

ये वस्त्र कैरिबो की खाल से बने होते हैं। ये वस्त्र सील मछली की खाल की अपेक्षा अधिक गर्म एवं हल्क़े होते हैं। धुर्वीय भालू के समूर से भी वस्त्र बनाये जाते हैं।

समाज

एस्किमो साइबेरिया के टूंड्रा प्रदेश के जनजाति है जो मछली करेबू तथा रेनडियर का शिकार करते हैं। शीत ऋतु में इग्लू बनाकर रहते है। ऋतु परिवर्तन के साथ ये स्थान परिवर्तन करते हैं। यह समाज आर्थिक ,समाजिक एवम् भौगोलिक परिस्थितियों की दृष्टि से कमजोर होने के कारण अपने परिवार का पेट भरने के लिए कठिन परिश्रम करते है इनके समाज में यह परम्परा है कि जब व्यक्ति बुज़ुर्ग हो जाता है तो उस व्यक्ति के लिए अपना जीवन त्यागना होता है क्योंकि एक परिवार में केवल सीमित सदस्य ही रह सकते हैं।


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