जाति प्रथा का विनाश
लुआ त्रुटि: expandTemplate: template "italic title" does not exist।साँचा:template other जाति प्रथा का विनाश (अंग्रेजी : Annihilation of Caste) डॉ॰ भीमराव आंबेडकर द्वारा लिखे गये श्रेष्ठतम एवं प्रसिद्ध ग्रन्थों में एक है। इसका प्रकाशन वर्ष 1936 में हुआ। इसमें तत्कालीन जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया एवं उस समय के धार्मिक नेताओं का भी विरोध किया गया। यह एक ऐसा भाषण है जिसको सार्वजनिक रूप से पढ़ने का मौका उन्हें नहीं मिला।[१]
भाषण लाहौर के जात पात तोड़क मंडल की और से उनकी वार्षिक कान्फ्रेंस में उनको मुख्य भाषण करने के लिए न्यौता मिलने के बाद लिखा गया था।[२] जब डाक्टर साहब ने अपने प्रस्तावित भाषण को लिखकर भेजा तो ब्राह्मणों के प्रभुत्व वाले जात-पात तोड़क मंडल के कर्ताधर्ता, काफी बहस के बाद भी यह भाषण सुनने कौ तैयार नहीं हुए। शर्त लगा दी कि भाषण में आयोजकों की मर्जी के हिसाब से बदलाव किया जाए। आम्बेडकर ने भाषण बदलने से मना कर दिया और उस सामग्री को पुस्तक के रूप में मई 1936 को खुद छपवा दिया।[३]