जौ
साँचा:speciesbox जौ पृथ्वी पर सबसे प्राचीन काल से कृषि किये जाने वाले अनाजों में से एक है। इसका उपयोग प्राचीन काल से धार्मिक संस्कारों में होता रहा है। संस्कृत में इसे "यव" कहते हैं। रूस, यूक्रेन, अमरीका, जर्मनी, कनाडा और भारत में यह मुख्यत: पैदा होता है।
परिचय
होरडियम डिस्टिन (Hordeum distiehon), जिसकी उत्पत्ति मध्य अफ्रीका और होरडियम वलगेयर (H. vulgare), जो यूरोप में पैदा हुआ, इसकी दो मुख्य जातियाँ है। इनमें द्वितीय अधिक प्रचलित है। इसे समशीतोष्ण जलवायु चाहिए। यह समुद्रतल से 14,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है। यह गेहूँ के मुकाबले अधिक सहनशील पौधा है। इसे विभिन्न प्रकार की भूमियों में बोया जा सकता है, पर मध्यम, दोमट भूमि अधिक उपयुक्त है। खेत समतल और जलनिकास योग्य होना चाहिए। प्रति एकड़ इसे 40 पाउंड नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, जो हरी खाद देने से पूर्ण हो जाती है। अन्यथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा कार्बनिक खाद - गोवर की खाद, कंपोस्ट तथा खली - और आधी अकार्बनिक खाद - ऐमोनियम सल्फेट और सोडियम नाइट्रेट - के रूप में क्रमशः: बोने के एक मास पूर्व और प्रथम सिंचाई पर देनी चाहिए। असिंचित भूमि में खाद की मात्रा कम दी जाती है। आवश्यकतानुसार फॉस्फोरस भी दिया जा सकता है।
एक एकड़ बोने के लिये 30-40 सेर बीज की आवश्यकता होता है। बीज बीजवपित्र (seed drill) से, या हल के पीछे कूड़ में, नौ नौ इंच की समान दूरी की पंक्तियों मे अक्टूबर नवंबर में बोया जाता है। पहली सिंचाई तीन चार सप्ताह बाद और दूसरी जब फसल दूधिया अवस्था में हो तब की जाती है। पहली सिंचाई के बाद निराई गुड़ाई करनी चाहिए। जब पौधों का डंठल बिलकुल सूख जाए और झुकाने पर आसानी से टूट जाए, जो मार्च अप्रैल में पकी हुई फसल को काटना चाहिए। फिर गट्ठरों में बाँधकर शीघ्र मड़ाई कर लेनी चाहिए, क्योंकि इन दिनों तूफान एवं वर्षा का अधिक डर रहता है।
बीज का संचय बड़ी बड़ी बालियाँ छाँटकर करना चाहिए तथा बीज को खूब सुखाकर घड़ोँ में बंद करके भूसे में रख दें। एक एकड़ में ८-१० क्विंटल उपज होती है। भारत की साधारण उपज 705 पाउंड और इंग्लैंड की 1990 पाउंड है। शस्यचक्र की फसलें मुख्यत: चरी, मक्का, कपास एवं बाजरा हैं। उन्नतिशील जातियाँ, सी एन 294 हैं। जौ का दाना लावा, सत्तू, आटा, माल्ट और शराब बनाने के काम में आता है। भूसा जानवरों को खिलाया जाता है।
जौ के पौधों में कंड्डी (आवृत कालिका) का प्रकोप अधिक होता है, इसलिये ग्रसित पौधों को खेत से निकाल देना चाहिए। किंतु बोने के पूर्व यदि बीजों का उपचार ऐग्रोसन जी एन द्वारा कर लिया जाय तो अधिक अच्छा होगा। गिरवी की बीमारी की रोक थाम तथा उपचार अगैती बोवाई से हो सकता है।
उत्पादक देश
रैंक | देश | 2009 | 2010 | 2011 |
---|---|---|---|---|
01 | साँचा:flag/core | 17.8 | 8.3 | 16.9 |
02 | साँचा:flag/core | 11.8 | 8.4 | 9.1 |
03 | साँचा:flag/core | 12.8 | 10.1 | 8.8 |
04 | साँचा:flag/core | 12.2 | 10.4 | 8.7 |
05 | साँचा:flag/core | 7.9 | 7.2 | 7.9 |
06 | साँचा:flag/core | 9.5 | 7.6 | 7.7 |
07 | साँचा:flag | 7.3 | 7.2 | 7.6 |
08 | साँचा:flag/core | 6.6 | 5.2 | 5.4 |
09 | साँचा:flag | 1.3 | 2.9 | 4.0 |
10 | साँचा:flag/core | 4.9 | 3.9 | 3.3 |
— | World total | 151.8 | 123.7 | 134.3 |
स्रोत: खाद्य एवं कृषि संगठन (संयुक्त राष्ट्र संघ)[१] |
सन २००७ में विश्व भर में लगभग १०० देशों में जौ की खेती हुई। १९७४ में पूरे विश्व में जौ का उत्पादन लगभग 148,818,870 टन था उसके बाद उत्पादन में कुछ कमी आयी है। 2011 के आंकडों के अनुसार यूक्रेन विश्व में सर्वाधिक जौ निर्यातक देश था।[२]
जलवायु
जौ शीतोष्ण जलवायु की फसल है, लेकिन समशीतोष्ण जलवायु में भी इसकी खेती सफलतापू्र्वक की जा सकती है । जौ की खेती समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है। जौ की खेती के लिये ठंडी और नम जलवायु उपयुक्त रहती है। जौ की फ़सल के लिये न्यूनतम तापमान 35-40°F, उच्चतम तापमान 72-86°F और उपयुक्त तापमान 70°F होता है।
भारतीय संस्कृति में जौ
भारतीय संस्कृति में त्यौहारों और शादी-ब्याह में अनाज के साथ पूजन की पौराणिक परंपरा है। हिंदू धर्म में जौ का बड़ा महत्व है। धार्मिक अनुष्ठानों, शादी-ब्याह होली में लगने वाले नव भारतीय संवत् में नवा अन्न खाने की परंपरा बिना जौ के पूरी नहीं की जा सकती। इसी के चलते लोग होलिका की आग से निकलने वाली हल्की लपटों में जौ की हरी कच्ची बाली को आंच दिखाकर रंग खेलने के बाद भोजन करने से पहले दही के साथ जौ को खाकर नवा (नए) अन्न की शुरुआत होने की परंपरा का निर्वहन करते हैं।
जौ का उपयोग बेटियाें के विवाह के समय होने वाले द्वाराचार में भी होता है। घर की महिलाएं वर पक्ष के लोगों पर अपनी चौखट पर मंगल गीत गाते हुए दूल्हे सहित अन्य लोगाें पर इसकी बौछार करना शुभ मानती हैं। मृत्यु के बाद होने वाले कर्मकांड तो बिना जौ के पूरे नहीं हो सकते। ऐसा शास्त्रों में भी लिखा है।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- जौ के अनोखे 12 फायदेसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- जौ की खेती (एग्रोपीडिया)
- जौ की खेती : सीमित लागत अधिक मुनाफा
- जौ की खेती (ATMA)
- औषधीय अन्न "जौ"साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- जौ उगायें, जल बचायें (खेती-गंगा)
- जौ
- जौ के फायदे और औषधीय गुण
- खत्म हो रही जौ की खेती (अमर उजाला)