विपणन प्रबन्ध
यह लेख विषयवस्तु पर व्यक्तिगत टिप्पणी अथवा निबंध की तरह लिखा है। कृपया इसे ज्ञानकोष की शैली में लिखकर इसे बेहतर बनाने में मदद करें। (नवम्बर 2017) |
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (नवम्बर 2017) साँचा:find sources mainspace |
साँचा:asbox विपणन प्रबन्ध (Marketing management), विपणन की तकनीकों का व्यावहारिक उपयोग है। विपणन प्रबन्धक का कार्य माँग के स्तर, समय एवं संरचना को इस प्रकार से प्रभावित करना है ताकि संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके।
विपणन (मार्केटिंग) शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है। संकुचित अर्थ में विपणन के अन्तर्गत उन समस्त क्रियाओं को शामिल किया जाता है जो वस्तुओं के उत्पादन केन्द्रों से लेकर उन्हें उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिये की जातीं हैं। इस दृष्टि से विपणन के क्षेत्र में केवल क्रय, विज्ञापन, परिवहन, संग्रह आदि क्रियाएँ ही आतीं हैं। किन्तु व्यापक दृष्टि से 'विपणन' में विक्रय-नीतियाँ, विक्रय प्रबन्ध व संगठन, मूल्य निर्धारण, वस्तु का विकास, व्यावसायिक जोखिमों को कम करने के साधन आदि सभी क्रियाओं का समावेश किया जा सकता है।
विपणन प्रबन्ध, प्रबन्ध का वह भाग है जिसके अन्तर्गत विपणन सम्बन्धी सभी क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं। इसके अन्तर्गत उत्पादन से पूर्व और पश्चात की क्रियाएँ तथा सेवायेँ सम्मिलित होती हैं। वस्तुओं और सेवाओं को ग्राहकों की आवश्यकतानुसार उत्पादित किया जाता है।
अमेरिकन मार्केटिंग एशोसिएशन के अनुसार,
- विक्रय प्रबन्ध का अर्थ किसी व्यावसायिक इकाई की विक्रय क्रियाओं के नियोजन, निर्देशन एवं नियन्त्रण से है जिनमें विक्रय शक्ति की भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, साज-सज्जा, कार्य-सुपुर्दगी (assignment), समानुदेशन, मार्ग अंकन, पर्यवेक्षण, परितोषण एवं अभिप्रेरण सम्मिलित है।
फिलिप केटलर (Philip Kotler) के अनुसार,
- संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये परस्पर लाभकारी विनियमों और लक्षित बाजार के साथ सम्बन्धों के सृजन, विकास, और अनुरक्षण के लिये अभिकल्पित कार्यक्रमों का विश्लेषण, नियोजन, क्रियान्वयन, और नियन्त्रण विपणन प्रबन्ध कहलाता है।
विपणन प्रबन्ध के उद्देश्य
- मांग का सृजन
- बाजार में हिस्सेदारी
- ग्राहक सन्तुष्टि के माध्यम से लाभप्रद विक्रय विस्तार
- साथ एवं जन-छवि