चंद्रवार गेट

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>Prashanttiwari123 द्वारा परिवर्तित १७:२७, २४ जून २०२० का अवतरण
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
साँचा:if empty
फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश
ग्रामीण
साँचा:location map
देशभारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलाफ़िरोज़ाबाद
 • घनत्वसाँचा:infobox settlement/densdisp
भाषा
 • आधिकारिकहिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)
पिन283103
टेलीफोन कोड05612
वाहन पंजीकरणUP 83
वेबसाइटfirozabad.nic.in

साँचा:template otherसाँचा:main other

चंद्रवार गेट फ़िरोज़ाबाद जिला के अंतर्गत आता है जिला फ़िरोज़ाबाद विक्रम संवत 1052 ईo में इस पूरे नगर को चंद्रवार नाम से जाना जाता था यह क्षेत्र भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव द्वारा शासित रहा है। फिरोजाबाद  का नाम अकबर के शासन में फिरोजशाह मनसबदार  द्वारा 1566 में दिया गया था। फिरोजाबाद की जनता एक लंबे समय से फिरोजाबाद के स्थान पर जनपद एवं नगर का नाम चंद्रवार नगर करने की मांग निरंतर कर रही है जनता की इस मांग के औचित्य निर्धारण के क्रम में राजस्व परिषद की सहमति अपेक्षित है एवं फिरोजाबाद का नाम चंद्रवार नगर के रूप में वापस मिलना न्यायसंगत प्रतीत होता है जनपद फिरोजाबाद एवं नगर फिरोजाबाद का नाम चंद्रवार नगर किए जाने से जहां एक और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार को बल मिलेगा तथा धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा वहीं दूसरी ओर इसकी वैदिक एवं पौराणिक पहचान भी रह सकेगी उक्त के दृष्टिगत जनपद फिरोजाबाद का नाम परिवर्तित कर जनपद चंद्रवार नगर किया जाना अपेक्षित है यहाँ पर मुहम्मद गोरी और जयचंद का युद्ध हुआ था चंद्रवार फ़िरोज़ाबाद नगर से 5 किलो मीटर दूर यमुना तट पर वसा हुआ है। वर्तमान में चंद्रवार किसी समय एक महत्व पूर्ण और सुसम्पन नगर था जिसके विसय में कतिपय जैन विद्वानों की यह मान्यता थी कि ये क्षत्र भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव द्वारा शासित रहा है। कहा जाता है कि चंद्र वार नगर की स्थापना चंद्रसेन ने की थी। 1392 ई0 अथवा 1397 ई0 में धनपाल द्वारा रचित ग्रन्थ बाहुबली चरित में चंद्रवार के संभरी राय, सारंग नरेंद्र, अभय चंद्र और रामचंद्र राजाओ का विवरण मिलता है।

इतिहास

चौहान वंश के राजा चन्द्रसेन का महल आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस महल के नजदीक ही राजा चंद्रसेन के पुत्र चंद्रपाल का किला भी है। इस किले को राजा चंद्रपाल ने अपने पिता की याद में बनवाया था। इस किले को चंद्रवाड़ के किले के नाम से जाना जाता है। यह किला शहर से करीब सात किलोमीटर दूर यमुना किनारे स्थित है।  राजा चंद्रसेन के महल से लेकर राजा चंद्रवाड़ के किले तक के इस पूरे इलाके को चंद्रवाड़ का नगर के नाम से जाना जाता है। कहने को ये पूरा नगर राजपूतों का था लेकिन आज इसमें प्राचीन जैन मूर्तियां और कलाकृतियां देखने को मिलती हैं। यह स्थान अब जैनियों की आस्था का केंद्र है राजा चन्द्रसेन कला प्रेमी होने के साथ ही जनप्रिय भी थे। उनके समय में पीड़ितों को हमेशा न्याय मिलता था और किसी तरह की कमी नहीं रहती थी। यही कारण है कि राज्य में राजा चंद्रसेन को बेहद सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। लेकिन फिरोजाबाद में मुगल शासकों का आवागमन शुरू होने के बाद राजा चन्द्रसेन का अस्तित्व धीरे—धीरे कम होने लगा। मुगल शासक मुहम्मद गौरी ने राजा पर आक्रमण कर उन्हें पराजित कर दिया और राजा के महल पर अपना अधिकार जमा लिया। इस दौरान मुहम्मद गौरी ने तोपें चलाकर राजा के साम्राज्य को नष्ट कर दिया था।

राजा चंद्रसेन के अस्तित्व को जीवित रखने के लिए उनके पुत्र चंद्रपाल ने बाद में यमुना किनारे किला बनवाया। इस किले को चंद्रवाड़ का किला कहा जाता था। विक्रम संवत 1052 में इस पूरे नगर को चंद्रवाड़ नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है कि कुछ वर्षों बाद राजपूतों के ये वंशज जैन धर्म से प्रभावित हो गए और उन्होंने इस धर्म को अपना लिया था। यही कारण है कि आज इस किले में प्राचीन जैन धर्म की मूर्तियां और कलाकृतियां और अन्य अवशेष देखने को मिलते हैं। अब फिरोजाबाद में यह स्थल जैन धर्म का तीर्थस्थल बन चुका है। देश के विभिन्न हिस्सों से जैन समाज के लोग यहां बड़ी आस्था के साथ मूर्तियों के दर्शन करने आते हैं। यह पूरा नगर आज फिरोजाबाद की धरोहर है। यहां आज भी प्राचीन सिक्कों के साथ ही अन्य कई प्राचीन अवशेष भी मिलते हैं। लेकिन पुरातत्व विभाग एवं पर्यटन विभाग इस ओर कोई ध्यान नहीं देता। य​ही कारण है कि आज चंद्रवाड़ नगर खंडहर में तब्दील हो चुका है। 

चंद्रवार के इतिहास में चंद्रवार के तीन राजाओं का उल्लेख मुख्य रूप से है 1 चंद्रसेन 2 चंद्रसेन का पुत्र चंद्रपाल 3 चंद्रपाल का पौत्र जयपाल ! बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वह तीन वार चंद्रवार आया था। जैन धर्म में एक प्राचीन काव्य ग्रंथ है बाहुबली चरित इस ग्रंथ की रचना सन 1397 मैं धनपाल द्वितीय नामक कवि ने चंद्रवार नगर में ही की थी कवि महोदय गुजरात प्रदेश में स्थित पंढरपुर वर्तमान पालनपुर के निवासी थे और अपने गुरु की आज्ञा अनुसार भगवान नेमिनाथ के जन्मस्थान सॉरी पर तीर्थ की यात्रा करने हेतु भ्रमण कर रहे थे मार्ग में उन्होंने चंद्रवार नामक नगर देखा जो की धन परिपूर्ण और उत्तम जिनालयों से विभूषित था कवि धनपाल को चंदवार के मंत्री तथा रास रिष्टि साहिबा सादर का अवसर प्राप्त हुआ और उनकी प्रेरणा से ही कवि ने अपने इस ग्रंथ की रचना की ग्रंथ में चंद्रवार के तत्कालीन राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रामचंद्र का भी उल्लेख है तथा चंदवार की महिमा का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है धनपाल ने श्री कृष्ण के पिता वासुदेव काल की नगरी बताया है उससे इतना तो सिद्ध होता है कि आज से लगभग 6000 वर्ष पूर्व भी चंदबार को एक प्राचीन नगर माना जाता था जैन धर्मावलंबियों की मान्यता है कि भगवान नेमिनाथ के पिता समुद्रविजय भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव के बड़े भाई थे चंदवार निवास के समय चंदवार का राजा रामचंद्र चौहान परंपरागत रूप से उसी चंद्रसेन का वंशज प्रमाणित होता है जिसे चंदवार का संस्थापक माना जाता है

हिंदी विश्वकोश भाग 7 में लिखा है कि चंद्रपाल इटावा अंचल के एक राजा का नाम था कहा जाता है कि राजा चंद्र पांडे राज्य प्राप्ति के बाद चंद्रवार में संवाद 1053 में एक प्रतिष्ठा कराई थी उनके द्वारा प्रतिष्ठापित स्फटिक मणि की एक मूर्ति जो एक फोटो अवगाहना लिए हुए है 8 वे तीर्थकर चंद्रप्रभु की थी और जिसे यमुना की धारा से निकालकर फिरोजाबाद में लाया गया था अब फिरोजाबाद के मंदिर में विद्यमान है

ईशा की 12 वीं शताब्दी में श्रीधर नामक कवि ने भविष्य अंत चरित्र नामक काव्य ग्रंथ की रचना चंदबार नगर में स्थित मातृवंशीय नारायण के पुत्र सुपरसाहू की प्रेरणा से सन 1173 इसके आसपास की थी 1197 - 98 में ऐबक ने चंदबार और कन्नौज पर अधिकार कर लिया था कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु पोलो खेलते हुए घोड़े से गिरकर हो गई थी याहिया ने तारीख ए मुबारकशाही में लिखा है कि सन 1414 इसमें ताज उल मुल्क में चंद्रवार को नष्ट भ्रष्ट कर दिया दिल्ली के पूजा सेठ के जैन मंदिर में विद्वान चौबीसी धातु की जैन मूर्ति की प्रतिष्ठा चंद्रवार में सन 1454 में हुई थी चंद्रवार से मूर्ति को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया दिल्ली के अन्य व्यवसाई भी चंद्रवार से संबंधित उस समय रहे होंगेचंद्रवार राजवंश की दूसरी शाखा भदावर राज्य में भी बहलोल लोदी को लोहा लेना पड़ा था सन 1458 में जौनपुर के शाह हसन से बहलोल का युद्ध चंद्रवार में हुआ था

सन्दर्भ