अजीव
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अजीव शब्द का अर्थ होता हैं जिसमें जान न हो। कुर्सी मेज, पन्ना आदि अजीव वस्तु के उदहारण हैं। जैन दर्शन के अनुसार यह सात तत्त्वों में से एक तत्त्व हैं।[१]इस में स्वयं का बल नहीं होता है । और ये स्वयं गति नहीं कर सकते हैं।
जैन दर्शन
जैन दर्शन के अनुसार अजीव द्रव्य के पांच भेद हैं:-
- धर्मास्तिकाय
- अधर्मास्तिकाय
- आकाशास्तिकाय
- पुद्गलास्तिकाय
- काल
आधर्मास्तिकाय
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आकाशास्तिकाय
आकाश द्रव्य के दो भेद हैं:[२]
- लोकाक्ष
- अलोकाकाक्ष
पुद्ग़लास्तिकाय
पुद्ग़ल शब्द दो शब्दों के मेल से बना हैं: पुद् यानि की एकीकरण और गल यानि की विभाजन। जिसका निरंतर एकीकरण और विभाजन होता हैं उससे पुद्ग़ल कहते हैं। अंग्रेजी भाषा में इसे मैटर (matter) कहते हैं। जैन ग्रंथों में पुद्ग़ल की निम्नलिखित विशेषताएं बताई गयीं हैं[३] :-
- स्पर्श (स्पर्श किया जा सकता हैं)।
- रस (स्वाद लिया जा सकता हैं)।
- गंध (सूंघा जा सकता हैं)।
- वर्ण (देखा जा सकता हैं)।
काल
काल को दो तरह से समझा जा सकता हैं:निश्चयनय और व्यवहारनय
सन्दर्भ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Sharma, C. (1997)
- ↑ "Sparsharasagandhavarnavantah pudgalah" - आचार्य उमास्वामी, तत्त्वार्थ सूत्र, v.23