दस्तगीर साहिब
साँचा:if empty दस्तगीर साहिब | |
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दस्तगीर साहिब | |
साँचा:location map | |
देश | साँचा:flag |
राज्य | जम्मू और कश्मीर |
ज़िला | श्रीनगर |
• घनत्व | साँचा:infobox settlement/densdisp |
भाषा | |
• आधिकारिक | उर्दू, कश्मीरी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
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दस्तगीर साहिब (دستگیر صاحب) भारत के जम्मू व कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के खानियार इलाके में स्थित एक प्रसिद्ध सूफ़ी तीर्थस्थल है। यह सूफ़ी संत अब्दुल क़ादिर जीलानी से सम्बंधित है[१] क्योंकि यहाँ उनका एक बाल सुरक्षित है, हालांकि वह स्वयं यहाँ कभी नहीं आये थे। उनके इस केश को 'मो-ए-पाक' कहा जाता है (फ़ारसी भाषा में 'मू' या 'मो' शब्द का अर्थ 'बाल' होता है)। दस्तगीर साहिब का निर्माण सन् १८०६ में हुआ था और १८७७ में इसका कुछ विस्तार किया गया। केश के अलावा यहाँ हज़रत अबु बकर द्वारा लिखी गई क़ुरान की भी एक प्रति मौजूद है।[२]
सम्बन्धित तथ्य
दस्तगीर साहिब के इर्द-गिर्द चहल-पहल वाला खानियार बाज़ार है।[३] यह इमारत लकड़ी की बनी हुई है और २५ जून २०१२ में इसमें आग लग गई। यहाँ की पवित्र वस्तुएँ एक अग्निरोधक तिजोरी में रखी होने के कारण बिना हानि के बच गई। सरकार ने इसका पुनर्निर्माण करवाने का काम आरम्भ किया है जो २ वर्षों में पूरा करने की योजना है।
हज़रत अब्दुल क़ादिर जीलानी को ग़ौस-ए-आज़म (غوث اعظم) भी कहते हैं और मान्यता है कि दस्तगीर साहिब में मौजूद पाँच क़ब्रों में से एक उनके एक क़रीबी साथी की है। हर वर्ष यहाँ ग़ौस-ए-आज़म का उर्स (मरण-तिथि) मनाया जाता है, जिसमें कश्मीर-भर से श्रद्धालू हाज़री देने आते हैं।[४] दस्तगीर साहिब में आस्था रखने वालों में केवल मुस्लिम ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी शामिल हैं और ये साझा कश्मीरी संस्कृति की विरासत का हिस्सा भी हैं।[५]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
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