शिवराज भूषण
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शिवराज भूषण, कवि भूषण की प्रसिद्ध रचना है। इसमें कुल ३८५ पद्य हैं। भूषण ने अपनी इस कृति की रचना-तिथि ज्येष्ठ वदी त्रयोदशी, रविवार, संम्वत् 1730 (29 अप्रैल, 1673 ई.) को दी है। इस ग्रन्थ में उल्लिखित छत्रपती शिवाजी महाराज विषयक ऐतिहासिक घटनाएँ 1673 ई. तक घटित हो चुकी थीं। इससे भी इस ग्रन्थ का उक्त रचनाकाल ठीक ठहरता है तथा साथ में शिवाजी और भूषण की समसामयिकता भी सिद्ध हो जाती है। 'शिवराज-भूषण' में ३८५ छन्द हैं। रीतिकाल के कवि होने के कारण भूषण ने अपना प्रधान ग्रंथ 'शिवराजभूषण' अलंकार के ग्रंथ के रूप में बनाया। दोहों में अलंकारों की परिभाषा दी गयी है तथा कवित्त एवं सवैया छन्दों में उदाहरण दिये गये हैं, जिनमें शिवाजी के कार्यकलापों का वर्णन किया गया है।[१]
शिवराज भूषण की एक बानगी देखिये-
- अथ उपमेय उपमालंकार-वर्णनम्
- जहाँ परस्पर होत है उपमेयो उपमान।
- भूषन उपमेयोपमा ताहि बखानत जान॥४७॥
- तेरौ तेज सरजा समथ्थ दिनकर सो है दिनकर सोहै तेरे तेज के निकर सौ।
- भ्वैसिला भुवाल तेरौ जस हिमकर सो है हिमकर सोहै तेरे जस के अकर सौ।
- भूषन भनत तेरौ हियौ रतनाकर सौ रतनाकर है तेरे हिय सुखकर सौ।
- साहि के सपूत सिव साहि दानी तेरौ कर सुरतरु सो है सुरतरु तेरे कर सौ ॥४८॥
- जहाँ एक उपमेय कौं होत बहुत उपमान।
- ताहि कहत मालोपमा भूषन सकल सुजान॥४९॥
- इंद्र जिमि जंभ पर, बाड़व सुअंभ पर रावन सदंभ पर रघुकुल राज हैं।
- पौन वारिवाह पर, संभु रतिनाह पर ज्यों सहस्रबाहु पर राम द्विजराज हैं।
- दावा द्रुमदंड पर चीता मृगझुंड पर भूषण वितुंड पर जैसे मृगराज हैं।
- तेज तम अंस पर कान्ह जिम कंस पर यौं मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज हैं॥५०॥
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- डाढ़ी के रखैयन की डाढ़ी-सी रहति छाती,
- बाढ़ी मरजाद जस हद्द हिंदुवाने की।
- कढ़ि गई रैयत के मन की कसक सब,
- मिटि गई ठसक तमाम तुरकाने की॥
- भूषन भनत दिल्लीपति दिल धाक धाक,
- सुनि सुनि धाक सिवराज मरदाने की।
- मोटी भई चंडी बिन चोटी के चबाय सीस,
- खोटी भई संपति चकत्ता के घराने की ॥
- सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबे के जोग,
- ताहि खरो कियो जाय जारन के नियरे।
- जानि गैरमिसिल गुसीले गुसा धारि उर,
- कीन्हों ना सलाम न बचन बोले सियरे ॥
- भूषन भनत महाबीर बलकन लाग्यो,
- सारी पातसाही के उड़ाय गए जियरे।
- तमक तें लाल मुख सिवा को निरखि भयो,
- स्याह मुख नौरँग, सिपाह मुख पियरे॥
- दारा की न दौर यह, रार नहीं खजुबे की,
- बाँधिबो नहीं है कैधौं मीर सहवाल को।
- मठ विस्वनाथ को, न बास ग्राम गोकुल को,
- देवी को न देहरा, न मंदिर गोपाल को॥
- गाढ़े गढ़ लीन्हें अरु बैरी कतलाम कीन्हें,
- ठौर ठौर हासिल उगाहत हैं साल को।
- बूड़ति है दिल्ली सो सँभारै क्यों न दिल्लीपति,
- धाक्का आनि लाग्यौ सिवराज महाकाल को ॥
- चकित चकत्ता चौंकि चौंकि उठै बार बार,
- दिल्ली दहसति चितै चाहि करषति है।
- बिलखि बदन बिलखत बिजैपुर पति,
- फिरत फिरंगिन की नारी फरकति है ॥
- थर थर काँपत कुतुब साहि गोलकुंडा,
- हहरि हबस भूप भीर भरकति है।
- राजा सिवराज के नगारन की धाक सुनि,
- केते बादसाहन की छाती धारकति है ॥
- जिहि फन फूतकार उड़त पहार भार,
- कूरम कठिन जनु कमल बिदलिगो।
- विषजाल ज्वालामुखी लवलीन होत जिन,
- झारन चिकारि मद दिग्गज उगलिगो ॥
- कीन्हो जिहि पान पयपान सो जहान कुल,
- कोलहू उछलि जलसिंधु खलभलिगो।
- खग्ग खगराज महाराज सिवराज जू को,
- अखिल भुजंग मुग़लद्दल निगल
सन्दर्भ
- ↑ भूषण ग्रन्थावली स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (लेखक : आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र)