दत्तात्रय रामचन्द्र कर्पेकर
दत्तात्रय रामचन्द्र कापरेकर | |
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चित्र:D. R. Kaprekar.gif | |
जन्म |
1905 डहाणू, महाराष्ट्र |
मृत्यु |
1986 देवलाली, महाराष्ट्र |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
व्यवसाय | विद्यालय में अध्यापक |
प्रसिद्धि कारण | मनोरंजक गणित के अनेक परिणामों के लिए |
दत्तात्रय रामचंद्र कापरेकर (१९०५–१९८६) एक भारतीय गणितज्ञ थे। उन्होने संख्या सिद्धान्त के क्षेत्र में अनेक योगदान किया, जिनमें से कर्पेकर संख्या तथा कर्पेकर स्थिरांक प्रमुख हैं। यद्यपि उन्होने औपचारिक रूप से परास्नातक प्रशिक्षण नहीं पाया था और एक विद्यालय में अध्यापन करते थे, फिर भी उन्होने व्यापक रूप से शोधपत्र प्रकाशन किए और मनोरंजक गणित के क्षेत्र में विख्यात हुए। [१]
जीवन परिचय
दत्तात्रय रामचन्द्र कर्पेकर का जन्म 17 जनवरी, 1905 को महाराष्ट्र के डहाणू में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा थाणे और पुणे में, तथा स्नातक की शिक्षा मुम्बई विश्वविद्यालय से हुई थी। उन्होंने गणित या किसी अन्य विषय में स्नातकोत्तर शिक्षा नहीं पायी थी और नासिक में एक विद्यालय में अध्यापक थे। गणित में उच्च शिक्षा न प्राप्त करने के बावजूद उन्होंने संख्या सिद्धान्त पर काम किया।
कुछ स्थिरांक और बहुत सी संख्यायें उनके नाम से जाने जाते हैं। वे मनोरंजात्मक गणित के क्षेत्र में जाने माने व्यक्ति थे। उच्च शिक्षा न प्राप्त करने के कारण भारत में गणितज्ञों ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जो उन्हें मिलना चाहिये था। उनके शोधपत्र भी निम्न श्रेणी के गणित की पत्रिकाओं में छपते थे। वे गणित के सम्मेलनों में अपने पैसे से जाते थे और अंको पर व्याख्यान देते थे। उन्हें भारत में सम्मान तब मिला मार्टिन गार्डनर ने साईंटिफिक अमेरिकन के मार्च, 1975 अंक में, उनके बारे में लिखा।
कर्पेकर स्थिरांक
संख्या 6174 को कर्पेकर स्थिरांक (Kaprekar constant) कहते हैं। इस संख्या का एक विशेष गुण है जिसका पता कापरेकर ने लगाया था। इसलिये इसे कापरेकर स्थिरांक कहा जाता है।
- (१) चार अंक की कोई भी संख्या लीजिये जिसके दो अंक भिन्न हों।
- (२) संख्या के अंको को आरोही और अवरोही क्रम में लिखें ।इससे आपको दो संख्यायें मिलेंगी।
- (३) अब बड़ी संख्या को छोटी से घटाएँ।
जो संख्या मिले इस पर पुनः क्रम संख्या 2 तथा 3 वाली प्रक्रिया दोहराएँ। इस प्रक्रिया को 'कर्पेकर व्यवहार' कहते हैं। कुछ निश्चित चरणों के बाद आपको संख्या 6174 मिलेगी। इसके साथ 'कर्पेकर व्यवहार' अपनाने पर भी फिर यही संख्या मिलती है, इसीलिये इसे कर्पेकर स्थिरांक कहते हैं ।
उदाहरण- हमने संख्या ली 3141 । अब प्रक्रिया क्रमांक 2 को दोहराने पर ऐसे क्रम चलेगा-
- 4311 - 1134 = 3177
- 7731 - 1377 = 6354
- 6543 - 3456 = 3087
- 8730 - 0378 = 8352
- 8532 - 2358 = 6174
- 7641 - 1467 = 6174
कर्पेकर संख्या
ऐसी संख्या को कापरेकर संख्या कहते हैं जिसके वर्ग को दो ऐसे 'भागों' में विभाजित किया जा सके कि उन्हें जोड़कर हम पुनः प्रारम्भिक संख्या को प्राप्त कर सकें।
उदाहरण के तौर पर यदि हम ५५ की संख्या को लें तब
- ५५२ = ५५ x ५५ = ३०२५
- ३० + २५ = ५५
अतः ५५ एक कर्पेकर संख्या है। इस तरह के अन्य संख्याये हैं -
- १, ९, ४५, ५५, ९९, २९७, ७०३, ९९९, २२२३, २७२८, ४८७९, ४९५०, ५०५०, ५२९२, ७२७२, ७७७७, ९९९९, १७३४४, २२२२२, ३८९६२, ७७७७८, ८२६५६, ९५१२१, ९९९९९, १४२८५७, १४८१४९, १८१८१९, १८७११०, २०८४९५, ३१८६८२, ३२९९६७, ३५१३५२, ३५६६४३, ३९०३१३, ४६१५३९, ४६६८३०, ४९९५००, ५००५००, ५३३१७० आदि।
डेमलो संख्याएँ
1, 11, 111, 1111, आदि Repunit संख्याएँ हैं, अर्थात Repeated Unit संख्याएँ। इनके वर्ग को डेमेलो संख्या कहते हैं जिनका आविष्कार कर्पेकर ने किया था।
देखिए,
- 1² = 1
- 11² = 121
- 111² = 12321
- 1111² = 1234321
डेमलो संख्या के नामकरण की भी कहानी है। डेमलो (Demlo) कोई रेलवे स्टेशन है जहाँ उन्हें इस संख्या का विचार आया था।
हर्षद संख्या
हर्षद संख्याओ वे संख्याएँ हैं जो अपने अंको के योग से भाज्य होती हैं। काप्रेकर ने इनका आविष्कार किया था और इन्हे हर्षद संख्या अर्थात 'आनन्ददायक संख्या 'कहा था।
उदाहरण के लिये 12 एक हर्षद संख्या है क्योंकि यह संख्या 1 + 2 = 3 से भाज्य है।