कन्हाई लाल दत्त

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कन्हाईलाल दत्त
কানাইলাল দত্ত
Kanailal Dutta.jpg
कम्हाईलाल दत्त
जन्म 30 August 1888
चन्दननगर, हुगली जिला, बंगाल प्रेसिडेन्सी, ब्रिटिश भारत
मृत्यु 10 November 1908(1908-11-10) (उम्र साँचा:age)
Kolkata, Bengal, British India
राष्ट्रीयता ब्रिटिश भारतBritish India]]
जातीयता बंगाली
व्यवसाय क्रान्तिकारी
धार्मिक मान्यता हिन्दू
माता-पिता चुन्नीलाल दत्त

कन्हाई लाल दत्त (बांग्ला : কানাইলাল দত্ত ; 30 अगस्त 1888 – 10 नवम्बर 1908) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक क्रान्तिकारी थे। वे युगान्तर से सम्बद्ध थे। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के चन्दननगर में कायस्थ परिवार में हुआ था।

जीवन परिचय

कन्हाई लाल दत्त का जन्म जन्माष्टमी की कालीअधेरी रात में अपने मामा के घर चन्दनंनगर में हुआ था, कदाचित इसी से उनका नाम कन्हाई पड़ा हो। यद्यपि उनका आरम्भिक नाम सर्वतोष था। चन्दन नगर तब फ्रांसीसी उपनिवेश था। वास्तव में तो उनका पैत्रिक घर बंगाल के ही श्रीराम पुर में था। कन्हाई जब चार वर्ष के थे तब उनके पिता उनको लेकर बम्बई चले गये थे। पांच वर्ष बम्बई में रहने के बाद नौ वर्ष की आयु में वह वापस चन्दन नगर आ गये थे और वही उनकी प्रारम्भिक से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा हुई। चन्दन नगर के डुप्ले कालेज से उन्होंने स्नातक की परीक्षा दी थी। उसी कालेज के एक प्राध्यापक चारु चन्द्र राय से गहनता के कारण कन्हाई को क्रान्ति पथ का परिचय प्राप्त हुआ था।

चन्दन नगर में सर्वप्रथम क्रान्ति की योजना बनाने वाले थे - संध्या के सम्पादक ब्रम्हबाधव उपाध्याय। कन्हाई उनके सम्पर्क में भी अपने प्राध्यापक के माध्यम से ही आये थे। स्नातक की परीक्षा देने के उपरांत कन्हाई कलकत्ता आ गये और युगांतर कार्यालय में कार्य करने लगे। कलकत्ता की अनुशीलन समिति से जब उनका सम्पर्क हो गया तो न केवल वह उसके सदस्य बने अपितु उन्होंने अपने घर ही उसकी एक शाखा भी स्थापित की तथा बाद में अपने क्षेत्र में पांच अन्य शाखाओं की भी स्थापना की थी। इन शाखाओं में व्यायाम तथा लाठी आदि चलाने की शिक्षा दी जाती थी। बाहर से देखकर उन्हें कोई भी विप्लवी समिति की शाखा नहीं समझ सकता था। स्वयं कन्हाई ने विप्लवी बनने की दीक्षा अमावस्या की रात्री में एक बटवृक्ष के तले ली थी।

खुदीराम बोस द्वारा किये गये मुजफ्फरपुर बम काण्ड के उपरान्त अंग्रेजी राज्य की रातों की नीद हराम हो गयी थी। सारा अंग्रेजी शासन चौकन्ना हो हो गया था। चारो ओर संदिग्ध लोगो की खोज आरम्भ कर दी गयी थी। खूब दौड़-धूप के बाद पुलिस को पता चला कि इन क्रान्तिकारियो का अड्डा मानिकतल्ला के एक बगीचे में है। यह बगीचा अरविन्द घोष के भाई सिविल सर्जन डाक्टर वारीन्द्र घोष का था। गुप्तचर विभाग वह से क्रान्तिकारियो की गतिविधि पर दृष्टि रखने लगे। दुर्भाग्य से क्रान्तिकारियो गुप्तचर विभाग की इस कारस्तानी से सर्वथा अनभिज्ञ रहे। इसका परिणाम क्रान्तिकारियो के लिए भारी संकटकारी साबित हुआ। गुप्तचर विभाग को इससे सफलता मिली और उसने देश के सर्वप्रथम बम षड्यंत्र का पर्दाफाश कर दिया। इसमें बगीचे के मालिक वारींद्र घोष उनके भाई अरविन्द घोष , नलिनी कन्हाई लाल दत्त समेत लगभग 35 देशभक्त लोगो को बन्दी बनाने में पुलिस सफल हो गयी।

इन सब बन्दियो को अलीपुर कारागार में रखा गया था और वही पर इन क्रान्तिकारियो पर अभियोग चलाया गया। इसी कारण इस अभियोग का नाम अलीपुर षड्यंत्र रखा गया था। कन्हाई लाल दत्त के साथ-साथ उसके प्रेरक प्रोफ़ेसर चारु चन्द्र राय भी बन्दी बनाये गये थे। सब पर अभियोग चला किन्तु चारू चन्द्र राय को फ्रांसीसी सरकार की बस्ती का नागरिक होने के कारण रिहा कर दिया गया।

अलीपुर अभियोग में भी नरेन्द्र गोस्वामी नामक का एक व्यक्ति भी बन्दी बनाया गया था जिसने सरकारी गवाह बनना स्वीकार कर लिया। उसके इस देशद्रोह से क्रान्तिकारियो के रहे-सहे प्रयत्नों पर पर पानी फिर जाने की आशंका होने लगी। यद्यपि नरेन्द्र के इस कुकृत्य की देशभक्त समुदाय द्वारा चारो ओर भर्त्सना होती रही किन्तु इससे अभियोग में तो किसी प्रकार की सहायता मिलने की संभावना थी ही नही। यहाँ तक कि अभियोग के दौरान ही एक दिन भरी अदालत में किसी अभियुक्त ने उसको लात तक मार दी थी। उसका परिणाम यह हुआ कि एक तो वह इन बन्दियो के सामने आने से सदा बचता रहा और दूसरे सरकार ने भी उसके लिए सुरक्षा की व्यवस्था कर दी। उसको दो सरकारी अंगरक्षक दिए गये।

अब जेल में ही कन्हाई लाल दत्त और सत्येन्द्र बसु ने इस देशद्रोही को सबक सिखाने की एक अदभुत योजना बना डाली। उन्होंने निश्चय किया कि नरेंद्र अपना ब्यान पूरा करे उससे पूर्व ही उसको इस संसार से प्रयाण कर लेना चाहिए। कन्हाई लाल दत्त और सत्येन्द्र की बुद्धि निरंतर कार्य कर रही थी। उन्होंने सबसे पहले जेल के वाडरो से घनिष्टता बढाई उन्हें बहुत हद तक प्रभावित कर लिया। उसके फलस्वरूप जेल के भीतर लाये जाने वाले कटहल- मछली के भीतर रखी दो पिस्तौल को प्राप्त करने में वो सफल हो गये। उसमे किसी प्रकार की बाधा उपस्थित नहीं हुई। वे पिस्तौल किन वाडरो द्वारा आयोजित किये गये और किसने बाहर से भेजे थी , इस तथ्य को बाह्य जगत कभी नहीं जान पाया।

सितम्बर माह की तिथि निकट आ गयी जिस तिथि को नरेन्द्र को अपना वक्तव्य देना निर्धारित किया गया था। नरेन्द्र नियमित रूप से प्रतिदिन सत्येन्द्र और कन्हाई लाल के पास मिलने के लिए आता था। 31 अगस्त 1908 के दिन भी वह अपने समय पर उनके पास आया। तभी सत्येन्द्र ने अपने सिरहाने रखी पिस्तौल से नरेन्द्र पर वार किया गोली उसके पैर में लगी किन्तु वह उससे गिरा नही। सत्येन्द्र ने तभी दूसरी गोली चलाई तब तक नरेन्द्र भागने लगा था। सत्येन्द्र और कन्हाई दोनों ने उसके निकट पहुचकर उसे गोलियों से छलनी कर दिया।

कन्हाई को 10 नवम्बर 1908 को फांसी देने का दिन तय किया गया। सत्येन्द्र को दो दिन बाद प्राण दण्ड दिया गया।