छडी पूजा
इस लेख को भाषा और वर्तनी के लिए प्रतिलिपि सम्पादन की आवश्यकता हो सकती है। आप इसे संपादित करके मदद कर सकते हैं। (अगस्त 2015) |
छड़ी पूजा एक प्राचीनतम मानवी सांस्कृतिक परंपरा है। छड़ी का उपयोग केवल पवित्रता स्वरूप करते है तो उसे देवक-स्तंभ कहा जाता है। छड़ी का उपयोग ध्वज के रुप मे किया जाता है तो उसे ध्वज स्तंभ कहते हैं। छड़ी पूजा नॉर्वेजिया में Mære चर्च, इस्रायल में Asherah pole की पूजा ज्यू धर्म की संस्थापना से पहले से होती थी। विश्वभर विभिन्न आदीवासी समुदायों में छड़ी पूजा परंपरा का निर्वाह दिखाई देता है।
भारतीय उपखंड में बलूचिस्तान की हिंगलाज माता एवं पहलगाम छड़ी मुबारक, महाराष्ट्र में जोतिबा गुड़ी (छड़ी) के साथ यात्रा करने की परंपरा है। मध्यप्रदेशराज्य के निमाड प्रांत में छड़ी माता की पूजा एवं छड़ी नृत्य परंपरा है। राजस्थान में गोगाजी मंदिर मे छड़ियों की पूजा की जाती है।
डॉ॰ बिद्युत लता रे के मतानुसार उड़ीसा राज्य के आदीवासियों में प्रचलित खंबेश्वरी देवी की पूजा छड़ी पूजा का प्रकार है और खंबेश्वरीची पूजा वैदिक हिंदू धर्म की मूर्ती पूजा से भी प्राचीन होने की संभावना है। [१]
महाराष्ट्रमें पवित्र छड़ी को गुढ़ी कहा जाता है। महाराष्ट्र की गुढ़ी परंपरा के प्रमाण १३वी सदी से मराठी साहित्य में दिखाई देते हैं। चैत्र शुद्ध प्रतिपदा के दिन महाराष्ट्र राज्य में वर्षारंभादिन के रुप में मनाते हुए उसी दिन को गुड़ी पड़वा कहते हैं। महाराष्ट्र में गुड़ी याने छ्ड़ी की पूजा की जाती है।
छड़ी नृत्य
संदर्भ सूची
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।