ब्राह्म समाज

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ब्राह्म समाज भारत का एक सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन था जिसने बंगाल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया। इसके प्रवर्तक, राजा राममोहन राय, अपने समय के विशिष्ट समाज सुधारक थे। 1828 में ब्रह्म समाज को राजा राममोहन और द्वारकानाथ टैगोर ने स्थापित किया था। इसका एक उद्देश्य भिन्न भिन्न धार्मिक आस्थाओं में बँटी हुई जनता को एक जुट करना तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना था। उन्होंने ब्राह्म समाज के अन्तर्गत कई धार्मिक रूढियों को बंद करा दिया जैसे- सती प्रथा, बाल विवाह, जाति तंत्र और अन्य सामाजिक।

सन 1815 में राजाराम मोहन राय ने "आत्मीय सभा" की स्थापना की। वो 1828 में ब्राह्म समाज के नाम से जाना गया। देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने उसे आगे बढ़ाया। बाद में केशव चंद्र सेन जुड़े। उन दोनों के बीच मतभेद के कारण केशव चंद्र सेन ने सन १८६६ "भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज" नाम की संस्था की स्थापना की।

सिद्धान्त

1. ईश्वर एक है और वह संसार का निर्माणकर्ता है।

2.आत्मा अमर है।

3.मनुष्य को अहिंसा अपनाना चाहिए।

4. सभी मानव समान है।

उद्देश्य
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1. हिन्दू धर्म की कुरूतियों को दूर करते हुए,बौद्धिक एवम् तार्किक जीवन पर बल देना।

2.एकेश्वरवाद पर बल।

3.समाजिक कुरूतियों को समाप्त करना।

कार्य

1.उपनिषद & वेदों की महत्ता को सबके सामने लाया।

2.ब्राह्मणवाद, मूर्ति पूजा, अन्धविश्वाश ,और कर्मकाण्ड का विरोध।

3. समाज में व्याप्त सती प्रथा,पर्दा प्रथा,बाल विवाह विधवा विवाह के विरोध में जोरदार संघर्ष।

4.किसानो, मजदूरो, श्रमिको के हित में बोलना।

5. पाश्चत्य दर्शन के बेहतरीन तत्वों को अपनाने की कोशिश करना।

उपलब्धि
  • 1829 में विलियम बेंटिक ने कानून बनाकर सती प्रथा को अवैध घोषित किया।।
  • समाज में काफी हद तक सुधार आया
  • समाज में जाति, धर्म इत्यादि पर आधारित भेदभाव पर काफी हद तक कमी आई।

इन्हें भी देखें


Atmiya Sabha ki sthapna Raja Ram Mohan Roy Ne 1814 me ki thi