रोहिणी नदी
रोहिणी अथवा रोहिणी नदी का उद्गम नेपाल के लुम्बिनी क्षेत्र के रूपनदेई और कपिलवस्तु जिलों में शिवालिक पर्वत की चौरिया पहाड़ियों से होता है और यह दक्षिण की ओर बहते हुए भातरीय राज्य उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है। गोरखपुर के पास यह राप्ती नदी में बायीं ओर से मिलती है जो इसके बाद गौरा बरहज में घाघरा में मिल जाती है तथा घाघरा बाद में गंगा में मिलती है।[१]
कुछ बौद्ध लेखों के अनुसार शाक्यों का नगर कपिलवत्थु और कोलियों का नगर कोलिय इसी रोहिणी नदी के दो किनारों पर स्थित थे। दोनों नगरों के कृषक खेतों की सिंचाई हेतु इस नदी के पानी का इस्तेमाल करते थे। एक साल वर्षा कम होने के परिणामस्वरूप सूखा पड़ने और धान की फसल के सूखना शुरू हो जाने पर दोनों नगरों के लोगों ने इसे अपने खेतों की ओर मोड़ने की इच्छा की। कोलिय के निवासियों ने कहा कि चूँकि दोनों किनारों के लोगों के इस्तेमाल भर का पानी मौजूद नहीं उन्हें एक बार नदी का पूरा पानी अपने खेतों को मोड़ने से धान की फसल पकने तक जीवित रह सकती है। दूसरी ओर कपिलवस्तु के लोगों ने तर्क दिया कि इस तरह वे पानी से वंचित रह जायेंगे और निश्चय ही उनकी फसलें बर्बाद हो जाएँगी और उन्हें दूसरों से अन्न खरीदना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वे भोजन खरीदने के लिये अपनी संपत्ति और धन दूसरे किनारे के लोगों को व्यापर मूल्य केरूप में चुकाने के लिये तैयार नहीं हैं। दोनों तरफ के लोग पानी चाहते थे और उनके बीच आरोप-प्रत्यारोप और खराब भाषा के प्रयोग से काफ़ी दुर्भावना उत्पन्न हो गयी। जो झगड़ा किसानों के बिच आरंभ हुआ था अंततः मंत्रियों से होते हुए शासकों तक पहुँचा और दोनों ओर के लोग युद्ध के लिये तैयार हो गये।[२]
बौद्ध परंपरा यह मानती है कि सिद्धार्थ गौतम ने कपिलवस्तु लौटने पर इस नदी को पर किया था।[३]
२००७ - २००८ की बाढ़ के दौरान एक बाँध के टूट जाने से लगभग २८ - ३५ लोग बचाव दल कि एक नाव के डूब जाने से उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के हरखपुर गाँव में मारे गये थे।.[४] ३० लोगों की क्षमता वाली इस नाव पर लगभग ८५ - ९० लोग सवार थे[५] जिनमें ज्यादातर औरतें और बच्चे थे।.[६]
टिप्पणियाँ
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