पाबूजी
पाबूजी राजस्थान के लोक-देवता हैं जिनकी पूजा राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों, गुजरात और सिंध (पाकिस्तान) तक होती है।[१] इन्हें पशुओं के रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है और राजस्थान में ऊँटो के बीमार होने पर इनकी पूजा होती है।
कथा
प्रचलित वाचिक कथा के अनुसार पाबूजी राठौड़ का जन्म कोलूगढ़ के दुर्गपति के घर हुआ था। यह कथा देवल नामक एक चारणी के साथ शुरू होती है जो मारवाड़ के इलाके में गायें पालती और चराती थी। कथा में देवल को अद्वितीय सुंदरी और शक्ति का अवतार माना गया है। देवल के पास काले रंग की एक घोड़ी है जिसका नाम कालिमी (या केसर कालमी) है। जयाल के सामंत जींद राव को कालिमी घोड़ी पसंद आ जाती है वह उसे प्राप्त करने का प्रयास करता है। सुरक्षा के लिए देवल कोलूगढ़ के सामंत के यहाँ चली आती है जो उसे अपनी पुत्री की तरह शरण देते हैं साथ ही उसकी गायों की रक्षा करने का वचन भी देते हैं। इसी दौरान जींद राव देवल की गायें हँका ले जाता है। देवल अपनी कालिमी घोड़ी पाबूजी को दे देती है और पाबूजी अपने आदमियों के साथ देवल की गायों को छुड़ाने जाते हैं। युद्ध में पाबूजी की मृत्यु हो जाती है।[२][३]
समकालीन संदर्भ
पाबूजी की कथा का संकलन और इसे लिपिबद्ध करने का प्रयास जॉन डी. स्मिथ द्वारा दि एपिक ऑफ़ पाबूजी के नाम से किया गया। यह 1991 में कैंब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित हुआ। इसका एक संक्षिप्त वर्शन वर्ष 2005 में छपा जो वर्तमान में प्राप्य है। उक्त कथा का एक विस्तृत विवेचन ए. हिल्टबेटल द्वारा किया गया है।[४]
कोलू नामक गाँव, जिसे कोलू पाबूजी भी कहते हैं, वर्तमान फलौदी के पास है। हाल ही में राजस्थान सरकार ने कोलू फलौदी में पाबूजी के पैनोरमा की स्थापना की है।[५]