उदासीनता वक्र

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>Ravi mavi द्वारा परिवर्तित ०५:४१, ९ दिसम्बर २०२० का अवतरण (2401:4900:3B03:D162:F168:26E5:51D9:A281 (वार्ता) द्वारा किए बदलाव 5034431 को पूर्ववत किया)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
उदासीनता वक्र का ग्राफीय निरूपण

उदासीनता वक्र या तटस्थता वक्र (इनडिफरेन्स कर्व) किसी उपभोक्ता के व्यवहार को बताने वाला वक्र है जिस में किसी एक वक्र के किसी भी बिंदु पर उपभोक्ता को प्राप्त होने वाली उपभोग सामग्री से समान संतुष्टि प्राप्त होती है। या, "उदासीन वक्र उसे कहते हैं, जिसके सभी बिंदुओं पर समान संतुष्टि मिले। उदासीन वक्र मुख्यतः दो वस्तुओं के बीच की रुचि को बतलाता है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है x वस्तु और y वस्तु, मान लीजिए हम x वस्तु को बढ़ाते हैं तो हवाई वस्तु को y वस्तु को घटना पड़ेगा।"

दूसरे शब्दों में, जब उपभोक्ता उदासीनता वक्र पर बाएँ से दाएँ नीचे की ओर चलता है, तब सीमान्त प्रतिस्थापन दर घटती हुई होती है। इसी घटती सीमान्त प्रतिस्थापन दर के कारण उपभोक्ता का उदासीनता वक्र मूल बिन्दु की ओर उत्तल (Convex) होता है।

उदासीनता वक्र की परिभाषाएँ
  • (१) यह वस्तुओं की मात्राओं के उन संयोगों का बिन्दु है जिसके बीच व्यक्ति तटस्थ यानी उदासीन रहता है, इसलिए इन्हें तटस्थ वक्र कहते हैं। (पी.के.साहू)
  • (२) समान अनुराग दिखाने वाली वक्र रेखाएं तटस्थ वक्र कहलाती हैं, क्योंकि वे वस्तुओं के एेसे संयोगों को व्यक्त करती हैं, जो एक दूसरे से न तो अच्छे होते हैं और न ही बुरे। (केई बोल्डिंग)
  • (३) अधिमान सारणी वह तालिका है, जो वस्तुओं के एेसे विभिन्न संयोगों को बताती है, जिनसे किसी व्यक्ति को समान संतोष प्राप्त होता है। यदि हम इसे एक वक्र के रूप में प्रदर्शित करें तो हमें अधिमान वक्र प्राप्त हो जाएगा। (एएल मेयर्स )

उदाहरण के लिए, एक बालक मोहन को निम्नलिखित में से कुछ भी देने पर उसे समान सन्तोष मिलता है-

  • १० बेर और १ अमरूद
  • ८ बेर और २ अमरूद
  • ५ बेर और ३ अमरूद
  • ३ बेर और ४ अमरूद

अतः यदि एक वक्र खींचा जाय जो इन चारों बिन्दुओं से होकर गुजरे, तो वह मोहन के लिए एक तटस्थता वक्र होगा।

इतिहास

तटस्थता वक्र विश्लेषण का प्रारंभ 1871 में अंग्रेज अर्थशास्त्री एजवर्थ ने किया था। 1906 में इतालवी अर्थशास्त्री पैरेटो ने एजवर्थ की रीति को अपनाया। 1915 में रूसी अर्थशास्त्री स्लूटस्की ने पैरेटो की इस विधि की व्याख्या की थी, लेकिन रूसी भाषा मे होने के कारण और प्रथम विश्वयुद्ध की उथल-पुथल के कारण उस व्याख्या को विशेष महत्व नहीं मिल सका और लोग उसे जल्द ही भूल गए। 1938में प्रो. हिक्स ने स्वयं अपनी पुस्तक वैल्यू एंड कैपिटल में तटस्थता वक्र विश्लेषण की विस्तार से व्याख्या दी। इस कार्य में हिक्स ने सीमान्त उपयोगिता की जगह पर 'स्थानापन्न दर' शब्द का प्रयोग किया।

हिक्स की धारणा

हिक्स के अनुसार सीमान्त उपयोगिता का कोई निश्चित अर्थ नहीं है। प्रो. हिक्स ने लिखा है कि उपयोगिता ह्रास नियम के स्थान पर प्रतिस्थापन की घटती सीमान्त दर का सिद्धान्त प्रयोग करना केवल भाषान्तर नहीं, वरन यह इस सिद्धान्त की नींव में एक ठोस परिवर्तन है।

बाहरी कड़ियाँ