सैलिसिलिक अम्ल
सैलिसिलिक अम्ल अर्थोहाइड्रोक्सि बेंजोइक अम्ल है जो मेथाइल एस्टर के रूप में विंटरग्रीन तेल का प्रमुख अवयव है। यह रंगहीन क्रिस्टलीय कार्बनिक अम्ल है जो कार्बनिक संश्लेषण में बहुत प्रयोग किया जाता है। यह पादप हार्मोन के रूप में भी कार्य करता है। इसका अणुसूत्र C6H4(OH)COOH है जहाँ OH समूह कार्बोक्सिल समूह के आर्थो है। इसको 2-हाइड्रॉक्सीबेंजोइक अम्ल भी कहते हैं।
परिचय
तेल में सैलिसिन (Salicin) नामक ग्लुकोसाइड रहता है। जिसमें सैलिसिलिक अम्ल सैलिजेनिन नामक ऐल्कोहल से संयुक्त रहता है। यह वर्णरहित सूच्याकार क्रिस्टल बनाता है जिसका गलनांक १५५ डिग्री सेल्सियस है। ठंडे जल में बहुत कम विलेय है पर उष्ण जल, ऐल्कोहल और क्लोरोफार्म में शीघ्र विलेय है। इसका जलीय या ऐल्कोहलीय विलयन फेरिक क्लोराइड से बैंगनी (voilet) रंग बनाता है।
रसायनशाला में या बड़े पैमाने पर कोलबे विधि (Cholbeis method) से लगभग १४० डिग्री से. पर सोडियम फीनेट का कार्बन डाइआक्साइड के साथ दबाव में गरम करने से सैलिसिलिक अम्ल बनता है। यहाँ सोडियम फीनेट कार्बन डाइआक्साइड के साथ संबद्ध हो फीनोल आर्थोकार्बोक्सिलिक अम्ल का सोडियम लवण बनता है जिसमें खनिज अम्लों के डालने से सैलिसिलिक अम्ल का अवक्षेप प्राप्त होता है।
उष्ण जल से अवक्षेप का क्रिस्टलन करते हैं। सैलिसिलिक अम्ल महत्वपूर्ण रोगाणुनाशक यौगिक है। पहले यह वात रोग में औषधि के रूप में प्रयुक्त होता था पर आजकल इसके स्थान में इसका एक संजात ऐस्पिरिन (Acetyl Salicylic acid गलनांक, 128 डिग्री C) के नाम से व्यापक रूप से प्रयुक्त होता है। सैलिसिलिक अम्ल का एक दूसरा संजात सैलोल (फेनिल सैलिसिकेट) के नाम से रोगाणुनाशक के रूप में विशेषत: दंतमंजनों में प्रयुक्त होता है। एक तीसरा संजात बेटोल भी सैलोल के साथ प्रयुक्त होता है। सिरदर्द की एक ओषधि सैलोफीन (Salophene) इसी का संजात है। सैलिसिलिक अम्ल का उपयोग रंजकों और सुगंधों के निर्माण में भी होता है।