रजऊ

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रजऊ बुन्देली लोक साहित्य के प्रसिद्ध लोक रचनाकार ईसुरी की फागों की प्रमुख पात्र है।

रजऊ को सम्बोधित ईसुरी की फागों के अंश-

जबसें छुई रजऊ की बइयाँ, चैन परत है नइयाँ
सूरज जोत परत बेंदी पै, भर भर देत तरइयाँ
कग्गा सगुन भये मगरे पै, छैला सोऊ अबइयाँ
कहत ईसुरी सुनलो प्यारी, ज्यो पिंजरा की टुइयाँ

  • * * *

नईयाँ रजऊ तुमारी सानी सब दुनिया हम छानी
सिंघल दीप छान लओ घर-घर, ना पदमिनी दिखानी
पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन, खोज लई रजधानी
रूपवंत जो तिरियाँ जग में, ते भर सकतीं पानी
बड़ भागी हैं ओई ईसुरी तिनकी तुम ठकुरानी