सुज़ुकी देइसेत्ज़
सुज़ुकी देइसेत्ज़ D. T. Suzuki | |
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जन्म | साँचा:br separated entries |
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मृत्यु स्थान/समाधि | साँचा:br separated entries |
व्यवसाय | Author, Lecturer, Scholar of Zen (or Chan) Buddhism |
उल्लेखनीय सम्मान | National Medal of Culture |
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सुज़ुकी देइसेत्ज़ (Daisetsu Teitaro Suzuki (鈴木 大拙 貞太郎 ; १८७० - १९६६[१]) जापान के बौद्ध साहित्य एवं दर्शन के विश्वविख्यात विद्वान थे। १९६३ में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिये नामित किया गया था।[२]
आपने बौद्ध धर्म में प्रचलित 'ध्यान संप्रदाय' को नवीन रूप प्रदान किया है। जापान में यह संप्रदाय 'जैन संप्रदाय' (Zen) के नाम से प्रसिद्ध है। वैसे तो जापान में जैन संप्रदाय की स्थापना 'येई साई' (११४१-१२१५) ने की, जो कर्मकांड आदि को हेय समझकर ध्यान एवं आत्मसंयम को ही सर्वश्रेष्ठ मानते थे, किंतु जापानी दार्शनिक डॉ॰ सुजुकी ने जेन संप्रदाय की इस मौलिक विचारधारा को और भी परिमार्जित कर आगे बढ़ाया। वे मानते थे कि दर्शन और धर्म का लौकिक उद्देश्य भी है।
जीवन परिचय
डॉ॰ सुजुकी का जन्म कनज़ावा (जापान) में हुआ। प्रारंभिक अध्ययन के बाद आप सन् १८९२ में तोक्यो विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण कर उच्च अध्ययन के लिए १८९७ में अमरीका गए। वहाँ अपने अध्ययन के साथ-साथ बौद्ध धर्म एवं उदार चीनी दर्शन ताओवाद (Taoism) के अनेक ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया। सन् १९०९ में जापान लौटने पर सुजुकी पीअर विश्वविद्यालय (गाकाशुईन) में अंग्रेजी भाषा के अध्यापक नियुक्त हुए। इसी के साथ वे तोक्यो विश्वविद्यालय में भी अध्यापन कार्य करते रहे। सन् १९२१ के पश्चात् आप ओतानी विश्वविद्यालय, क्योतो (जापान) में बौद्ध-दर्शन-विभाग के अध्यक्ष नियुक्त किए गए।
सन् १९३६ में डॉ॰ सुजुकी की प्राध्यापक की हैसियत से अमरीका और ब्रिटेन गए और उन्होंने जापानी संस्कृति एवं जेन दर्शन पर विद्वतापूर्ण भाषण दिए। इसके फलस्वरूप आपको जापान सरकार की ओर से 'ऑर्डर ऑव कल्चर' का सम्मान प्रदान किया गया।
बौद्ध साहित्य के क्षेत्र में डॉ॰ सुजुकी को और भी सम्मान प्राप्त हुआ, जब उन्होंने जेन बौद्ध धर्म पर ३० संस्करणों की एक ग्रंथमाला लिखी। इसी के बाद आपने एक अन्य पुस्तक 'ज़ेन और जापान की संस्कृति' जापानी भाषा में प्रकाशित की। इसका अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन और पुर्तगाली भाषा में किया गया। इस प्रकार डॉ॰ सुजुकी की इस अनुपम कृति को अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ।