गोरख धंधा

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गोरख धंधा शब्द गुरु गोरखनाथ के आचकित क्रिया की वजह से प्रचलन में आया था, जो तंत्र के ज्ञाता थे। आजकल बहुत अधिक उलझन से भरे विषय, समस्या आदि को गोरख धंधा कह दिया जाता है जैसे कि नुसरत फतेह अली खान की एक मशहूर कव्वाली का मुखड़ा -"तुम इक गोरखधंधा हो..."-जिसमें वे भिन्न भिन्न संतों व शायरों के कलाम को उद्धृत करते हुए यह परिणाम निकालते हैं कि खुदा/भगवान एक अबूझ पहेली है। लेकिन आजकल मीडिया में सामान्यतः किसी भी बुरे कार्य जैसे मिलावट, धोखा-धड़ी, छल-कपट, चोरी-छिपे भ्रष्ट कार्यों के लिए यह शब्द प्रयोग होता है।[१][२][३]


हालाँकि इस शब्द का इतिहास देखें तो "गोरख-धंधा" नाथ, योगी, जोगी, धर्म - साधना में प्रयुक्त एक आध्यात्मिक मन्त्र योग विद्या है तथा नाथ-मतानुयायियों की धार्मिक भावना से जुड़ा है। ऐसी मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ जी ने उस परम सत्य को पाने के लिए कई विधियों की तलाश की व साधना की व्यवस्था बनाई। डॉ॰ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संकलन और संपादन किया जो ‘गोरख बानी’ के नाम से प्रकाशित हुआ।[४] डॉ॰ बड़थ्वाल की खोज में कम से कम ४० पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है। मनुष्य के भीतर अंतर-खोज के लिए गुरु गोरखनाथ जी ने जितना आविष्कार किया उतना शायद किसी ने भी नहीं किया है। उन्होंने इतनी विधियां दीं कि लोग उलझ गये की कौन-सी ठीक, कौन-सी गलत, कौन-सी करें, कौन-सी छोड़ें। यह उलझाव इस सीमा तक जा पहुँचा कि लोग हताश होने लगे तथा गोरख-धंधा शब्द प्रचलन में आ गया। जो समझ में ना आ सके वो गोरख-धंधा है।

कालाँतर में इन विधियों का दुरुपयोग नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों द्वारा धार्मिक लोगों को छलने में भी होने लगा जिसके कारण समय के साथ साथ यह शब्द नकारात्मक होता चला गया।

गोरखपंथी साधु लोहे या लकड़ी की सलाइयों के हेर फेर से एक चक्र बनाते हैं। उस चक्र के बीच में एक छेद करते हैं। इस छेद में से कौड़ी या मालाकार धागे को डालते हैं और फिर मन्त्र पढ़कर उसे निकाला करते हैं। इसी को गोरखधंधा या धंधारी कहते हैं। इसका उल्लेख योगियों के वेष में प्रायः सर्वत्र मिल जाता है।[५] गोरखधंधा या धंधारी में से क्रिया जाने बिना कौड़ी या डोरी निकालना बहुत कठिन कार्य है। इसीलिए गोरखधंधा शब्द का प्रचलन आजकल उलझन और झंझट वाले कार्यों का वाचक बन गया है।[६]

सन्दर्भ

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  3. http://www.jagran.com/uttar-pradesh/ballia-11336912.html
  4. साँचा:cite webसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
  5. पद्मावत, मलिक मोहम्मद जायसी, 136/4, 601/07, 606/4
  6. हिन्दी साहित्य कोश, ज्ञानमण्डल प्रकाशन वाराणसी, भाग १, पृष्ठ-२३९