यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय
19 वीं शताब्दी में यूरोपीय महाद्वीप में राष्ट्रवाद (nationalism) की एक लहर चली जिसने यूरोपीय देशों का कायाकल्प कर दिया। जर्मनी, इटली, रोमानिया आदि नवनिर्मित देश कई क्षेत्रीय राज्यों को मिलाकर बने जिनकी राष्ट्रीय पहचान 'समान' थी। यूनान, पोलैण्ड, बल्गारिया आदि स्वतन्त्र होकर राष्ट्र बन गये। राष्ट्रवादी चेतना का उदय यूरोप में पुनर्जागरण काल से ही शुरू हो चुका था, परन्तु 1789 ई. के फ्रान्सीसी क्रांति में यह सशक्त रूप लेकर प्रकट हुआ।
१८वीं सदी में कई देश जैसे जर्मनी, इटली तथा स्विटजरलैण्ड आदि उस रूप में नहीं थे जैसा कि आज हम इन्हें देखते हैं। अठारहवीं सदी के मध्य जर्मनी, इटली और स्विट्जरलैंड राजशाहियों, डचों और कैंटनों में बँटे हुए थे, जिनके शासकों के स्वायतत्ता क्षेत्र थे। इसी प्रकार, पूर्वी और मध्य यूरोप निरंकुश राजतन्त्रों के अधीन थे और इन क्षेत्रों में तरह-तरह के लोग रहते थे। वे अपने आप को एक सामूहिक पहचान या किसी 'समान संस्कृति' का भागीदार नहीं मानते थे। ऐसी स्थिति राजनीतिक एकता को आसानी से बढ़ावा देने वाली नहीं थी। इन तरह-तरह के समूहों को आपस में बाँधने वाला तत्व, केवल सम्राट के प्रति सबकी निष्ठा थी।
फ्रांसीसी क्रान्ति से पहले फ्रांस एक ऐसा राज्य था जिनके सम्पूर्ण भूभाग पर एक निरकुंश राजा का शासन था। फ्रांसीसी क्रांति का नारा 'स्वतंत्रता, समानता और विश्वबंधुत्व' ने राजनीति को अभिजात्यवर्गीय परिवेश से बाहर कर उसे अखबारों, सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया। १९वीं शताब्दी तक आते-आते परिणाम युगान्तकारी सिद्ध हुए। नेपोलियन की संहिता - इसे 1804 में लागू किया गया। इसने जन्म पर आधरित विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया। इसने न केवल न्याय के समक्ष समानता स्थापित की बल्कि सम्पत्ति के अधिकार को भी सुरक्षित किया।
१८वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में नेपोलियन के आक्रमणों ने यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इटली, पोलैण्ड, जर्मनी और स्पेन में नेपोलियन ने ही 'नवयुग' का संदेश पहुँचाया। नेपोलियन के आक्रमण से इटली और जर्मनी में एक नया अध्याय आरम्भ हुआ। उसने समस्त देश में एक संगठित एवं एकरूप शासन स्थापित किया । इससे वहाँ राष्ट्रीयता के विचार उत्पन्न हुए। इसी राष्ट्रीयता की भावना ने जर्मनी और इटली को मात्र भौगोलिक अभिव्यक्ति की सीमा से बाहर निकालकर उसे वास्तविक एवं राजनैतिक रूप प्रदान की जिससे इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
मुख्य घटनाएँ
1789 ई॰ - फ्रांसीसी क्रान्ति
1804–15 - तुर्क साम्राज्य के विरुद्ध सर्बियाई क्रान्ति
1814 - डेनमार्क-नार्वे के विरुद्ध नार्वे की स्वतन्त्रता की कोशिश
1815 - वियना कांग्रेस
1821-32 - यूनान का स्वतंत्रता संग्राम तथा आटोमान साम्राज्य से स्वतंत्रता
1830-31 - बेल्जियम की क्रांति
1830-31 - पोलैण्ड और लुथवानिया में क्रान्ति
1846 - वृहद पोलैण्ड में क्रान्ति
1848 - हंगरी, इटली, जर्मनी में राष्ट्रवादी विद्रोह
1859-61 - इटली का एकीकरण
1863 - पोलैण्ड का राष्ट्रीय विद्रोह
1866-71 - जर्मनी का एकीकरण
1867 - हंगरी को स्वायत्तता दी गयी।
1867 - आयरलैण्ड में राष्ट्रवादी फेनियन का उदय
1878 - बर्लिन कांग्रेस : सर्बिया, रोमानिया और मॉटेनेग्रो को आटोमान साम्राज्य से स्वतंत्रता मिली।
1908 - बुल्गारिया स्वतंत्र हुआ।
1912 - अल्बानिया में राष्ट्रीय जागरण तथा स्वतंत्रता[१]
1916 - आयरिश रिपब्लिकन ब्रदरहुड तथा स्वयंसेवक , ईस्टर राइजिंग
1923 - तुर्की का स्वतंत्रता संग्राम, जिसके फलस्वरूप १९२२ में राजतन्त्र की समाप्ति हुई १९२३ में तुर्की रिपब्लिक की स्थापना हुई।
परिणाम
(१) यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के विकास के कारण यूरोपीय राज्यों का एकीकरण हुआ। इसके कारण कई बड़े तथा छोटे राष्ट्रों का उदय हुआ।
(२) यह यूरोपीय राष्ट्रवाद का परिणाम था कि १९वीं शताब्दी के अन्तिम उत्तरार्ध में 'संकीर्ण राष्ट्रवाद' का जन्म हुआ। संकीर्ण राष्ट्रवाद के कारण प्रत्येक राष्ट्र की जनता और शासक के लिए उनका राष्ट्र ही सबकुछ हो गया। इसके लिए वे किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार थे। बाल्कन प्रदेश के छोटे-छोटे राज्यों एवं विभिन्न जातीय समूहों में भी यह भावना जोर पकड़ने लगी।
(३) यूरोपीय राष्ट्रवाद के प्रभाव के कारण जर्मनी, इटली जैसे राष्ट्रों में साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों का उदय हुआ। इस प्रवृत्ति ने एशियाई एवं अफ्रीकी देशों को अपना निशाना बनाया जहाँ यूरोपीय देशों ने उपनिवेश स्थापित किये। इन्हीं उपनिवेशों के शोषण पर ही औद्योगिक क्रांति की आधारशिला टिकी थी। इसी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के कारण ऑटोमन साम्राज्य का पतन हुआ ।
(४) यूरोपीय राष्ट्रवाद का प्रभाव अफ्रीका एवं एशियाई उपनिवेशों पर भी पड़ा। इन उपनिवेशों में विदेशी शासन से मुक्ति के लिए स्वतन्त्रता आन्दोलन शुरू हो गए।
सन्दर्भ
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