गौड़ सारस्वत ब्राह्मण

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परिचय

पंचगौड़ एक ऐसा ब्राह्मण समुदाय है जो विन्ध्याचल और हिमालयके बीचके भूभागके निवासी है | स्कन्दपुराणके सह्यद्रिखण्डके अनुसार विन्ध्याचलके दक्षिणमे पंचद्रविड समुह रहते है और उत्तरमे पंचगौड समुह निवास करते है |पंचगौडमे-सारस्वत,कान्यकुब्ज, औत्कल/उत्कल,मैथिल और गौड आते है | पण्डित ज्वालाप्रसाद गौडके जातिभास्कर ग्रन्थसे यह पता चलता है| ब्राह्मणौंकी इतिहासमे विन्ध्याचलको सीमाना बनाकर दो समुह विभाजन हुये है | दक्षिणकी ओर पंचद्रविड और उत्तरकी ओर पंचगौड | ये सरस्वती नदीके आसपासके क्षेत्रमे रहनेवाले सारस्वत ब्राह्मण पंचगौडके एक भेद है | इस समुहका एक हिस्सा मिथिलाप्रदेसमे रहते है | कन्नौज / कान्यकुब्ज क्षेत्रमे एक हिस्सा रहते है | इसी समुहके ब्रह्मणका वंश मिथिलासे उत्तर हिमालयके दक्षिणक्षेत्रमे निवास करते है | नेपालके ब्राह्मणलोग अपनेको कान्यकुब्जी बतलाते है | उत्कल(वर्तमानमे ओडिसा राज्य अन्तर्गतका एक प्राचीन देश) मे एक हिस्सा रहते है | वे औत्कल कहलाते है | गौडदेशमे रहने वाले ब्राह्मण समुह पंचगौडके एक हिस्सा है | स्कन्दपुराणके अनुसार गौडदेश प्राचीन वंगदेशसे लेकर उत्कल देशकतकी भूभागवाला देश है | सारस्वत ब्राह्मण समुदाय पूर्वोक्त पंचगौडका एक हिस्सा है | उनकी मातृभाषा कोंकणी और मराठी है। वे त्रिग्वेदी ब्राह्मण भी कहलाते है।

इतिहास

सारस्वत, सरस्वती नदी के तट पर बसे आर्य वंश के लोग हैं। यह साबित करने के संदर्भ में अनेक सबूत ऋग्वेद में पाए जाते हैं। नदी के सूखने के वजह से यह लोग उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में बस गये। इस प्रवास के सटीक तिथियाँ अज्ञात हैं। ऐसा माना जाता है कि परशुराम एक ब्राह्मण जो भगवान विष्णु के अवतार है उन्होंने धार्मिक कार्यों के वजह से गोवा में प्रवास किये और ऐसा भी माना जाता है की कुछ गौड़ जो बंगाल में बसे है वे सारस्वत समुदाय नाम गौड़ सारस्वत ब्राह्मण व्युत्पन्न माना जाता है। यह त्रेतायुग में, समुदाय के गोवा पहुँचने पर, एक महान तपस्वी थे जिनका नाम जम्गाग्नी था| उन्होंने कहा कि वह हर इच्छा को पूरा करने की शक्ति से सम्पूर्ण है और इसी कारणवश उन्हें कामधेनु के रूप से जाना जाता था। गौड सारस्वत लोगों ने लौटोलिम में रामनाथी मंदिर की तरह गोवा में कई मंदिरों का निर्माण किये है। गौड सारस्वत लोग गोवा के कुशस्थली और कुएल्लोस्सिम गावों के सारस्वत थे जो चित्रारपुर सारस्वत ब्राह्मण के रूप में उप समुदाय है। १६ वीं सदी में पुर्तगाली शासन के दौरान गोवा से चले कई परिवार महाराष्ट्र और अन्य शहरों में बस गए है। जिनकी मातृ - भाषा कोंकणी और मराठी है। महाराष्ट्र में मराठी बोलने वाले जीएसबी की अधिक संख्या है।

भाषा

गौड़ सारस्वत ब्राह्मण मुख्या रूप से कोंकणी भाषा में बोलते है। गोवा सारस्वत, कर्नाटक सारस्वत और करेल सारस्वत के बोलियों में अंतर दिखाई पड़ती है। कर्नाटका सारस्वत कोंकणी की बोली कन्न्नाडा से थोड़ी मेल खाती है। और इसी तरह केरल सारस्वत कोंकणी मलयालम भाषा से मेल खाती है, क्युकी सारस्वत लोग इन क्षेत्रो में कई शताब्दियों से अधिवास कर रहे है।

विभाजन

गौड़ सारस्वत ब्राह्मण अपने कुलनाम, गोत्र और मठ (अध्यात्मिक गुरु) के आधार पर वर्गकृत हुए है। हर एक गौड़ सारस्वत ब्राह्मण एक विशेष गोत्र के अंतर्गत् आता है। यह गोत्र विख्यात हिन्दू ऋषियों और संतो के नाम है। इस प्रकार, गोत्र के नाम अपने सदस्यों से सम्भंदित ऋषियों को इंगित करता है। एक ही गोत्र में शादी करना निषेद है;

मठ

  • श्री गौडपादाचार्य मठ (कावले, गोवा)
  • गोकर्ण मठ (गोवा)
  • काशी मठ (वारणसी, उत्तर प्रदेश)
  • चित्रापुर मठ (शिराली, कर्नाटका)
  • श्री धाबोली मठ (कुडल, महराष्ट्र)

शादी

जीएसबी शादी में रस्म और रिवाज कई सारी है और अक्सर ये रीति और रिवाज़ आविस्नीय माने जाते है। शादी के एक दिन पहेले दूल्हे को फूलों से सजी हुई गाड़ी में लाया जाता है और उसे शादी के मंडप पे स्वागत किया जाता है जो दुल्हन के निवास स्थान में होता है और इनके स्वागत के लिए बैंड-बाजे की तय्यारी की जाती है। इस सम्हारो का नाम व्हारण होता है। शादी हॉल तक पहुँचने के बाद, सगाई की एक औपचारिक समारोह होता है।

सभी बाधाओं को दूर रखने के लिए शादी के दिन सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। फिर नवग्रह की पूजा की जाती है। फिर शादी के रिवाज़शुरू की जाती है।

अगली रिवाज़ काशी यात्रा होती है जिस में दूल्हा कशी यात्रा जाने की ज़िद करता है लेकिन धुलान के पीता उसे बिनती करते है कि वे कशी ना जाए और अपनी गृहस्त जींवन जीए।

वर पूजा के इस रिवाज़ में दूल्हे के पैर दूद से धोया जाता है और रेशम के कपडे से साफ़ किया जाता है और दिये से इनकी पूजा भी की जाती है, ताकि राक्षसों और भूत के खिलाफ रक्षा कर सके और उसी के साथ सभी बाधाओं को दूर कर सके। पका चावल से भी इनकी आरती उतारी जाती है और इस चावल को फेक दिया जाता है।

नामकरण और कान छेदने का समारोह

सब हिंदू समुदायों की तरह, गौड़ सारस्वत ब्राह्मण के भी जीवन चक्र के दौरान होने वाले अनुष्ठान है। गर्भावस्था के ८ वें मास के दौरान एक महिला विशेष रूप से अपने पहले बच्चे के जन्म के दौरान, उसकी मां के घर जाती है और भगवान गणपति की पूजा की जाती है ताकि उन्हें एक सफल और स्वास्त बच्चा मिले| ६ वे दिन, एक कलम और दीपक बच्चे के सिर के पास रखा जाता है ताकि वह बुद्धिमान और समजदार बन सके| १२ वें दिन में, नामकरण और ठाट समारोह आयोजित किया जाता है| उसके कुंडली के अनुसार से नाना या नानी बच्चे के कान में फुसफुसाते हुए उसका नाम बताते है| निम्नलिखित ग्यारहवें दिन एक बच्चे के जन्म बर्सो आयोजित किया जाता है अगर यह होमा के साथ किया जाये तो इसे बर्सो होमा कहा जाता है इस होमा में बच्चे के कान में छेद किया जाता है।

त्योहार

गौड़ सारस्वत ब्राह्मण हिन्दू धर्म में मनाये जाने वाले लगबग सभी त्योहारों को मनाते है। वे हिन्दू चन्द्र कैलेंडर (कोंकणी में पंचांग) का पालन करते है।

चूड़ी पूजा

गौडा सारस्वत से संभंधित विवाहित महिलाओं द्वारा मनाये जाने वाली पूजा है जिसका नाम चूड़ी पूजा है। इस दिन तुलसी और सूर्य देवता कि पूजा की जाती है और साथ ही घर के मुख्या द्वार पर भी पूजा की जाती है। पुराणों में तुलसी के पौधे को महत्वपूर्ण बताया गया है। पुराणों में इस पौधे को पवित्र माना गया है। इसकी पूजा करने वाले को शक्ति और सहसा प्राप्त होती है। तुलसी का पौधा औषधियों में भी इस्तेमाल होता है। श्रावण के महीने में विवाहित महिलाये हर शुक्रवार और रविवार चूड़ी पूजा मनाते है, महीने के अंत तक। पिछले दिन महिलाएं पूजा की तैयारी करती है। चूड़ी बनाने के लिए फूल और दरबा घास इकट्ठा करते है और दोनों को मिला कर एक घांट बाँधा जाता है। प्रत्येक फूल और दरबा घास के गुच्छे को चूड़ी बुलाया जाता है। एक घांट आकार में करीब तीन ईंच का होता है। यह चूड़ी सुन्दर तरीके से देवी लक्ष्मी के मूर्थी के सामने आलंकृत जाता है। अपने अपने घर में लक्ष्मी की पूजा करने के बाद बाहर तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है, हल्दी और कुमकुम लगा कर। इसके बाद घर की महिला घर के मुख्या द्वार पर बैठ कर दरवाज़े के दोनों कोनो में एक एक चूड़ी रख देती है। घर में पूजा करने के बाद यह चूड़ी घर-घर जा कर महिलाओं में बांटा जाता है।

मुंजी

यह ब्राम्होपदेषम, उपनयनं या फिर मुंजी या मुंजा के नाम से जाना जाता है। दस से चौदह साल के लडको को यह समारोह से गुज़रना पड़ता है। यह समारोह पिता द्वारा अपने पुत्र के लिए किया जाता है। बेटे की आरती ली जाती है और फिर उसके सर के बाल काट दिए जाते है। लड़के को भगवा रंग के साधारण कपडे से लुंगी और मुंडास पहनाया जाता है। हर रोज़ बोले जाने वाले मूल मंत्र दिए जाते है। इसमें महत्वपूर्ण अनुष्ठान पिता से बेटे को पारित होने वाली गायत्री मंत्र है जो पिता अपने बेटे के कान में बोलता है ताकि किसी और को सुनाई न दे। यह सब अनुष्ठानो के बाद एक पवित्र धागा (कोंकणी में जनीव) बाँधने को देते है जो बेटा अपने गले में हमेशा पहन के रखता है। शादी के बाद ऐसे दो धागे पहने पड़ते है।

अनंत विहार

यह त्योहार नोपी के नाम से भी जाना जाता है। वैष्णव ग्रंथो में वर्णन किया गया है, कैसे इस त्योहार का प्रदर्शन किया जाता है। उनमे से एक अनिवार्य कार्य भगवान विष्णु की चांदी कि प्रतिमा कि पूजा करना है, मंत्र और श्लोक बोल कर। अधिकाँश लोग यह त्यौहार एक आवश्यकता के रूप में हर साल मनाते है। ऐसा माना जाता है, यदि एक परिवार नोपी मनाता है, तोह उस परिवार को हर साल नोपी मनाना आवश्यक है।

संसार पाड्वो

हिन्दू चन्द्र कैलेंडर के पहले दिन को संसार पाड्वो कहते है और इस दिन लोग त्योंहार मनाते है। महराष्ट्र में गुडी पाडवो और कार्नाटका में युगादी के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग विशेष व्यंजन तैयार करते है और कुछ लोग मंदिरों में जाते है पुजारियों से आने वाले साल की भविष्यवाणी सुनने। कुछ परिवार नए कटे धान से चावल पकाते है। यह परंपरा भारत में एक सहस्राब्दी या अधिक से प्रचलित है।

गौरी गणेश महोत्सव

गौरी गणेश महोत्सव

गौड सारस्वत लोगों के लिए गौरी गणेश महोत्सव एक महत्वपूर्ण त्योहार है। भगवान गौरी, गणेश की मां है और गौरी त्योहार [भाद्रपद के महीने के पहले पखवाड़े के तीसरे दिन] भाद्रपद शुद्ध थ्रिथीय पर मनाया जाता है| हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भगवान गणेश का उत्सव अगले दिन ही मनाया जाता है अर्थात भाद्रपद शुद्ध चतुर्थी [भाद्रपद के महीने के पहले पखवाड़े के चौथे दिन]। यह त्योहार हर साल आम कैलेंडर की एक ही तारीख पर नहीं आता है। इसलिए इस भ्रम की स्थिति से बचने के लिए, यह त्योहार सितंबर मास के तीसरे रविवार को आयोजित किया जाता है। गौरी त्योहार मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं के हितों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है| भगवान शिव की पत्नी होने के नाते, गौरी अपने पति के लंबी उम्र के लिए रखना चाहती है। पूजा की शुरवात भगवान गौरी और भगवान गणेश के संकल्प के साथ की जाती है। इसके बाद आचमन की जाती है और फिर थोडा सा पानी हाथों में लिया जाता है और उसका सेवन किया जाता है। पूजा के बाद सभी भक्त जनो को एक ताम्बोला में सुपारी और पान के पत्तों के साथ चुडिया देते है और उन लोगो का आशीर्वाद लिया जाता है। इस दिन घर में सब लोग नये कपड़े पहनते है और विभिन्न प्रकार के खाना और मिठाइयाँ बनाया जाता है।

व्यंजन

पथ्रोड़े

पथ्रोड़े (या पथ्राडो) भारत के कोंकण क्षेत्र की एक मलवानी पकवान है। यह आलुकी पत्तियां, चावल का आटा और मसाले, इमली और गुड़ के भरवां से बनाया जाता है। "पथ्रोड़े" दो शब्द "पत्र" और "वडे" से मिलकर एक शब्द है। संस्कृत में पत्र का मतलब पत्ता है और वेड का मतलब गुलगुला है। इसका मतलब पत्रोड़ा एक पत्ते से बना गुलगुला है।

पथोली

पथोली त्योहारों या विशेष अवसरों के दौरान बनाये जाने वाला एक पारंपरिक मिठाई है। चावल के आटे से बने गुलगुला जिसे हल्दी के पत्तो के अन्दर रख कर उबाला जाता है, नारियल गुड़ के मिश्रण के साथ।

खोट्ठो

खोट्ठो

खोट्ठो जो कि एक इडली का मिश्रण है इसे पानी के भाप से पकाया जाता है।

बहुत सारे सारस्वत लोगो को इडली के सेवन से ज्यादा खोट्ठो पसंद है 

और इसका मुख्य कारण इसकी सुखद खुशबू है।

क्यों की ये पानी के भाप से पकाया जाता है। ये बहूत नरम 

और स्वादिष्ट होता है और कुच लोग इसे पन्ना इडली भी बोलते है।

खोट्ठो हर एक कोंकणी के त्योहार में बनाया जाता है।
यहां तक कि इसे अवसर के बिना भी बनाया जाता है 

और यह एक सामान्य नाश्टा पक्वान है। इसे बनाने के लिए

  • कटहल के पते ४
  • चावल २ कटोरी
  • काले चने की दाल

जरूरी होती है।

उंडी

उंडी उबले चावल पकौड़ी के तरह होता है और यह एक लोकप्रिय कोंकणी नाश्टा है। यह पक्वान बनाने के लिए इडली का मिश्रण ही उप्योग करते है और इसे बनाने में कम समय लगता है। इसमें कोई किण्वन की जरूरत नहीं है। इसे एक मसालेदार करी या चटनी के साथ खाया जाता है और इसे बनाने के लिए

  • इडली रवा-१कप
  • पिसा हुआ नारियल १-कप
  • धन्या पत्ता
  • सरसों के बीज
  • उरद दाल
  • मेथी और नमक

की जरूरत होती है।

मौत समारोह

जीएसबी के लिए अन्य अत्यंत महत्वपूर्ण अनुष्ठान मौत समारोह हैं। सभी जीएसबी आम तौर पर व्यक्ति की मौत के एक दिन के भीतर, वैदिक संस्कार के अनुसार अंतिम संस्कार करते है। अंतिम संस्कार के समय महिलाएं समाधिस्तल नहीं जा सकती है और पूरा जिम्मेदारी पुत्र को उठाना पडता है| मौत संस्कार १३ दिन का समारोह होता है| दिवंगत की राख दो नदियों का संगम या समुद्र में विसर्जित किया जाता है| राख गंगा नदी या नदी गोदावरी में विसर्जित किया जाता है और यह बाकी सारे हिंदुओं की तरह ही होता है। वार्षिक श्राद्ध हर साल में मनाया जाता है। इन अनुष्ठानों को मृतक के पुरुष वंश (अधिमानतः ज्येष्ठ पुत्र) द्वारा प्रदर्शन किए जाने की उम्मीद की जाती है और यह अनुष्ठान महिलाएं नहीं कर सकती है|

सन्दर्भ

https://web.archive.org/web/20140114084718/http://www.gsbkonkani.net/index.htm

https://web.archive.org/web/20100413214342/http://www.gsbkerala.com/gsbhistory.htm#orgin

https://web.archive.org/web/20140219201258/http://www.govindpurus.com/?page_id=117