विद्युत-मापी
विद्युत-मापी (Electricity meters) या 'ऊर्जामापी' सामान्यत: उन सभी उपकरणों को कहा जाता है विद्युत ऊर्जा का माप करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। विद्युत-मापी प्रायः किलोवाट-घण्टा (kWh) में अंशांकित (कैलिब्रेटेड) होते हैं।
कुछ विद्युत् मापी विशेष कार्यों के लिए व्यवस्थित होते हैं, जैसे महत्तम माँग संसूचक (Maximum Demand indicator), जिसमें मीटर के साथ ऐसा काल अंशक होता है जो निश्चित अवधि में अधिकतम ऊर्जा का निर्देश करे। कुछ विद्युत-मापी ऐसे भी होते हैं जो महत्तम लोड (पीकलोड) के समय में स्वयं लोड को काट दें।
परिचय
किसी निश्चित अवधि में उपयुक्त होनेवाली विद्युत् ऊर्जा की माप करने के लिए यह आवश्यक है कि विद्युत्मापी परिपथ में धारा, वोल्टता तथा शक्ति गुणांक (power factor) तीनों की उचित माप करने में तथा उन्हें समाकलित (इंटिग्रेट) करके किसी निश्चित अवधि में खर्च होनेवाली ऊर्जा का मापन कर सकने में समर्थ हो। इस प्रकार किसी भी विद्युतमापी में दो अंशक होते हैं :
- एक तो शक्ति अंशक, जो धारा, वोल्टता एवं शक्ति गुणांक से प्रभावित होकर शक्ति का मापन करे और दूसरा
- काल अंशक, जो निश्चित अवधि में शक्ति का समाकलन कर ऊर्जा का मापन करा सके।
एम्पीयर-घण्टा मापी
शक्ति अंशक, दिष्ट धारा (D.C.) एवं प्रत्यावर्ती धारा (A.C.) में भिन्न भिन्न प्ररूप का होता है। दिष्ट धारा में, शक्ति गुणांक न होने के कारण (वस्तुत: डीसी में शक्ति गुणांक =१), शक्ति अंशक का केवल धारा तथा वोल्टता का गुणन करने में समर्थ होना पर्याप्त है। यदि वोल्टता को स्थिर मान लिया जाए (जैसा साधारणतया होता है), तो केवल धारा मापन से ही कार्य चल सकता है। इस रूप में विद्युत्मापी वस्तुत: ऐंपियर-घंटा (ampere hour) मीटर हो जाता है। यह केवल यही बताता है कि निश्चित अवधि में कितनी धारा प्रयुक्त की गई है। इस प्रकार एक ऐंपियर-घंटा से तात्पर्य है कि निश्चित वोल्टता पर १ घंटे में १ ऐंपियर धारा उपभुक्त की गई हैं। यद्यपि बनावट में ऐसे उपकरण सरल होते हैं, तथापि स्पष्टत: वोल्टता के घटने बढ़ने से उनके द्वारा निर्देशित ऊर्जा में गलती हो जाती है। तब भी अपने सरल बनावट के कारण, सामान्य उपयोगों के लिए ये बहुत उपयुक्त होते हैं।
उपरोक्त प्रकार के मीटर में एक बंद प्रकोष्ठ में ऐलुमिनियम का एक डिस्क (disc) संबद्ध रहता है, जिससे उसका चलन स्वतंत्र रूप में हो सके। प्रकोष्ठ में पारा भरा होता है और डिस्क पारे के उत्प्लावन पर अवलंबित रहता है। आपेक्षिक घनत्व १३.६ होने के कारण, पारा डिस्क पर काफी उत्क्षेप लगाता है, जिससे वेयरिंग (bearing) पर दाब कम हो जाती है और डिस्क को घूमने में सुविधा रहती है। डिस्क के दोनों ओर दो चुंबक होते हैं, जिनमें से एक चालन चुंबक (driving magnet) कहलाता है: और दूसरा ब्रेक चुंबक (brake magnet)। घुराग्र (pivot) धारा के वाहक का भी कार्य करता है। धारा घुराग्र से होकर डिस्क में अरीय (radially) बहती है और वहाँ से पारे में होकर प्रकोष्ठ पर के स्थिर टर्मिनल में जाती है। इस प्रकार परिपथ पारे में होकर पूरा होता और चालन चुंबक की उत्तेजक कुंडली (exciting coil) में से प्रवाहित होती हुई धारा डिस्क पर चालन बल (driving force) आरोपित करती है। डिस्क परिभ्रमण के लिए स्वमंत्र होने के कारण घूमने लगता है। उसका ब्रेक चुंबक के क्षेत्र में परिभ्रमण, उसपर ब्रेक बल आरोपित करता है। ब्रेक-चुंबक की स्थिति का व्यवस्थापन करने से डिस्क की गति में परिवर्तन किया जा सकता है। यदि मोटर ठीक न चल रहा हो, तो रोक चुंबक की स्थिति का व्यवस्थापन करके ठीक किया जा सकता है।
दूसरे प्रकार के ऐंपियर घंटा मापियों में धारा के विद्युत् अपघटनी (electrolytic) प्रभाव का उपयोग किया जाता है। किसी निश्चित अवधि में, विद्युत् अपघट्य में से पारित होती हुई धारा जितना अवशेष जमा करती है, उसका परिमाण परिपथ में उपभोग की गई ऊर्जा के अनुपात में होता है। परंतु इस प्ररूप के मीटरों की बनावट मजबूत नहीं होती और उन्हें बार बार व्यवस्थित (set) करना पड़ता है। अत: इस प्ररूप के मीटर अधिक चलन में नहीं हैं।
दिष्ट धारा के मीटरों में शक्ति अंशक वाटमीटर जैसे ही होते हैं। इनमें वस्तुत: दो परिपथ होते हैं,
- (१) धारा कुंडली परिपथ, जो वहन की जानेवाली धारा द्वारा प्रवाहित होता है और दूसरा
- (२) वोल्टता कुंडली (pressure coil), जो परिपथ के आरपार वोल्टता द्वारा प्रभावित होता है।
इन दोनों कुंडलियों की धारा एवं वोल्टता के क्षणिक मानों द्वारा प्रभावित होने के कारण, अंशक का चलनतंत्र परिपथ में औसत शक्ति का परिचायक होता है।
प्रत्यावर्ती धारा ऊर्जामापी
प्र.धा. मीटर, मुख्यत:, दो प्ररूप के होते हैं :
- (१) प्रेरण प्ररूप (induction Type)
- (२) डायनेमोमीटर प्ररूप (Dynamometer Type)
दोनों मीटर वास्तव में अपने अपने प्ररूप के वाटमीटर पर ही आधारित होते हैं। शक्तिअंशक के साथ कालअंशक जोड़ देने से ही उनसे ऊर्जा का मापन किया जा सकता है। कालअंशक वास्तव में घड़ी की भाँति होता है, जो निश्चित अवधि में शक्ति का समाकरलन कर ऊर्जा का निर्देश करता है। वाटमीटर में संकेतक (pointer) द्वारा शक्ति का निर्देश ही किया जा सकता है। जबकि विद्युत् मापी में डिस्क के परिभ्रमण गिनने से ऊर्जा का मापन होता है। डिस्क अथवा ड्रम के परिभ्रमण गिनने के लिए एक गणकतंत्र होता है, जिससे कुल ऊर्जा का मान पढ़ा जा सकता है।
एक दूसरे प्ररूप के मीटर में वस्तुत: मोटर का छोटा अंग ही काम में लाया जाता है। इसमें धारा कुंडली, उत्तेजक के रूप में होती है और वोल्टता कुंडली, आर्मेचर के रूप में। आर्मेचर से साथ कम्यूटेटर (commutator) भी होता है और संस्पर्श करनेवाले दो बुरुश होते हैं। इस प्रकार वह मीटर, वस्तुत: मोटर का छोटा रूप ही है। इसे इस कारण 'मोटर मीटर' ही कहा जाता है, परंतु यह अधिक महँगा होने के कारण और देखभाल (maintenance) की कठिनाइयों के कारण, बहुत कम प्रयोग में लाया जाता है।
त्रिफेज परिपथों में ऊर्जा मापन भी त्रिफेज शक्ति मापन के आधार पर ही किया जाता है। त्रिफेज वाटमीटर की भाँति, इनमें भी शक्ति अंशक दो भागों में संघटित होता है और संयोजन (connection) भी दो वाटमीटर द्वारा शक्तिमापन के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार इसमें ६ टर्मिनल हाते हैं और उन्हें त्रिफेज वाटमीटर की भाँति ही संयोजित किया जाता है। केवल काल अंशक तथा गणन तंत्र जोड़ देने से यह ऊर्जा का मापन कर सकता है।
एलेक्ट्रॉनिक ऊर्जामापी
सूक्ष्म एलेक्ट्रॉनिकी एवं माइक्रोकंट्रोलर आदि के विकास ने एलेक्ट्रानिक ऊर्जामीटरों का विकास सम्भव बना दिया है। इनका डिस्प्ले LCD या LED पर आधारित होता है। कुछ मीटर पाठ्यांक को दूरस्थ स्थानों पर संचारित भी करने की क्षमता रखते हैं। इसके अलावा एलेक्ट्रानिक ऊर्जामापी सप्लाई तथा लोड के कुछ अन्य प्राचलों (पैरामीटर्स) को भी रेकार्ड कर सकते हैं, जैसे- अधिकतम मांग, वोल्टेज, शक्ति गुणांक, रिएक्टिव शक्ति आदि।