निशान साहिब
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निशान साहिब या निशान साहब सिखों का पवित्र त्रिकोणीय ध्वज है। यह पर्चम कपास या रेशम के कपड़े का बना होता है, इसके सिरे पर एक रेशम की लटकन होती है। इसे हर गुरुद्वारे के बाहर, एक ऊंचे ध्वजडंड पर फ़ैहराया जाता है। परंपरानुसार निशान साहब को फ़ैहरा रहे डंड में ध्वजकलश(ध्वजडंड का शिखर) के रूप में एक दोधारी खंडा (तलवार) होता है, एवं स्वयं ही डंड को पूरी तरह कपड़े से लिपेटा जाता है। झंडे के केंद्र में एक खंडा चिह्न (☬) होता है।
निशान साहिब खालसा पंथ का पारंपरागक प्रतीक है। काफ़ी ऊंचाई पर फ़ैहराए जाने के कारण निशान साहिब को दूर से ही देखा जा सकता है। किसी भी जगह पर इसके फहरने का दृष्य, उस मौहल्ले में खालसा पंथ की मौजूदगी का प्रतीक माना जाता है। हर बैसाखी पर इसे नीचे उतार लिया जाता है और एक नए पर्चम से बदल दिया जाता है।
इतिहास
सिख इतिहास के प्रारंभिक काल में निशान साहिब की पृष्ठभूमि लाल रंग की थी। फ़िर इस का रंग सफ़ेद हुआ और फिर केसरिया। सन् १६०९ में पहली बार गुरु हरगोबिन्दजी ने अकाल तख़्त पर केसरिया निशान साहिब फहराया था। बहरहाल, निहंग द्वारा प्रबंधित किए गए गुरुद्वारों में निशान साहिब के पृष्ठभूमि का रंग इस्पाती नीला होता है। सिंहा के अनुसार, गुरु हरगोबिन्द ने निशान साहिब का इस्तेमाल शुरू किया था, परंतु खंडा के इस्तेमाल बाद में किया जाने लगा(संभवतः १९वीं सदी में)।[१] मैकलेओड के अनुसार, निरंकर्णी सतगुरु दरबार सिंह (१८५५-७०) ने एक लाल निशान साहिब फहराया था एक प्रतीक के रूप में, उनके अभियान के चिन्ह के रूप में जो "सिखों की ब्राह्मण चंगुल से मुक्ती" को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता था।[२] यह सिख साम्राज्य का भी ध्वज था।
परिचय एवं रूपाकृती
निशान साहिब हर गुरुद्वारे के बाहर एक ऊंचे लकड़ी या धातु रचित ध्वजडंड द्वारा फ़ैहराया जाता है।
यह ध्वज त्रिकोंणियाकारी होता है। इसके केसरिया पृष्ठभूमि पर केंद्र में एक नीले रंग का खंडा, अंकित होता है। आम तौर पर जब की इसकी पृष्ठभूमि केसरिया रंग की होती है परंतू यह(कुछ मौकों पर) अन्य रंगों में भी प्रदर्शित हो सकता है। निशान साहब की मेज़बानी कर रहे ध्वजडंड के शिखर पर(डंडमुकुट के रूप में) एक खंडा लगा होता है। ध्वजडंड के कलश पर खंडे की मौजूदगी इस बात का प्रतीक है की हर सिख और बलकी कोई भी व्यक्ती उस भवन में प्रवेश करने के लिये स्वतंत्र है और बेफ़िक्र होकर ईश्वर की अराधना कर सकता है। सिख समाज में निशान साहब का बहुत सम्मानित स्थान है और इसे बहुत इज़्ज़त के साथ रखा जाता है[३]। इस ध्वज को पवित्र माना जाता है इसलिए हर साल बैसाखी के पर्व के दौरान इसे दूध और पानी से पवित्र किया जाता है[४] और जब निशान साहिब का केसरिया रंग फीका पड़ जाता है तब एक नए एवं नवीन ध्वज से उसे बदल दिया जाता है।
किसी भी संस्था के ध्वज की तरह, निशान साहब खालसा का प्रतीक है और इसे हर गुरुद्वारा परिसरों में फहराया जाता है।