तमिल नाडु का इतिहास
आधुनिक भारत का तमिलनाडु नामक क्षेत्र में १५,००० ई॰ पूर्व से १०,००० ई॰ पूर्व के प्रागैतिहासिक काल से मानव सभ्यता के प्रमाण मिलते हैं।[१]
नामकरण
ब्रिटिश शासनकाल में यह प्रदेश मद्रास प्रेसिडेंसी का भाग था। स्वतन्त्रता के बाद मद्रास प्रेसिडेंसी को विभिन्न भागों में बाँट दिया गया, जिसका परिणति मद्रास तथा अन्य राज्यों में हुई। 1968 ई. में मद्रास का नाम बदलकर तमिल नाडु रखा गया था. तमिलनाडु शब्द तमिल भाषा के तमिल तथा नाडु {देश या वासस्थान} से मिलकर बना है जिसका अर्थ तमिलों का घर या तमिलों का देश होता है।
इतिहास
तमिलनाडु का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। यह तीन प्रसिद्ध राजवंशों की कर्मभूमि रही है - चेर, चोल तथा पांड्य। तमिल नाडु के प्राचीन संगम साहित्य में, यहाँ के तत्कालीन राजाओं, राजकुमारों तथा उनके प्रशन्शक कवियों का बार-बार वर्णन प्राप्त होता है। विशेषज्ञ और विद्वान ऐसा मानते हैं कि, यह संगम साहित्य इसा-पश्चात की आरम्भिक कुछ शताब्दियों का है। आरम्भिक चोल, पहली सदी से लेकर चौथी सदी तक सत्ता के मुख्य अधिपति रहे। इनमें सर्वप्रमुख नाम करिकाल चोल है. इसने अपने राज्य को कांचीपुरम् तक पहुँचाया। चोलों ने वर्तमान तंजावुर तथा तिरुचिरापल्ली तक अपना साम्राज्य विस्तार किया व सैन्य कार्यों में महारत हांसिल की. अपने यौवन काल में चोलों ने दक्षिण में श्रीलंका तथा उत्तर में कई 100 किमी तक अपना राज्य स्थापित किया था. तीसरी सदी तक कालभ्रों के आक्रमण से चोलों का पतन आरम्भ हो गया। कालभ्रों को छठी सदी तक, उत्तर में पल्लवों तथा दक्षिण में पांड्यों ने हराकर बाहर खदेड़ दिया था.