आम्भी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
61.1.25.67 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित ०५:०१, २८ जनवरी २०२२ का अवतरण
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

साँचा:asbox

आम्भी

आम्भी या आम्भीकुमार (साँचा:lang-en) ई. पू. 327-26 में भारत पर आलक्षेन्द्र (जिसे सिकन्दर भी कहा जाता है) के आक्रमण के समय गांधार एवं उसकी राजधानी तक्षशिला​ के राजा थे। उनका राज्य सिंधु नदी और झेलम नदी के बीच विस्तृत था। आम्भी के पिता-माता थे राजा अम्भीराज व रानी अल्का व अल्काकुमारी उनकी पत्नी थी तथा आम्भिक उनका पुत्र था। उनकी कूटनीति अपने पिता कि विचारधारा के समान थी और वह पौरव प्रदेश के राजा पर्वतेश्वर​ (जिन्हे यवन पोरस कहते थे) के प्रतिद्वन्द्वी राजा थे, जिनका राज्य झेलम के पूर्व में था। कुछ तो पोरस से ईर्ष्या के कारण और कुछ अपनी कायरता के कारण आम्भी ने स्वेच्छा से आलक्षेन्द्र की अधीनता स्वीकार कर ली और पोरस के विरुद्ध युद्ध में आलक्षेन्द्र का साथ दिया।

आम्भी और आलक्षेन्द्र

आलक्षेन्द्र ने जब सिंधुनद पार किया तब आंभी ने अपनी राजधानी तक्षशिला में चाँदी की वस्तुएँ, भेड़ें और बैल भेंट कर उसका स्वागत किया। चतुर विजेता ने आम्भी के उपहारों को अपने उपहारों के साथ लौटा दिया, जिसके फलस्वरूप आंभी ने आलक्षेन्द्र के भारत में आगे के अभियान के लिए उसे 5,000 अनुपम योद्धा प्रदान किए। आलक्षेन्द्र ने आम्भी को पुरस्कार स्वरूप पहले तो तक्षशिला के राजा के रूप में मान्यता प्रदान की और तत्पश्चात सिंधु के चिनाब संगम क्षेत्र तक का शासन उसे सौंप दिया। आलक्षेन्द्र ने स्वयं अपने देश के लिए प्रस्थान कर तक्षशिला समेत भारत के अपने अन्य जनपदों में क्षत्रप नियुक्त कर दिए। यह क्षत्रप आलक्षेन्द्र के आदेशों का पालन करते थे तथा आम्भी जैसे अन्य राजाओं को क्षत्रप कि अनुमती के बिना कोई निर्णय लेने कि अनुमति नहीं थी।

आम्भी विचारों में परिवर्तन

कुछ समय तक आम्भी ने तक्षशिला का राज्य आनंदपूर्वक चलाया, परन्तु धीरे-धीरे उसने जाना कि यद्यपि वह राजा घोषित किया गया है, तक्षशिला में शासन यवनों का है और यह प्रजा तथा मातृभूमि के हित में नहीं है। फलस्वरूप आम्भी अलक्षेन्द्र से विमुख होने लगे। अपनी पत्नी कल्याणी द्वारा सअमझाये जाने पर तथा तक्षशिला विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध आचार्य चाणक्य के स्पष्टीकरण से प्रभावित होकर आम्भी ने यवनों के विरुद्ध आचार्य चाणक्य के अभियान में उनका साथ देने का निर्णय किया।

आचार्य चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त मौर्य ने यवनों के विरुद्ध प्रतिरोध आयोजित कर, आम्भी, पर्वतेश्वर एवं अन्य राजाओं कि सहायता से पंजाब तथा भारत के अन्य क्षेत्रों से यवनों (यूनानियों) को निकाल बाहर किया। जब आलक्षेन्द्र के सेनापति एवं उसके पूर्वी साम्राज्य के उत्तराधिकारी सेल्युकस ने भारत पर आक्रमण किया तो उस समय भी पंजाब चन्द्रगुप्त मौर्य के अधिकार में था। आम्भी का दुसरा नाम अमरसेन था।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ