इल्हाम

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होरेब पर्वत पर मूसा को सभी इस्राएलियों के सामने दस फ़रमानों का इल्हाम मिलने का चित्रण। इस घटना का उल्लेख पुराने नियम के व्यावस्थविवरण की किताब में मिलता है।[१]

इलहाम या दिव्य ज्ञान धर्मशास्त्र तथा प्रत्ययवादी धार्मिक दर्शन की आधारभूत अवधारणा है। इलहाम रहस्यमय प्रबोधन की संक्रिया में अलौकिक यथार्थ के अतीन्द्रिय संज्ञान की अभिव्यक्ति है। इलहाम की चर्चा मुख्यतः सामी धर्म के पवित्रग्रंथों (बाइबिल, क़ुरान आदि) में की गयी है। समसामयिक धर्मशास्त्र यह दावा करते हुए कि इलहाम तर्कबुद्धि के विपरीत नहीं है, इस विचार को आधुनिक रूप देने का प्रयास करता है। ऐसी मान्यता है कि, समकालीन धार्मिक धाराओं में इलहाम के प्रत्यय के कारण ईश्वरवाद की दार्शनिक पैरवी में अतर्कबुद्धिवाद की भूमिका मे वृद्धि हो रही है।[२]

इब्राहीमी धर्मों में

इब्राहीमी धर्मों में, इस शब्द का उपयोग उस प्रक्रिया को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जिसके द्वारा ईश्वर स्वयं, अपनी इच्छा, और मनुष्यों की दुनिया के लिए अपनी दिव्य सिद्धता का ज्ञान प्रकट करते हैं। "इल्हाम" ईश्वर, भविष्यवाणी और अन्य दिव्य चीजों के बारे में परिणामी मानव ज्ञान को बोध करता है। अलौकिक स्रोत से इल्हाम कुछ अन्य धार्मिक परंपराओं जैसे बौद्ध धर्म में कम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।[३]

इस्लाम

मुसलमानों का मानना ​​है कि अल्लाह ने अपने अंतिम संदेश को मुहम्मद के माध्यम से फरिश्ता जिब्रील के माध्यम से प्रकट किया था।[४] माना जाता है कि मुहम्मद अंतिम पैग़म्बर थे और कुरान अंतिम इल्हाम है, तथा मुसलमानों का मानना ​​है कि वह मानवता के लिए ईश्वर का अंतिम रहस्योद्घाटन है और क़यामत तक मान्य होगा। कुरान का दावा है की उसे शब्द-दर-शब्द प्रगट किया गया था।

मुसलमानों का मानना ​​है कि इस्लाम का संदेश वैसा ही है जैसा कि आदम तथा उनके बाद ईश्वर द्वारा भेजे गए सभी नबियों द्वारा दिया गया था। तथा यह मना जाता है कि इस्लाम एकेश्वरवादी धर्मों में सबसे पुराना है क्योंकि वह इब्राहीम, मूसा, दाऊद, ईसा और मुहम्मद के ज़रिये ईश्वर के मूल और अंतिम इल्हाम का प्रतिनिधित्व करता है।[५][६] इसी तरह, मुसलमानों का मानना ​​है कि प्रत्येक नबी को उनके जीवन में ईश्वर द्वारा इल्हाम दिया गया, क्योंकि प्रत्येक नबी को ईश्वर ने मानव जाति का मार्गदर्शन करने के लिए भेजा था। ईसा इस पहलू में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्होंने दोतरफा पहलू से इल्हाम प्राप्त किया, क्योंकि मान्यतानुसार उन्होंने तौरात पढ़ाए जाने के दौरान भी इंजील (सुसमाचार) का प्रचार किया था। बाकि किसी भी नबी ने ईश्वर द्वारा भेजी गयी एक से अधिक किताब के पहलु से जइल्हाम प्राप्त नहीं किया था।

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इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. https://www.wordplanet.org/in/b05.htm
  2. दर्शनकोश, प्रगति प्रकाशन, मास्को, १९८0, पृष्ठ-८८, ISBN: ५-0१000९0७-२
  3. साँचा:cite web
  4. Watton (1993), "Introduction"
  5. Esposito (2002b), pp.4–5
  6. [Qur'an 42:13]

बाहरी कड़ियाँ