बड़ा राजन

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राजन महादेव नायर उर्फ़ बड़ा राजन (मलयालमः രാജന് മഹാദേവ് നായര്) (स्वर्गवास 1983 सितम्बर 21) मुंबई अन्डरवर्ल्ड के महान डॉन था। चेंबूर के तिलक नगर में उनका प्रमुख अड्डा था।

बचपन में ही पापी पेट ने राजन भाई को अपराध के जीवन की ओर धकेल दिया।[१] विख्रोली में छोटा राजन भाई के साथ मिलकर उन्होंने सिनेमा टिकट को ब्लैक में बेचने का धंधा शुरु किया। 1970 और 1985 के बीच में बड़ा राजन भाई ने अपने खुद का गैंग खड़ा कर दिया। छोटा राजन उनका प्रमुख लेफ्टिनेंट और जिगरी यार था। जय-वीरू जैसी इस जोड़ी ने अपनी करीबी दोस्ती मौत तक निभाई।

मेहनत और लगन से काम कर के राजन भाई ने अपने बिज़नस को आगे बढ़ाया। और अन्डरवर्ल्ड् में प्रतिष्ठा हासिल की। जमीन-संबंधी विवादों को निबटाने में निपुणता प्राप्त करने के साथ-साथ भाई ने पैसे के बदले मशहूर हस्तियों को संरक्षण प्रदान किया।[२] जब माटुंगा के शक्तिशाली तामिल डॉन वरदराजन मुदलियार मद्रास चले गये, तो बड़ा राजन और छोटा राजन भाईलोग ने उनकी विरासत को सम्भाला और आगे बढ़ाया। मुंबई में मुदालियर अन्ना के तस्करी बिज़्नस को राजन् भाई ने करीम लाला और हाजी मस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वियों से बचाया। धीरे धीरे उन्होंने चेम्बूर से घाटकोपर इलाके में अपना प्रभाव जमाया।[३]

1976 में जनसेवा की भावना से बड़ा राजन भाई ने तिलकनगर में सहयाद्रि क्रीड़ा संघ की स्थापना की।[४] हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल देते हुए राजन भाई ने मश्हूर डॉन दाऊद इब्राहिम के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किया। दाऊद भाई के साथ विश्वासघात करने वाले अमीरज़ादा नवाब खान को मारने की सुपारी राजन भाई ने ली।[५]

ब्लैक टिकट बिज़्नस में प्रतिद्वंद्वी डॉन यशवंत जाधव ने राजान भाई को चुनौती दी। कुछ समय पहले यशवंतभाउ के गैंगस्टर दोस्त फिलिप पन्ढारे ने राजन भाई को लोकल ट्रेन में चाकू मारेला था। थोड़े दिनों के बाद राजन भाई के कुछ आदमी - डॉम्निक, बड़ा तम्बी, अशोक कुंटे, पार्लिया, कम्लाकर, संजीव भोंसले और येड़ा बाला - भाई के छोड़कर यश्वन्तभाउ से जा मिले। अभी राजन भाई के दिल पे चोट लगी, उनको बहुत गुस्सा आया। वो डॉम्निक को सबक सिखाने वास्ते ओडियॉन सिनेमा हाल में पहुँचे। इधर पर भोगीलाल नाम के एक आदमी ने डॉम्निक को छुपाने की कोशिश की। राजन भाई का दिमाग सटक गया और उन्होंने भोगीलाल का बेड़ा गर्क कर दिया। इस हाथापाई में पुलिस कांस्टेबल रामचंद्र खरे और गोरखनाथ सकपाल भी घायल हो गए।[१]

अगले दो वर्षों के भीतर दोनों गैंग की फ़ाइट में सात लोग मारे गए। अंततः, जब राजन भाई ने मुदालियर अन्ना से शिकायत की तो यश्वन्तभाउ की फट गई। मायूस होकर यश्वन्तभाउ ने लोकप्रसिध्द बदमाश अब्दुल कुंजू की मदद ली। अब्दुल भाई और राजन भाई की पुरानी दुश्मनी थी। कुछ टाइम पहले राजन भाई के लोगों ने ने अब्दुल के कुछ आदमियों की पिटाई की थी - ये आदमी चेम्बूर की शेल कालोनी में एक महिला टाइपिस्ट को परेशान कर रहे थे। यह घटना एक घातक प्रतिद्वंद्विता में विकसित हो गई - अब्दुल और राजन दोनों ने एक दूसरे को मारने की कसम खा ली।[६]

अब्दुल भाई ने राजन भाई को मारने की सुपारी अपने पड़ोसी के चंद्रशेखर सफालिका को दी। चंद्रशेखर ने एक एक नौसेना कैडेट के कपड़ों में एस्प्लेनेड अदालत के बाहर बड़ा राजन पीछा किया और एक मोटी किताब की गुहा में छिपाई बंदूक से उन्हें गोली मार दी। इस् तरह 21 सितंबर 1983 को भारत माता के इस महान पुत्र को महानिर्वाण प्राप्त हुआ।

1991 की मलयालम फिल्म अभिमन्यु बड़ा राजन के जीवन से प्रेरित थी। इस फिल्म में मोहनलाल एक मलयाली आप्रवासी है, जो मुंबई अंडरवर्ल्ड सरगना बन जाता है।

सन्दर्भ

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  3. Black Friday: the true story of the Bombay bomb blasts, S. Hussain Zaidi, Penguin Books, 2002, p. 25
  4. Performative politics and the cultures of Hinduism: public uses of religion, Raminder Kaur, Orient Blackswan, 2003, p. 84
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