वित्तीय साक्षरता

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वित्तीय साक्षरता का अर्थ है - धन के सही ढंग से उपयोग को समझने की क्षमता'। दूसरे शब्दों में इसका मतलब किसी व्यक्ति में मौजूद कुछ कौशलों तथा ज्ञान से है जिनके बल पर वह सोचसमझकर प्रभावशाली निर्णय ले पाता है। विभिन्न देशों में वित्तीय साक्षरता की स्थिति अलग-अलग है।

"वित्तीय शिक्षा" का अर्थ होता है, "धन" के बारे में सही जानकारी प्राप्त करना, जिससे हम अपने "धन" का सही प्रबंधन करते हुए, अपने वित्तीय भविष्य को सुरक्षित एवं बेहतर बना सकें l

वित्तीय-शिक्षा की आवश्यकता

"वित्तीय शिक्षा" की आवश्यकता इसलिए है क्यों की अब समय बदल चुका है, अमीर और अमीर होता जा रहा है किन्तु मध्यम वर्ग और गरीब होता जा रहा है, हमारी वित्तीय समस्याएं और बढ़ती जा रही हैं किन्तु कही भी इस समस्या का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है l सिर्फ यही नहीं "वित्तीय समस्या" के कारण ही समाज में "गरीबी" "घरेलू हिंसा" "अपराध" एवं "भ्रष्टाचार" आदि असामाजिक समस्याएं भयानक रूप लेती जा रही हैं, जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त होता जा रहा है l

वित्तीय-शिक्षा से लाभ

"वित्तीय शिक्षा" से हमारे "विचारों" में बदलाव आएगा, जिससे हमारे "काम" बदल जायेंगे और जब हमारे काम बदल जायेंगे तब हमारे "परिणाम" भी बदल जायेंगे l क्योंकि हम एक ही काम को बार-बार करते हैं और हर बार अलग परिणाम की अपेक्षा करते रहते हैं किन्तु हमारे परिणाम नहीं बदलते l अतः यदि हमें अपने जिंदगी के "परिणाम" बदलने है तो हमें "काम" बदलने होंगे और "काम" तभी बदलेंगे जब हमारे "विचार" बदलेंगे l इस तरह जब हमारे "वित्तीय-विचार" में बदलाव आएगा तब "समाज" में भी वित्तीय बदलाव आएगा और जब हमारा समाज वित्तीय रूप से प्रशिक्षित होगा, तब हमारा देश भी वित्तीय रूप से मजबूत हो जायेगा, जिससे न सिर्फ हमारा बल्कि हमारे देश का आर्थिक स्वरुप ही बदल जायेगा l जहाँ "वित्तीय-समस्या" की नहीं, "वित्तीय-समाधान" की स्थिति निर्मित हो जाएगी, जोकि सिर्फ और सिर्फ "वित्तीय-शिक्षा" से ही संभव है l

वित्तीय-शिक्षा का प्रचार-प्रसार

"वित्तीय-शिक्षा" का प्रचार-प्रसार करने का अर्थ है, "लोगों की वित्तीय समस्याओं के समाधान के लिए मदद करना" !! "वित्तीय-शिक्षा" का विस्तार करना हमारा फ़र्ज़ और कर्त्तव्य दोनों है जिससे हमारे साथ-साथ सभी का आर्थिक कल्याण हो सके तथा वर्तमान एवं भविष्य की बढ़ती हुई "वित्तीय-समस्याओं" का समाधान हो सके l यदि हमें "समस्या का नहीं, बल्कि समाधान का हिस्सा बनना है तो हमें यह जिम्मेदारी निभानी ही होगी l जबकि आज भारत को सिर्फ "विचार" की नहीं बल्कि एक "वित्तीय-विचार" की सख्त जरूरत है l जब हमारे समाज का एक-एक परिवार आर्थिक रूप से मज़बूत होगा तभी हमारा देश भी आर्थिक रूप से मज़बूत होगा l

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