अशोक के अभिलेख
मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा प्रवर्तित कुल ३३ अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें अशोक ने स्तंभों, शिलाओं (चट्टानों) और गुफाओं की दीवारों में अपने २६९ ईसापूर्व से २३१ ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।[१]
इन शिलालेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म फैलाने के प्रयास भूमध्य सागर के क्षेत्र तक सक्रिय थे और सम्राट मिस्र और यूनान तक की राजनैतिक परिस्थितियों से भलीभाँति परिचित थे। इनमें बौद्ध धर्म की बारीकियों पर ज़ोर कम और मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं। पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मागधी में ब्राह्मी लिपि के प्रयोग से लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया। एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गई है, जबकि एक अन्य में यूनानी और अरामाई भाषा में द्विभाषीय आदेश दर्ज है। इन शिलालेखों में सम्राट अपने आप को "प्रियदर्शी" (प्राकृत में "पियदस्सी") और देवानाम्प्रिय (यानि देवों को प्रिय, प्राकृत में "देवानम्पिय") की उपाधि से बुलाते हैं।
शाहनाज गढ़ी एवं मानसेहरा (पाकिस्तान) के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण हैं। तक्षशिला एवं लघमान (काबुल) के समीप अफगानिस्तान अभिलेख आरमाइक एवं ग्रीक में उत्कीर्ण हैं। इसके अतिरिक्त अशोक के समस्त शिलालेख, लघुशिला स्तम्भ लेख एवं लघु लेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं। अशोक का इतिहास भी हमें इन अभिलेखों से प्राप्त होता है।
अभी तक अशोक के ४० अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं। सर्वप्रथम १८३७ ई. पू. में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान ने अशोक के अभिलेख को पढ़ने में सफलता हासिल की थी।
अभिलेखों में वर्णित विषय
बौद्ध धर्म को अपनाने का वर्णन
सम्राट बताते हैं कि कलिंग को २६४ ईसापूर्व में पराजित करने के बाद उन्होंने पछतावे में बौद्ध धर्म अपनाया:
- देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी ने अपने राज्याभिषेक के आठ वर्ष बाद कलिंगों को पराजित किया। डेढ़ लाख लोगों को निर्वासित (बेघर) किया, एक लाख मारे गए और अन्य कारणों से और बहुत से मारे गए। कलिंगों को अधीन करके देवों-के-प्रिय को धर्म की ओर खिचाव हुआ, धर्म और धर्म-शिक्षा से प्रेम हुआ। अब देवों-के-प्रिय को कलिंगों को परास्त करने का गहरा पछतावा है। (शिलालेख संख्या १३)
बौद्ध बनाने के बाद अशोक ने भारत-भर में बौद्ध धार्मिक स्थलों पर यात्रा करी और उन स्थानों पर अक्सर शिलालेख वाले स्तम्भ लगवाए:
- अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद, देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी इस स्थान पर आए और पूजा की क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध पैदा हुए थे। उन्होने एक पत्थर की मूर्ति और एक स्तम्भ स्थापित करवाया और, क्योंकि यह भगवन का जन्मस्थान है, लुम्बिनी के गाँव को लगान से छूट दी गई और फसल का केवल आठवाँ हिस्सा देना पड़ा। (छोटा स्तम्भ, शिलालेख संख्या १)
प्रसिद्ध भारतविद ए एल बाशम का मत है कि अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म अपना लिया और बौद्घ धर्म का उन्होने प्रचार-प्रसार किया। [२] उनके संरक्षण के फलस्वरूप बौद्ध धर्म का उनके साम्राज्य में तथा अन्य राज्यों में खूब प्रसार हुआ।
विदेश में धर्मप्रचार का वर्णन
बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए अशोक ने भारत के सभी लोगों में और यूनानी राजाओं को भूमध्य सागर तक दूत भेजे। उनके स्तम्भों पर यूनान से उत्तर अफ़्रीका तक के बहुत से समकालीन यूनानी शासकों के सही नाम लिखें हैं, जिससे ज्ञात होता है कि वे भारत से हज़ारों मील दूर की राजनैतिक परिस्थितियों पर नज़र रखे हुए थे:
- अब धार्मिक जीत को ही देवों-के-प्रिय सब से उत्तम जीत मानते हैं। और यही यहाँ सीमाओं पर जीती गई है, छह सौ योजन दूर भी, जहाँ यूनानी नरेश अम्तियोको (अन्तियोकस) का राज है और उस से आगे जहाँ चार तुरामाये (टॉलमी), अम्तिकिनी (अन्तिगोनस), माका (मागस) और अलिकसुदारो (ऐलॅक्सैन्डर) नामक राजा शासन करते हैं और उसी तरह दक्षिण में चोल, पांड्य और ताम्रपर्णी (श्रीलंका) तक। (शिलालेख संख्या १३)
हर योजन लगभग सात मील होता है, इसलिए ६०० योजन का अर्थ लगभग ४,००० मील है जो ईस समय के लगभग समान है , जो भारत के केंद्र से लगभग यूनान के केंद्र की दूरी है। जिन शासकों का यहाँ वर्णन हैं, वह इस प्रकार हैं:
- अम्तियोको सीरिया के अन्तियोकस द्वितीय थेओस (Antiochus II Theos, Αντίοχος Β' Θεός, शासनकाल: २६१-२४६ ईसापूर्व)
- तुरामाये मिस्र के टॉलमी द्वितीय फ़िलादॅल्फ़ोस (Ptolemy II Philadelphos, Πτολεμαῖος Φιλάδελφος, शासनकाल: २८५-२४७ ईसापूर्व)
- अम्तिकिनी मासेदोन (यूनान) के अन्तिगोनस द्वितीय गोनातस (Antigonus II Gonatas, Αντίγονος B΄ Γονατᾶς, शासनकाल: २७८-२३९ ईसापूर्व)
- माका सएरीन (लीबिया) के मागस (Magas of Cyrene, शासनकाल: २७६-२५० ईसापूर्व)
- अलिकसुदारो इपायरस (यूनान और अल्बानिया के बीच का एक क्षेत्र) के ऐलॅक्सैन्डर द्वितीय (Alexander II of Epirus, शासनकाल: २७२-२५८ ईसापूर्व)
यूनानी स्रोतों से साफ़ ज्ञात नहीं होता की यह दूत इन राजाओं से वास्तव में मिले भी की नहीं और यूनानी क्षेत्र में इनका क्या प्रभाव हुआ। फिर भी, कुछ विद्वानों ने यूनानी क्षेत्रों में बौद्ध समुदाय की मौजूदगी (विशेषकर आधुनिक मिस्र में स्थित अल-इस्कंदरिया में) को अशोक के धर्म-दूतों की कुछ मात्रा में सफलता का संकेत माना है। सिकंदरिया के क्लॅमॅन्त (Clement of Alexandria, अनुमानित १५० ई॰ - २१५ ई॰) ने अपनी लेखनी में इनका ज़िक्र किया।[३] अल-इस्कंदरिया में टॉलमी काल की बौद्ध समाधियों पर धर्मचक्र-धारी शिलाएँ मिली हैं।[४]
स्वदेश में धर्मप्रचार का वर्णन
अपनी शिलालेखों में सम्राट ने कई समुदायों का ज़िक्र भी किया जो उनके राज्य की सीमाओं के अन्दर रहते थे:
- यहाँ सम्राट के राज्य में यूनानी, कम्बोज, नाभक, नाभ्पंकित, भोज, पितिनिक, आंध्र और पुलिंद, सभी लोग देवों-के-प्रिय के धर्मनिर्देश का पालन कर रहे हैं। (शिलालेख संख्या १३)
यूनानी समुदाय
बहुत से यूनानी मूल के और यूनानी संस्कृति से प्रभावित लोग मौर्य राज्य के उत्तरपश्चिमी इलाक़े में बसे हुए थे, जिसमें आधुनिक पाकिस्तान का ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रांत और दक्षिणी अफ़्ग़ानिस्तान आते हैं। इनकी कुछ रीति-रिवाजों पर भी शिलालेख में टिप्पणी मिलती है:
- कोई देश ऐसा नहीं है, यूनानी को छोड़कर, जिनमें ब्राह्मण और श्रमण (बौद्ध भिक्षु) दोनों ही न मिलते हों, न ही ऐसा कोई देश है जहाँ लोग एक या दूसरे धर्म के अनुयायी न हों। (शिलालेख संख्या १३)
अशोक के दो आदेश अफ़्ग़ानिस्तान में मिले हैं, जिनमें यूनानी भाषा में लिखा हुआ है और जिनमें से एक यूनानी और अरामाई में द्विभाषीय है। कंदहार में मिला यह द्विभाषीय शिलालेख "धर्म" शब्द का अनुवाद यूनानी के "युसेबेइया" (εὐσέβεια, Eusebeia) शब्द में करता है, जिसका अर्थ "निष्ठा" भी निकलता है:
- दस साल का राज पूर्ण होने पर, सम्राट पियोदासॅस (Πιοδάσσης, Piodasses, प्रियदर्शी का यूनानी रूपांतरण) ने पुरुषों को युसेबेइया (εὐσέβεια, धर्म/निष्ठा) का ज्ञान दिया और इस क्षण से पुरुषों को अधिक धार्मिक बनाया और पूरे संसार में समृद्धि है। सम्राट जीवित प्राणियों को मारने से स्वयं को रोकता है और अन्य पुरुष को सम्राट के शिकारी और मछुआरे हैं वह भी शिकार नहीं करते। अगर कुछ पुरुष असंयम हैं तो वह यथाशक्ति अपने असंयम को रोकते हैं और अपने माता-पिता और बड़ों की प्रति आज्ञाकारी हैं, जो भविष्य में भी होगा और जो भूतकाल से विपरीत है और जैसा हर समय करने से वे बेहतर और अधिक सुखी जीवन जियेंगे।[५]
अन्य समुदाय
- कम्बोज या कम्बोह एक मध्य एशिया से आया समुदाय था जो पहले तो दक्षिणी अफ़्ग़ानिस्तान और फिर सिंध, पंजाब और गुजरात के क्षेत्रों में आ बसे। आधुनिक युग में इस समुदाय के लोग पंजाबियों में मिला करते हैं और इस्लाम, हिन्दू धर्म और सिख धर्म के अनुयायियों में बंटे हुए हैं।
- नाभक, नाभ्पंकित, भोज, पितिनिक, आंध्र और पुलिंद अशोक के राज्य में बसी हुई अन्य जातियाँ थीं।
अशोक के शिलालेख
१४ दीर्घ शिलालेख
अशोक के १४ दीर्घ शिलालेख (या बृहद शिलालेख) विभिन्न लेखों का समूह है जो आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गये हैं-
(१) धौली- यह उड़ीसा के पुरी जिला में है।
(२) शाहबाज गढ़ी- यह पाकिस्तान (पेशावर) में है।
(३) मान सेहरा- यह पाकिस्तान के हजारा जिले में स्थित है।
(४) कालसी- यह वर्तमान उत्तराखण्ड (देहरादून) में है।
(५) जौगढ़- यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है।
(६) सोपारा- यह महाराष्ट्र के पालघर जिले में है।
(७) एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित है।
(८) गिरनार- यह काठियावाड़ में जूनागढ़ के पास है।
- १४ दीर्घ शिलालेकों के वर्ण्य-विषय
- प्रथम शिलालेख : किसी भी पशु वध न किया जाए तथा राजकीय एवँ "मनोरंजन तथा उत्सव" न किये जाने का आदेश दिया गया है ।
- द्वितीय शिलालेख : मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सालय खुलवाना और उनमें औषधि की व्यवस्था करना। मनुष्यों एवँ पशुओं के के कल्याण के लिए मार्गों पर छायादार वृक्ष लगवाने तथा पानी की व्यवस्था के लिए कुँए खुदवाए।
- तृतीय शिलालेख : राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिए गए हैं कि प्रति पाँच वर्षों के बाद धर्म प्रचार के लिए दौरे पर जायें।
- चतुर्थ शिलालेख : राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिए गए हैं कि व्यवहार के सनातन नियमों यथा - नैतिकता एवं दया - का सर्वत्र प्रचार प्रसार किया जाए ।
- पञ्चम शिलालेख : इसमें धर्ममहामात्रों की नियुक्ति तथा धर्म और नैतिकता के प्रचार प्रसार के आदेश का वर्णन है ।
- षष्ट शिलालेख : राजकीय पदाधिकारियों को स्पष्ट आदेश देता है कि सर्वलोकहित से सम्बंधित कुछ भी प्रशासनिक सुझाव मुझे किसी भी समय या स्थान पर दें ।
- सप्तम शिलालेख : सभी जाति, सम्प्रदाय के व्यक्ति सब स्थानों पर रह सकें क्योंकि वे सभी आत्म-संयम एवं ह्रदय की पवित्रता चाहते हैं ।
- अष्टम शिलालेख : राज्यभिषेक के दसवें वर्ष अशोक ने सम्बोधि (बोधगया) की यात्रा कर धर्म यात्राओं का प्रारम्भ किया। ब्राम्हणों एवं श्रमण के प्रति उचित वर्ताव करने का उपदेश दिया गया है ।
- नवम शिलालेख : दास तथा सेवकों के प्रति शिष्टाचार का अनुपालन करें, जानवरों के प्रति उदारता, ब्राह्मण एवं श्रमण के प्रति उचित वर्ताव करने का आदेश दिया गया है ।
- दशम शिलालेख : घोषणा की जाए की यश और कीर्ति के लिए नैतिकता होनी चाहिए ।
- चतुर्दश शिलालेख : धर्म प्रचानार्थ अशोक अपने विशाल साम्राज्य के विभिन्न स्थानों पर शिलाओं के उपर धम्म लिपिबद्ध कराया जिसमें धर्म प्रशासन संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं का विवरण है ।
लघु शिलालेख
अशोक के लघु शिलालेख, चौदह दीर्घ शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मिलित नहीं है जिसे लघु शिलालेख कहा जाता है। ये निम्नांकित स्थानों से प्राप्त हुए हैं-
(१) रूपनाथ - ईसा पूर्व २३२ का यह मध्य प्रदेश के कटनी जिले में है।
(२) गुर्जरा- यह मध्य प्रदेश के दतिया जिले में है। इसमें अशोक का नाम अशोक लिखा गया है
(३) भाबरू- यह राजस्थान के जयपुर जिले के विराटनगर में है। जिसमे अशोक ने बौद्ध धर्म का वर्णन किया है। यह शिलालेख अशोक के बौद्ध धर्म का अनुयायी होने का सबसे बड़ा प्रमाण है। यह अशोक के शिलालेखों में से एकमात्र ऐसा शिलालेख है जो बेलनाकार आकृति का है।
(४) मास्की- यह कर्नाटक के रायचूर जिले में स्थित है। इसमें भी अशोक ने अपना नाम अशोक लिखा है इस शिलालेख के माध्यम से सम्राट अशोक के साम्राज्य की दक्षिणी सीमाओं की जानकारी प्राप्त होती है।
(५) सहसराम- यह बिहार के शाहाबाद जिले में है।
(६) महास्थान- यह बांग्लादेश के पुंदरुनगर में स्थित है, इसके माध्यम से सम्राट अशोक के राज्य की पूर्वी सीमाओं की जानकारी मिलती है।
धम्म को लोकप्रिय बनाने के लिए अशोक ने मानव व पशु जाति के कल्याण हेतु पशु-पक्षियों की हत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। राज्य तथा विदेशी राज्यों में भी मानव तथा पशु के लिए अलग चिकित्सा की व्य्वस्था की। अशोक के महान पुण्य का कार्य एवं स्वर्ग प्राप्ति का उपदेश बौद्ध ग्रन्थ संयुक्त निकाय में दिया गया है।
अशोक ने दूर-दूर तक बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु दूतों, प्रचारकों को विदेशों में भेजा अपने दूसरे तथा १३वें शिलालेख में उसने उन देशों का नाम लिखवाया जहाँ दूत भेजे गये थे।
दक्षिण सीमा पर स्थित राज्य चोल, पाण्ड्य, सतिययुक्त केरल पुत्र एवं ताम्रपार्णि बताये गये हैं।
अशोक के स्तम्भ-लेख
अशोक के स्तम्भ लेखों की संख्या सात है जो छः भिन्न स्थानों में पाषाण स्तम्भों पर उत्कीर्ण पाये गये हैं। इन स्थानों के नाम हैं-
(१) दिल्ली/ टोपरा- यह स्तम्भ लेख प्रारम्भ में हरियाणा के अंबाला जिले में पाया गया था। यह मध्ययुगीन सुल्तान फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया। इस पर अशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण हैं।
(२) दिल्ली /मेरठ- यह स्तम्भ लेख भी पहले मेरठ में था जो बाद में फिरोजशाह द्वारा दिल्ली लाया गया।
(३) लौरिया अरराज - चम्पारण (बिहार)
(४) लौरिया नंदगढ़ - चम्पारण (बिहार)। इस पर मोर का चित्र भी अंकित है।
(५) रामपुरवा - चम्पारण (बिहार)
(६) प्रयाग - पहले कौशाम्बी में था बाद में अकबर द्वारा इलाहाबाद (प्रयागराज) मंगवाया गया। उत्तर प्रदेश
- लघु स्तम्भ-लेख
अशोक की राजकीय घोषणाएँ जिन स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें लघु स्तम्भ लेख कहा जाता है, जो निम्न स्थानों पर स्थित हैं-
१. सांची- मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में है।
२. सारनाथ- उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में है।
३. रूभ्मिनदेई- नेपाल के तराई में है।
४. कौशाम्बी- इलाहाबाद के निकट है।
५. निग्लीवा- नेपाल के तराई में है।
६. ब्रह्मगिरि- यह मैसूर के चिबल दुर्ग में स्थित है।
७. सिद्धपुर- यह ब्रह्मगिरि से एक मील उ. पू. में स्थित है।
८. जतिंग रामेश्वर- जो ब्रह्मगिरि से तीन मील उ. पू. में स्थित है।
९. एरागुडि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है।
१०. गोविमठ- यह मैसूर के कोपवाय नामक स्थान के निकट है।
११. पालकिगुण्क- यह गोविमठ की चार मील की दूरी पर है।
१२. राजूल मंडागिरि- यह आन्ध्र प्रदेश के कूर्नुल जिले में स्थित है।
१३. अहरौरा- यह उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है।
१४. सारो-मारो- यह मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित है।
१५. नेतुर- यह मैसूर जिले में स्थित है।
अशोक के गुहा-लेख
दक्षिण बिहार के गया जिले में स्थित बराबर नामक तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण प्राप्त हुए हैं। इन सभी की भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी है। केवल दो अभिलेखों शाहवाजगढ़ी तथा मान सेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है। यह लिपि दायीं से बायीं और लिखी जाती है।
तक्षशिला से आरमाइक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख कन्धार के पास शारे-कुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमाइक द्विभाषीय अभिलेख प्राप्त हुआ है।
प्रमुख अभिलेखों का परिचय
अशोक के शिलालेख १४ विभिन्न लेखों का समूह हैं जो आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गये हैं। मगध साम्राज्य के प्रतापी मौर्यवंशी शासक अशोक ने अपनी लोककल्याणकारी राज्य की अवधारणा को प्रजा में प्रसारित करने के लिए 14 स्थलों पर शिलालेख, लघु शिलालेख एवं अन्य अभिलेख उत्कीर्ण करवाया था।
धौली
उड़ीसा के पुरी जिला में स्थित इस बृहद शिलालेख में अशोक ने पशु वध और समारोहों पर होने वाले अनावश्यक खर्च की निंदा की है।
शाहबाज गढ़ी
पेशावर (पाकिस्तान) में स्थित इस दूसरे शिलालेख में प्राणिमात्र (पशुओं सहित) के लिए चिकित्सालय खोलने का उल्लेख है। पेयजल और वृक्षारोपण को विशेष प्राथमिकता दी गयी है।
सम्राट् अशोक के १४ प्रज्ञापनों की पांचवीं प्रतिलिपि पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के पेशावर जिले की युसुफजई तहसील में शाहबाजगढ़ी गाँव के पास एक चट्टान पर खुदी मिली है। यह पहाड़ी पेशावर से ४० मील उत्तरपूर्व है। मानसेहरा की तरह शाहबाजगढ़ी की प्रतिलिपियाँ खरोष्ठी लिपि में खुदी हैं, जो दाहिनी से बाईं ओर लिखी जाती है, शेष पाँचो स्थानों की प्रतिलिपियाँ ब्राह्मी लिपि में हैं।
इन चौदह प्रज्ञापनों की मुख्य बातें ये हैं -
- (१) जीवहिंसा का निषेध एवं राजा के रसोईघर में खाय व्यंजनों में जीवहिंसा पर संयम;
- (2) सम्राट् अशोक के जीते हुए सब स्थानों में एवं विशेषकर सीमांत प्रदेशों में मनुष्यों एवं पशुओं की चिकित्सा का प्रबंध;
- (3) अधिकारियों का धर्मानुशासन के लिए भी दौरा एवं आचार की सामान्य बातें,
- (4) धर्माचरण में शील का पालन,
- (5) लोगों को धर्माचरण की बातें बताने के लिए धर्ममहामात्यों का नियत किया जाना,
- (6) राजा के कर्तव्यपालन की बातें,
- (7) संयम, भावशुद्धि एवं विभिन्न धर्मों का आदर,
- (8) विहार यात्रा की जगह धर्मयात्रा पर सम्राट् का संकल्प,
- (9) निरर्थक मंगल कार्यों की जगह समाज में धर्ममंगल की बातों को प्रश्रय देना;
- (10) कर्तव्य कार्यों में धर्ममंगल की बातों का समावेश; धर्म के लिए विशेष प्रयत्न की अपेक्षा।
शेष प्रज्ञापनों में लोगों में समान एवं सम्मानपूर्वक व्यवहार, अपने अपने धर्मों की अच्छी बातों का परिपालन, सत्व की बढ़ती, कलिंगयुद्ध के उपरांत युद्ध के लिए सम्राट् के मन में पश्चात्ताप एवं जीते हुए प्रदेशों में धर्मानुशासन के कार्य तथा विभिन्न स्थानों में धर्मादेशों के लिखाने की बातें हैं।
मान सेहरा
हजारा जिले में स्थित इस तीसरे शिलालेख में धन को सोच समझकर खर्च करने की नसीहत है। साथ ही बडों के संग आदरपूर्वक, नम्रतापूर्ण व्यवहार करने का सन्देश है।
कालसी/कालकूट
यह वर्तमान उत्तराखंड (देहरादून) में है। यमुना नदी तट पर है
जौगढ़
यह उड़ीसा के जौगढ़ में स्थित है।इसमे कलिंग की प्रजा के साथ पुत्रवत व्यवहार करने का आदेश दिया गया है।
सोपारा
यह महाराष्ट्र के पालघर जिले के नाला सोपारा में स्थित है।
एरागुडि
आन्ध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में स्थित सातवें शिलालेख में अशोक ने निर्देश दिया है कि सभी सम्प्रदायों के लोग सभी स्थानों पर रह सकते हैं। इसमें सह-अस्तित्व की मीठी सुगंध मिलती है।
गिरनार
यह काठियाबाड़ में जूनागढ़ के पास है।
अशोक के अभिलेखों के चित्र
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- Edicts of Ashoka - principal events in the scholarship of Ashoka till present।
- The Edicts of King Ashoka (full text, electronic edition offered for free distribution)
- The Edicts of King Ashoka in Access to Insight
- Edicts in original Gandhari
- King Asoka and Buddhism. Historical and Literary studies
- Inscriptions of India – Complete listing of historical inscriptions from Indian temples and monuments