टीपू का बाघ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>InternetArchiveBot द्वारा परिवर्तित १५:०७, १९ दिसम्बर २०२१ का अवतरण (Rescuing 1 sources and tagging 0 as dead.) #IABot (v2.0.8.5)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
टीपू का बाघ लंदन के विक्टोरिया और एल्बर्ट संग्रहालय मे कुंजीपटल के साथ।

टीपू सुल्तान का बाघ एक १८वी शताब्दी का मशीनी कला का नमूना है, जो की मैसूर राज्य के पूर्व शासक टीपू सुल्तान की सम्पत्ती है। यह एक बाघ को बर्बरतापूर्ण तरीके से एक यूरोपीय सैनिक का वध करते हुए दर्शाता है – विशिष्ट रूप से एक ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के देशी सिपाही को। यह वर्तमान समय में लंदन के विक्टोरिया और एल्बर्ट संग्रहालय मे प्रदर्शित है।[१]

वर्णन

टीपू का बाघ मूल रूप से मैसूर राज्य में टीपू सुल्तान के लिए 1795 के आसपास बना था। टीपू सुल्तान ने पूर्ण तरीके से बाघ को अपने राज्य-प्रतीक के रूप में प्रयोग किया था, अपने ध्वज पर, अपने सैनिकों की वर्दी पर, बाघ रूपांकनों को अपने हथियारों पर और अपने महलों की सजावट पर।[२]एक हत्थे को ऊपर-नीचे करने पर शेर में विभिन्न यंत्र काम करने लगते हैं। एक धौंकनी सैनिक के गले में लगी एक नली से हवा फेंकती है, जिससे एक रोने जैसी आवाज़ आती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है के सिपाही दर्द से करहा रहा हो। हत्थे से धौंकनी से होते हुए एक यांत्रिक कड़ी द्वारा ‍‌‍‌जुडी हुई सैनिक कि बाईं बाह उठती और गिरती है। इससे उस नली का स्वरमान बदलता है। बाघ़ के सिर में लगा एक और यंत्र दो नालियों में हवा फेंकता है जिससे बाघ़ की दाहाड़ जैसी आवाज़ निकलती है। बाघ़ के पेट में हाथीदांत का बना एक छोटा कुंजीपटल छुपा है।

इसकी कुंजिओं को दबाने पर हवा ऑर्गन पईप्स की एक श्रृंखला से बाहर निकलती है। ऑर्गन की पीतल की बनी कुंजियों के विश्लेषण से यह पता चला है के वे स्थानीय निर्माण की थीं। टीपू सुलतान की राजसभा में फ़्रांसिसी शिल्पियों एवं अभ्यंताओं की मौजूदगी के कारण कई इतिहासकारों ने ये प्रस्तावित किया है के इस मशीन के बनने में फ़्रांसिसी योगदान भी था।

यह हो सकता है कि इसकी बनावट की प्रेरणा सर हेक्टर मनरो के बेटे ह्यू मनरो की मौत से मिली हो, जिन्होंने टीपू सुल्तान को एंग्लो-मैसूर जंग में हराया था और जो २२ दिसम्बर १७९२ को सौगोर द्वीप पर एक बाघ़ के हाथों मारे गए थे।

इस मशीन पर अंग्रेजों का कब्ज़ा तब हुआ जब उन्होंने चौथी एंग्लो-मैसूर जंग में टीपू सुल्तान की राजधानी स्रीरंगपटनम पर कब्ज़ा कर उन्हें ४ मई १७९९ को मौत के घाट उतारा।

सन्दर्भ

साँचा:reflist

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:sister

  1. साँचा:cite web
  2. Brittlebank, K. (1995). "Sakti and Barakat: The Power of Tipu's Tiger. An Examination of the Tiger Emblem of Tipu Sultan of Mysore". Modern Asian Studies. 29 (2): 257–269.