आयो (उपग्रह)

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आयो
True-color image taken by the Galileo probe.
गैलिलीयो यान द्वारा ली गयी आयो की तस्वीर - केन्द्रीय बिंदु से बाएं ओर का काला बिंदु प्रोमीथियस नामक विष्फोटित ज्वालामुखी है।
खोज
खोज कर्ता गैलीलियो गैलिली
खोज की तिथि January 8, 1610[१]
उपनाम
प्रावधानिक नामJupiter I
विशेषण Ionian
पेरिएप्सिस 420,000 km (0.002 807 AU)
एपोऐप्सिस423,400 km (0.002 830 AU)
माध्य कक्षीय त्रिज्या 421,700 km (0.002 819 AU)
विकेन्द्रता 0.0041
परिक्रमण काल 1.769 137 786 d (152 853.504 7 s, 42.459 306 86 h)
औसत परिक्रमण गति 17.334 km/s
झुकाव 2.21° (to the ecliptic)
0.05° (to Jupiter's equator)
स्वामी ग्रह Jupiter
भौतिक विशेषताएँ
परिमाण 3,660.0 × 3,637.4 × 3,630.6 km[२]
माध्य त्रिज्या 1,821.3 km (0.286 Earths)[२]
तल-क्षेत्रफल 41,910,000 km2 (0.082 Earths)
आयतन 2.53साँचा:e km3 (0.023 Earths)
द्रव्यमान 8.9319साँचा:e kg (0.015 Earths)
माध्य घनत्व 3.528 g/cm3
विषुवतीय सतह गुरुत्वाकर्षण1.796 m/s2 (0.183 g)
पलायन वेग2.558 km/s
घूर्णन synchronous
विषुवतीय घूर्णन वेग 271 km/h
अल्बेडो0.63 ± 0.02[३]
सतह का तापमान
साँचा:spacesSurface
न्यूनमाध्यअधि
90 K110 K130 K[५]
सापेक्ष कांतिमान 5.02 (opposition)[४]
वायु-मंडल
सतह पर दाब trace
संघटन 90% sulfur dioxide

आयो (Io), हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का चौथा सब से बड़ा चन्द्रमा है। आयो का व्यास (डायामीटर) 3,642 किमी है। बृहस्पति के चार प्रमुख उपग्रहों (गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा) में यह बृहस्पति की सब से क़रीबी कक्षा में परिक्रमा करने वाला चन्द्रमा है। बृहस्पति के इतना समीप होने की वजह से उस ग्रह के भयंकर गुरुत्वाकर्षण से पैदा होने वाला ज्वारभाटा बल आयो को गूंथता रहता है जिस से इस उपग्रह पर बहुत से ज्वालामुखी हैं। सन् 2010 तक आयो पर 400 से भी अधिक सक्रीय ज्वालामुखी गिने जा चुके थे। पूरे सौर मंडल में और कोई वस्तु नहीं जहाँ आयो से ज़्यादा भौगोलिक उथल-पुथल हो रही हो।[६][७] सौर मंडल के बाहरी चंद्रमाओं की बनावट में ज़्यादातर बर्फ़ की बहुतायत होती है लेकिन आयो पर ऐसा नहीं है। आयो अधिकतर पत्थरीले पदार्थों का बना हुआ है।

अन्य भाषाओं में

आयो को अंग्रेज़ी में "Io" लिखा जाता है। आयो प्राचीन यूनानी धार्मिक कथाओं में ज़्यूस की प्रेमिका थी। ज़्यूस का यूनानी धर्म में वही स्थान है जो भारत में बृहस्पति का है। "ज्यूपिटर" ज़्यूस का रोमन नाम है।

अकार और ढाँचा

घूमते हुए आयो का चलचित्र - जो बड़ा लाल छल्ला नज़र आ रहा है वह "पेले" नामक ज्वालामुखी के इर्द-गिर्द घिरे गंधक के योगिकों से बना मलबा है

आयो पृथ्वी के चन्द्रमा से थोड़ा बड़ा है - उसका व्यास (डायमीटर) चन्द्रमा के व्यास से लगभग 5% अधिक है। आयो का ढाँचा पृथ्वी, शुक्र और मंगल जैसे पत्थरीले ग्रहों से मिलता-जुलता है। इसके बहरी भाग में सिलिकेट और भीतरी भाग में लोहा या लोहे और गंधक (सलफ़र) का मिश्रण है। यह अंदरूनी धातु का केन्द्रीय भाग आयो के द्रव्यमान का 20% है। गैलिलेओ यान से मिली जानकारी के अनुसार सतह के नीचे एक पिघले पत्थर (मैग्मा) की 50 किमी मोटी तह होने की सम्भावना है जिसका तापमान 1,200 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास है।

जब वैज्ञानिकों ने सबसे पहली बार आयो की सतह की तस्वीरें देखी उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ के उसपर उल्कापिंडों के गिरने से बने प्रहार क्रेटर नहीं थे जबकि चन्द्रमा, मंगल, बुध और बृहस्पति के उपग्रहों पर ऐसे बहुत से क्रेटर हैं। उसके बजाए उन्हें एक लाल, पीली, हरी रंग-बिरंगी सतह दिखी। इसकी वजह यह थी के बृहस्पति, गैनिमीड, कलिस्टो और यूरोपा के ज्वारभाटा बल से आयो बुरी तरह गूंथा जाता है और उसपर कई ज्वालामुखियों से लावा उगलता रहता है। यह लावा क्रेटर भर देता है और पूरी ज़मीन पर गंधक (सलफ़र) के रंग-बिरंगे रासायनिक यौगिक फैला देता है।

इन्हें भी देखें

बहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

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