जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>Hemant Shesh द्वारा परिवर्तित ०३:३०, ६ फ़रवरी २०२२ का अवतरण
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
चित्र:राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय प्रवेश द्वार.jpg
राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय प्रवेश द्वार : छाया : हे. शे.
जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय
चित्र:Jagadguru Ramanandacharya Rajasthan Sanskrit University Logo.jpg

आदर्श वाक्य:ऋतंच स्वाध्याय प्रवचने च
स्थापित2001
प्रकार:Public
कार्यबद्ध अधिकारी:सीमा सिंह (रजिस्ट्रार)
कुलाधिपति:कलराज मिश्र (राजस्थान के राज्यपाल)
कुलपति:हनुमान सिंह भाटी (कार्यवाहक)
अवस्थिति:जयपुर, राजस्थान, भारत
परिसर:Urban
सम्बन्धन:UGC
जालपृष्ठ:साँचा:url


जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय राजस्थान के जयपुर में स्थित एक सार्वजनिक विश्वविद्यालय है। पहले इसका नाम' राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय' था।

सम्पूर्ण संस्कृत वाङ्मय के सांगोपांग अध्ययन और अध्यापन का संचालन करने, सतत विशेषज्ञीय अनुसंधान और उससे आनुषंगिक अन्य विषयों की व्यवस्था करने तथा संस्कृत वाङ्मय में निहित ज्ञान-विज्ञान की अनुसंधान पर आधारित सरल वैज्ञानिक पद्धति से व्यावहारिक व्याख्या प्रस्तुत करने के साथ ही अन्य महत्त्वपूर्ण अनुसंधानों के परिणामों और उपलब्धियों को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से राजस्थान राज्य में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय अधिनियम 1998 (1998 का अधिनियम 10) की अनुमति महामहिम राज्यपाल महोदय द्वारा दिनांक 2-9-1998 को दीगई। दिनांक 6 फ़रवरी 2001 को राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय ने मूर्त्त रूप लिया जिसके प्रथम कुलपति पद्मश्री डॉ॰मण्डन मिश्र नियुक्त किये गये। उपशासन सचिव, शिक्षा (ग्रुप - 6) द्वारा जारी आदेश क्र.प.(1) शिक्षा - 6/2000 दिनांक 27-06-2005 के अनुसार दिनांक 27-06-2005 से विश्वविद्यालय का नाम जगद्गुरू रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर कर दिया गया है।

प्रमुख उद्देश्य

यह था कि चूंकि अनादिकाल से भारत देश ज्ञानोपासना का केन्द्र रहा है और यह शाब्दी साधना ऋषियों के अनहद में मुखरित होती हुई साक्षात् श्रुति-स्वरूप में इस धरा पर अवतीर्ण हुई। संस्कृत के इस विशाल वाङ्मय की कालजयिता का यही रहस्य है कि सहस्त्राब्दियों से गुरुकुलों और ऋषिकुलों आदि में इसका अध्यापन होता रहा। इस गुरुशिष्य-परम्परा को सुनियोजित रूप देते हुए संस्कृत के अनेक अध्ययन केन्द्र देश भर में चलते रहे उसी परम्परा में ही 20 वीं सदी में अनेक संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित हुए। उत्तरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा, केरल, आंध्रप्रदेश आदि में संस्कृत विश्वविद्यालय विगत कई वर्षों से चल रहे थे। इसी क्रम में राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु वर्षों से चल रहा प्रयास वर्ष 2001 में तत्कालीन संस्कृत शिक्षा मंत्री कमला बेनीवाल और बिना सरकारी सहायता लिए निजी स्रोतों से विश्वविद्यालय का नया भवन बनवाने के लिए शाहपुरा स्थित त्रिवेणी-धाम के महान संत खोजी-द्वाराचार्य संत नारायण दास जी द्वारा सफल हुआ।

मुख्य लक्ष्य

  • विभिन्न पाठ्यक्रमों के माध्यम से संस्कृत वाङ्मय के ज्ञान की शिक्षा देना।
  • संस्कृत वाङ्मय और उसकी विभिन्न शाखाओं में अनुसंधान कार्य आरम्भ करना और उसका अभिवर्धन करना।
  • संस्कृत वाङ्मय में विस्तारी शिक्षा - कार्यक्रम हाथ में लेना।
  • संस्कृत महाविद्यालय के अध्यापकों को, उनके ज्ञान को अद्यतन करने के लिए प्रशिक्षण देना।
  • शिक्षण - रीति - विज्ञान और शिक्षण-शास्त्र के अध्यापन में विशेषतः परिकल्पित अभिसंस्करण कार्यक्रम आयोजित करना।
  • पाठ्यक्रमों का आधुनिकीकरण करना और परीक्षा सुधार से सम्बन्धित कार्य हाथ में लेना और ऐसे अन्य कार्यों, क्रियाकलापों या परियोजनाओं को। जो विश्वविद्यालय के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दृष्टि से उचित हैं जिनके लिए विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है, का सम्‍यक् संचालन करना।

बाहरी कड़ियाँ