ठाकुर गदाधर सिंह

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>SM7Bot द्वारा परिवर्तित ०३:३९, १८ नवम्बर २०२१ का अवतरण (→‎सन्दर्भ: clean up)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

ठाकुर गदाधर सिंह (1869 -- 1918) एक सैनिक एवं हिन्दी साहित्यकार थे। बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशक में ठाकुर गदाधर सिंह हिंदी गद्य के विशिष्ट लेखकों में माने जाते हैं। यह द्रष्टव्य है कि उस समय तक हिंदी गद्य का कोई स्वरूप निश्चित नहीं हो पाया था। भाषा के परिष्कार और उसकी व्यंजनाशक्ति को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा था। गदाधर सिंह की कृतियों ने हिंदी गद्य के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनकी भाषा का स्वरूप सरल, सहज, स्वाभाविक था। इनकी हास्य व्यंग्यपूर्ण शैली पाठकों के मन को मोह लेती थी। यही कारण है कि गदाधर सिंह उस समय में यात्रा संस्मरण लिखकर ही प्रसिद्ध हो गए।

ठाकुर गदाधर सिंह का जन्म एक मध्यमवर्गीय क्षत्रिय परिवार में हुआ था। आरम्भ में इन्होंने एक सफल सैनिक का जीवन व्यतीत किया। बाद में यात्रावृत्तांतलेखन की ओर प्रवृत्त हुए। 1900 में इन्होंने एक सैनिक अधिकारी के रूप में चीन की यात्रा की। उसी समय चीन में 'बाक्सर विद्रोह' हुआ था। ब्रिटिश सरकार ने 'बाक्सर विद्रोह' का दमन करने के लिए राजपूत सेना की एक टुकड़ी चीन भेजी थी, ठाकुर साहब उसके एक विशिष्ट सदस्य थे। सम्राट् एडवर्ड के तिलकोत्सव के समारोह में आपको इंग्लैंड जाने का अवसर प्राप्त हुआ। वहाँ जाकर ठाकुर साहब ने जो कुछ देखा, उसे अपनी लेखनी द्वारा व्यक्त किया। ठाकुर साहब से पहले शायद ही किसी ने यात्रा संस्मरण लिखे हों। सन्‌ 1918 ई. में उनचास वर्ष की अल्पायु में इनका स्वर्गवास हो गया।

कृतियाँ

ठाकुर गदाधर सिंह की यात्रासंस्मरण की दो कृतियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं,

  • 1. चीन में तेरह मास, और
  • 2. हमारी एडवर्डतिलक-यात्रा

'चीन में तेरह मास' नामक ग्रंथ 319 पृष्ठों में है और काशीनागरीप्रचारिणी सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय में इसकी एक प्रति सुरक्षित है। लेखक ने इस पुस्तक में अपनी चीनयात्रा का मनोहर वृत्तांत एवं अपने सैनिक जीवन की साहसपूर्ण कहानी जिस रोचक ढंग से लिखी है वह अत्यंत मनमोहक तथा सुरुचिपूर्ण सामग्री कही जा सकती है। पुस्तक में जहाँ चीन के साधारण जीवन की कहानी है वहाँ उनके सैनिक जीवन का साहसपूर्ण ब्यौरा भी है। उससे उस समय की चीनी जनता की मनोदशा, रहन-सहन और आचार-व्यवहार पर पूरा प्रकाश पड़ता है। सरस्वती (पत्रिका) ने उनकी 'चीन में तेरह मास' पर लिख अथा, " हिन्दी में अभी तक हमने ऐसी पुस्तक न देखी है और न छपी है।"[१]

'एडवर्ड-तिलक-यात्रा' नामक कृति में लेखक ने इंग्लैंडयात्रा का रोचक वर्णन किया है। इन पुस्तक में यात्राविवरण के साथ साथ उनके संस्मरण भी हैं।

सन्दर्भ

  1. हिन्दी का यात्रा साहित्य (पृष्ठ ४८) (गूगल पुस्तक ; विश्वमोहन तिवारी)