बलोच

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साँचा:disambiguationबलोच भारत हिम्मत बंदा मदद खुदा घोड़े जी पुठ तलवार जी मुठ.हिम्मत रखेंगे मदद खुदा करेगा।हमारा तो काम है घोड़े की सवारी और तलवार हाथ में।इतिहास में राजस्थान के बलोचों का स्थान सदैव गौरवशाली रहा हैं।यहां के बलोचों को कहा जाता है कि वीरता सदैव बलोचों की चेरी बनकर रहीं हैं इतने वीर सपूत होने पर भी यहां के कुछ रण रसियों ने बिना लड़े अंग्रेजो की अधिनता स्वीकार कर ली थी।लेकिन बाड़मेर जिले के चौहटन के बलोचों ने अंग्रेजों को बलोची तलवारों का चिरस्मरणीय जौर दिखाया था।किंतु दुर्भाग्य से उनके इस रण कौशल के इतिहास के स्वर्गिय पन्ने अपने में नहीं समेट सके।बात उस समय की है जब जोधपुर रियासत का मालाणी क्षेत्र स्वयं भू भाग था।जोधपुर नरेश ने बलोचों को अपने-अपने क्षेत्र की सत्ता का अधिकार सौंप रखा था।जागीदार ही अपने-अपने क्षेत्र में हासल(कर)इकठ्ठी करके उनमें से थोड़ा सा हिस्सा जोधपुर का नजराना के रूप में पेश कर देते थे।

बलोचों पर अंग्रेज़ सरकार का नाम मात्र का अंकुश रहता था। सिंध के क्षेत्र एंव जैसलमेर के कुच्छ हिस्सों में लूटपाट करना इसमें विशेष कर उन लोगों को जो सक्षम और अपनी दादागिरी के लिए मशहूर हुआ करते थे।अपने आज के चलन के हिसाब से आप उसे सुपारी देना भी समझ सकते हैं।तब कुछ राजा महाराजा अपने क्षेत्र में किसी को निकालना या उनसे युद्ध के लिए इनको भेजना हमेशा से काम में लेते थे।अंग्रेज हुकूमत और कुछ राजा महाराजा ऐसे भी हुआ करते थे उनमें खौफ और दहसत का एक माहौल इस कदर भी था कि उनके नाम से खौफ खाया करते थे।लोग आज भी किसी को उलाहने के रूप में यहां तक कह देते हैं कि आपको सरआई ले जाए।

विक्रमी संवत 1890 एक घटना के अनुसार जैसलमेर के नरेश ने जोधपुर के नरेश के पास मालाणी के बलोचों की शिकायत की थी।उसमें भी बाड़मेर एंव चौहटन के जागीरदारों की शिकायत लिखित में भेजी गई थी।लिखा रईस उनके राज्य में लूटपाट करके प्रजा को तंग करते हैं।स्वजातिय स्वगोगीय भाई होने के कारण जोधपुर महाराजा ने शिकायत की कोई प्रवाह नहीं की कुछ दिनों तक शिकायत को देखने के बाद उन्होंने अंग्रेजों के राजनीतिक एजेंट के पास माउंट आबु शिकायत भेजी।अंग्रेजों के राजनीतिक एजेंट ने मालाणी के बलोच खोसो को दबाने के लिए एरनपुरा छावनी से 10 कंपनियां भेजी।जिसमें 5 कंपनियों ने बाड़मेर को घेरा एंव 5 कंपनियों ने चौहटन को चारों दिशाओं से घेर लिया पहाड़ों के चारों ओर से इस कदर छावनी या हो गई कि मानो चौहटन के पहाड़ भी थर थर कांपने लग गए।बाड़मेर के राजपूतों ने अंग्रेजों से समझौता कर लिया था।

मध्य दिन की घटना थी चौहटन के अधिक बलोच अपने नित्य कार्य लूटपाट व वसूली पर गये हुए थे"जैसे ही वह वापस अपने कबीलों में आए तो गांव में रईस शादीखान खोसो जिनको अंग्रेजों की फौज के कर्नल ने बातचीत के लिए प्रातःकाल अति शीघ्र बुलाया।शादीखान के मन में अंग्रेजों की लूट खसोट जबर्दस्ती हिंदुस्तान पर आधिपत्य जमाने के कारण तीव्र क्षोभ और रोष हमेशा से सुनाई देता था इसलिए क्रोध से वह इस कदर उनके नाम पे ज्वालामुखी की तरह लाल पीला हो गया।

वैसे साधीखान अपने समय और ज़बान का पाबंद हुआ करता था लेकिन उस दिन प्रातः जानबूज कर कैंप तक जानें में कुछ ढीलाई लेटलतीफी और लचीलापन दिखाया।जिससे अंग्रेज हुकूमत को कुछ एहसास हो।राजपूत राजा महाराजाओं के साथ रहने से उनका रहन-सहन और मान मनवार भी उन्हीं की तरह हुआ करते थे।सादीखान ने सुबह-सुबह ही गांव के रिवाज अनुसार रिहान की अफीम लिया और दिया।उसके बाद अपने 32 विश्वास पात्र लड़ाकू व्यक्तियों के साथ पुरी तैयारी करके अंग्रेज कर्नल से मिलने के लिए उनके कैंप की ओर रवाना हुए।32 विश्वास पात्र बहादुरों में वसाया खान,अहमद बलोच,बलोच फेरुखान,बलोच छोटू खान,बलोच मोहमद हमद,बलोच फतेहमोहमद,बाधा भील, लउआ भील,चांदिया कामदार शेरसिंह बीखर राजाखान, गंगाराम सेठिया सब एक जगह हुए तब शादीखान ने क्रोध में इस तरह व्याकुल और ललाट पर गमन ना होते हुए शेर की तरह दहाड़ ते हुए सबके सामने कहा की हम किसी के सामने मस्तिष्क नहीं झुकाएगें..यदि हमने गोरों(अंग्रेजों) के आगे मस्तक झुकाया तो चौहटन के ऊंचे ऊंचे पहाड़ लज्जित हो जाएंगे।

दूसरे पन्ने की दास्तान। जब 32 वीरों ने 500 फिरगियों को धूल चटा दी। सादीखान ने राजा खान बलोच को खत लिख कर भेजा कि आप उनकी कैंप जाएं और अंग्रेजों को कहें कि आप हमेशा की तरह वापस लौट जाएं।राजा खान खत लेकर वहां से अंग्रेज कैंप की ओर रवाना हुए।राजा खान ने वहां जाते ही कैंप के बाहर खड़े संत्री से पूछा साहब कहां हैं ? संत्री ने धीमी आवाज में कहा साहब अंदर है....राजा खान ने अपने पांव आगे लिए जैसे ही कैंप के अंदर पांव रखा संतरी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि किसके हुकुम से और क्या व्यवहार से आप अंदर जा रहे हैं ? राजा खान ने सिंधी भाषा में कहा कि हुकुम अल्लाह जो अहे व्यवहार त असां वट लठ जो अहे(राजा खान ने कहा की हुकुम तो हम अल्लाह का मानते हैं और व्यवहार हमारे पास लाठी का है।

जैसे ही संतरी ने राजा खान को रोका तो राजा खान ने कहा कि मुझे शिवाय सादीखान के बाकी कोई हुकुम देने वाला होता कौन है ?राजा खान ने अपने बल का प्रयोग करते हुए अंग्रेज सिपाही को धक्का दिया जो जमीन से 20 फुट दूरी पर जाकर गिरा और अपनी म्यान से तलवार निकालते हुए अंदर कैंप में कर्नल को संदेश देने के लिए रवाना हो गया। अंग्रेज कर्नल ने जब राजा खान को नंगी तलवार हाथ में लहराते हुए आते देखा तो अपनी पिस्टल राजा पर दाग दी।लेकिन राजा गोली खाकर गिरा नहीं बल्कि तलवार लेकर कर्नल पर झपटा और उसका काम तमाम कर दिया।
रईस सादीखान तक अंग्रेज कंपनी की यह कायराना हरकत और घटना की खबर पहुंच गई।रईस ने अपने सभी वीर साथियों को ललकारा और उन्हें युद्ध के लिए तैयार होने के लिए हुंकार भरी।देखते ही देखते 32 बहादुर पांच सौ फिरंगियों पर इस कदर टूट पड़े की फिरंगिओं के छक्के छुड़ा दिए।घमासान लड़ाई इस कदर हुई कि बलोचों की तलवारों से टोपी वालों की लाशें कट कट कर जमीन पर धराशाई होते देखे जा रहे थे।एक तरफ बाधा और लहुआ भी अपने प्राण हथेली पर लेकर लड़ रहे थे अचानक....बंदूक की गोली बसाया खान की टांग में घुस गई! उधर से सादीखान ने बसाया खान को लंगड़ाते हुए देख लिया। और हौसला अफजाई करते हुए कहा तूं पड़े जद धरा लाजे तूं लंगड़ी टांग लड़...(तुम गिरोगे तो यह धरती लज्जित हो जाएगी इसलिए लंगड़ी टांग पे भी लड़ यह महसूस ना होने दे कि तू लंगड़ा है।

वसाया खान वीर था उसको इस बात ने अंदर से इतना उफान और इस कदरजोश भरा कि मानो अब तो लाशों के यहां अंबार लगा ही दम लेगा।यह सुनकर खून में उबाल इस कदर आया की तलवार चमकने लगी एक ही टांग पर लड़कर कई अंग्रेज सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया।यह सब मंजर देखकर अंग्रेज सैनिकों के पांव उखड़ गए।और उनके घोड़े भाग खड़े हुए और सैनिक सब वहां से अधमरी हालात में अपने अपने घोड़ों से भाग निकले। इस कदर अंग्रेजी हुकूमत से और उनके सैनिकों को मार गिरा कर चौहटन के बलोचों ने जो यस कमाया और आज बी चौहटन का पर्वत गौरव से ऊंची भुजाओं से रहीस शादी खान का अभिनंदन करता है।



चौहटन के मुट्ठी भर बलोच ने अंग्रेज सेना के 500 बंदूकधारियों को लोहे के चने चबाने को मजबूत कर दिया था। तब अंग्रेज सरकार के एक अफसर ने साधीखान सन ऑफ इज्जत अली खान खोसो गांव चौहटन को एक प्रमाण पत्र दिया था कि जितनी तक इनकी औलाद और वंश रहेगा उतनी तक बिना लाइसेंस का हथियार लेकर यह घुमा करेगा।चौहटन के पर्वत के नीचे आज भी साधीखान खोसे की कब्र मौजूद हैं।जिसके अंदर हर सोमवार हिंदू-मुस्लिम जाया करते हैं।महान क्रांतिकारी शादीखान खोसे के लिए दिल से खीराज़ ए अकीदत पेश करते हैं ऐसे महान सपूत देश के लिए जिए मरे उनको आज भी दुनिया याद कर सलाम करती है।

शादीखान खोसो की कब्र आज भी चौहटन के अंदर है वहां हर सोमवार हिंदू मुस्लिम जाते है और दिल से वीर शहीद को याद करते हैं।चौहटन वकील श्री रूप सिंह जी के पास यह किताब आज भी सुरक्षित और महफूज़ है।मुझे केवल दो पन्ने मिले थे जो आप सभी के लिए शेयर कर रहा हूं।इसके आगे सादीखान के वंशज का वर्णन मैंने अपने मेरा गांव मेरा गौरव के आलेख में उल्लेख किया है।