सुर्र
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सुर्र उत्तर भारत के अयोध्या से सटे इलाकों में खेले जाने वाला खेल है। इसको समान्यता पुरुष वर्ग के लोग खेलते है, जिसमें न्यूनतम ४ लोग प्रत्येक संगठन में होने चाहिये। इस खेल में २ संगठन होते हैं खेल के मैदान का आकार आयाताकार अथवा वर्गाकार रखा जाता है, यह मैदान चार बराबर भागों में विभाजित होता है। एक संगठन जो कि बराबर बाँटे गये एक हिस्से में एकत्रित होता है एवं दूसरा संगठन चौराहें के आकार की लाईनों पर खड़ा होकर रक्षा पंक्ति का काम करता है।[१]
खेल का संचालन एवं नियम
- इस खेल में २ टीमें (समूह) भाग लेते है प्रत्येक समूह में न्यूनतम सदस्यों की संख्या चार होती है एवं चार से अधिक सदस्य भी भाग ले सकते है परन्तु खिलाड़ियों की संख्या दोनों पक्षों में बराबर एवं सम संख्या में होनी चाहिये।
- इस खेल में चित्रानुसार चोक की सहायता से एक क्षेत्र बनाया जाता है जिसमें चार बाक्स I, II, III, IV होते है इन बक्सों के मध्य दो रक्षा पंक्तियाँ होती है जिन्हें चित्र में दर्शाया गया है।
- खेल की शुरुवात में समूह A के खिलाड़ी किसी भी एक बक्से में एकत्रित हो जाते है तथा समूह B के खिलाडी़ २ रक्षा पंक्तियों में कहीं भी खड़े हो सकते है।
- समूह A के खिलाड़ियों का उद्देश्य शेष तीन बक्सों में जाना होता है समूह B के खिलाड़ी इन्हें रोकने की कोशिश करते है जिसमें की अगर एक बक्से से दूसरे बक्से में जाते समय यदि समूह A के किसी भी खिलाड़ी को अगर समूह B के किसी खिलाड़ी ने छू दिया तो वह खिलाड़ी खेल से बाहर हो जाता है। इस प्रकार समूह A के सदस्यों को एक एक करके सभी बक्सों में एक साथ पहूँचना होता है।
- इस प्रकार एक भाग में एकत्रित संगठन का उद्देश्य समूह में या अलग अलग बचे तीन भागों में बारी बारी एकत्र होना होता है
- वहीं दूसरी तरफ रक्षा पंक्ति पर खड़े संगठन का काम अन्दर के लोगों को बाहर न जाने देना है उसके लिये वो लोगों को छुते है जो कि दूसरे भाग में जाने की चेष्टा करते है।
- अगर पंक्ति लाँघते हुए रक्षा पंक्ति ने संगठन के किसी सदस्य को छु दिया तो वह खेल से बाहर हो जाता है
- जब सभी खिलाड़ी एक भाग (बक्से) में पुन: एकत्र हो जाते है तो वो एक साथ बोलते है "बोल दें गोइवाँ सुर्र"
- इस प्रकार यदि वो सभी बक्सों में अपनी एक साथ या बचे लॉग् उपस्थिति दर्ज् करवाँ देते है तो वे जीत जाते है।[२]