"फिनोल" के अवतरणों में अंतर
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| Section8 = {{Chembox Related | |||
| OtherCompounds = [[Thiophenol]]<br>[[Sodium phenoxide]] | |||
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'''फ़िनोल''' (IUPAC: ''Benzenol'') एक एरोमैटिक कार्बनिक यौगिक है जिसका [[रासायनिक सूत्र|अणुसूत्र]] C<sub>6</sub>H<sub>5</sub>OH है। यह सफेद रंग का क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है। इसका अणु [[फिनाइल समूह]] (−C<sub>6</sub>H<sub>5</sub>) और [[हाइड्रॉक्सिल समूह]] (−OH) के [[रासायनिक आबंध|आबन्धन]] से बना होता है। यह अल्प मात्रा में [[अम्ल|अम्लीय]] होता है तथा इसे सावधानीपूर्वक काम में लेना पड़ता है क्योंकि इससे रासायनिक जलन पैदा हो सकती है। फिनॉल एक महत्वपूर्न रासायनिक यौगिक है जिसके द्वारा अन्य अनेकों पदार्थ या यौगिक बनाए जाते हैं। यह प्रधानतः प्लास्टिक एवं उसी से सम्बन्धित पदार्थों के [[संश्लेषण]] में प्रयुक्त होता है। फिनॉल और इससे व्युत्पन्न यौगिक [[पॉलीकार्बोनेट]], [[इपॉक्सी]], [[बैकेलाइट]], [[नायलॉन|नाइलोन]], [[डिटर्जेन्ट]], [[शाकनाशक|शाकनाशी]] और अनेकों औषधियों के उत्पादन के लिए अत्यावश्यक है। | |||
[[बेंजीन]] केंद्रक का एक या एक से अधिक [[हाइड्रोजन]] जब [[हाइड्रॉक्सिल समूह]] से विस्थापित होता है, तब उससे जो उत्पाद प्राप्त होते हैं उसे फिनोल कहते हैं। यदि केंद्रक में एक ही हाइड्रॉक्सिल रहे, तो उसे मोनोहाइ-ड्रिक फिनोल, दो हाइड्रॉक्सिल रहें तो उसे डाइहॉइड्रिक फिनोल और तीन हाइड्रॉक्सिल रहें, तो उसे ट्राइहाइड्रिक फिनोल कहते हैं। | |||
; अन्य नाम | |||
: Hydroxybenzene, Carbolic Acid, Benzenol, Phenylic Acid | |||
: Hydroxybenzene, Phenic acid, Phenyl alcohol | |||
'''फिनॉल अम्लीय क्यों?''' | |||
जब फिनोल H+ आयन प्रदान करता है तो फिनॉक्साइड आयन प्राप्त होता है यह आयन अनुनाद के कारण और अधिक स्थाई हो जाता है जिससे फिनॉक्साइड आयन तथा H+ के बीच पूर्ण मिलन नहीं होता है परिणाम स्वरुप फिनॉल अम्लीय गुण दर्शाता है | |||
== निर्माण == | |||
मोनोहाइड्रिक फिनोल कोयले और काठ के शुष्क आसवन से बनते हैं। इसी विधि से व्यापार का कार्बोलिक अम्ल प्राप्त होता है। कार्बोलक अम्ल का आविष्कार पहले-पहले रूंगे (Runge) द्वारा 1834 ई. में हुआ था। 1840 ई. में लॉरें (Laurent) को अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता लगा। इसका फिनोल नाम ज़ेरार (Gerhardt) द्वारा 1843 ई. में दिया गया था। 1867 ई. में वुर्टस (Wurts) और केक्यूले (Kekule) द्वारा फिनोल [[बेंजीन]] से पहले पहल तैयार हुआ था। | |||
फिनोल तैयार करने की अनेक विधियाँ मालूम हैं, पर आज फिनोल का व्यापारिक निर्माण अलकतरे या बेंजीन से होता है। अलकतरे के प्रभाजी आसवन से जो अंश 170 डिग्री सें 230 डिग्री सें. पर आसुत होता है उसे मध्य तेल या कार्बोलिक तेल कहते हैं। सामान्य फिनोल इसी में नैपथलीन के साथ मिला हुआ रहता है। दाहक क्षार के तनु विलयन से उपचारित करने से फिनोल विलयन में घुलकर निकल जाता है और [[नैफ़्थलीन]] अवलेय रह जाता है। विलयन के [[गन्धकाम्ल]] या [[कार्बन डाईऑक्साइड]] द्वारा विघटित करने से फिनोल [[अवक्षेपण|अवक्षिप्त]] होकर जल से पृथक् हो जाता है। | |||
== गुण == | |||
शुद्ध कार्बोलिक अम्ल सफेद, क्रिस्टलीय, सूच्याकार, ठोस होता है, पर, यह वायु में रखे रहने से पानी का अवशोषण कर द्रव बन जाता है, जिसका रंग पहले गुलाबी पीछे प्राय: काला हो जाता है। इसके क्रिस्टल 430 डिग्री सें. पर पिघलते हैं। यह जल में कुछ विलेय होता है। इसका जलीय विलयन [[निस्संक्रामक]] होता है और घावों तथा सर्जरी के उपकरणों आदि के धोने में प्रयुक्त होता है। फिनोल की गंध विशिष्ट होती है। यह विषैला होता है। अम्लों के साथ यह [[एस्टर]] बनाता है। इसके वाष्प को तप्त (390 डिग्री से 450 डिग्री सें.) [[थोरियम]] पर ले जाने से फिनोल ईथर बनता है। फिनोल के ईथर सरल या मिश्रित दोनों प्रकार के हो सकते हैं। फॉस्फोरस पेन्टाक्लोराइड के उपचार से यह [[क्लोरो बेंजीन]] बनता है। [[ब्रोमीन]] की क्रिया से यह ट्राइब्रोमो फिनोल बनता है। यह क्रिया मात्रात्मक होती है और फिनोल को अन्य पदार्थों से पृथक करने या फिनोल की मात्रा निर्धारित करने में प्रयुक्त होती है। फिनोल सक्रिय यौगिक है। अनेक अभिकर्मकों के साथ वह यौगिक बनता है। अनेक पदार्थों के संपर्क में आने से वह विशिष्ट रंग देता है, जिससे यह पहचाना जाता है। | |||
== उपयोग == | |||
फिनोल से [[सैलिसिलिक अम्ल]] और उसके एस्टर सैलोल आदि बड़े महत्व के व्यापारिक पदार्थ बनते हैं। इससे [[पिक्रिक अम्ल]] भी बनता है, जो एक समय बड़े महत्व का [[विस्फोटक]] और [[रंजक]] था। कृत्रिक रंजकों के निर्माण में भी कार्बोनिक अम्ल प्रयुक्त होता है। यह बड़े महत्व का [[निस्संक्रामक]] है। इससे अनेक [[जीवाणुनाशक]], [[कवकनाशी|कवकनाशक]], [[घासपात नाशक]] तथा अन्य बहुमूल्य ओषधियाँ आज तैयार होती हैं। | |||
==सन्दर्भ== | ==सन्दर्भ== | ||
{{टिप्पणीसूची}} | |||
==इन्हें भी देखें== | |||
*[[फिनाइल समूह]] | |||
[[ | |||
== बाहरी कड़ियाँ == | |||
* [https://web.archive.org/web/20091209125005/http://www.ilo.org/public/english/protection/safework/cis/products/icsc/dtasht/_icsc00/icsc0070.htm International Chemical Safety Card 0070] | |||
* [https://web.archive.org/web/20090106033531/http://www.jtbaker.com/msds/englishhtml/p1949.htm Phenol Material Safety Data Sheet] | |||
* [https://web.archive.org/web/20090124124224/http://npi.gov.au/database/substance-info/profiles/70.html National Pollutant Inventory: Phenol Fact Sheet] | |||
* [https://web.archive.org/web/20100311024901/http://www.cdc.gov/niosh/npg/npgd0493.html NIOSH Pocket Guide to Chemical Hazards] | |||
* [https://web.archive.org/web/20051012222001/http://www-cie.iarc.fr/htdocs/monographs/vol71/027-phenol.html IARC Monograph: "Phenol"] | |||
* [https://web.archive.org/web/20110727034819/http://tenwatts.blogspot.com/2007/08/phenol-edison-bayer-and-records.html Arcane Radio Trivia outlines competing uses for Phenol circa 1915] | |||
[[श्रेणी:फिनोल| ]] |
०७:०२, १ सितंबर २०२० के समय का अवतरण
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फ़िनोल (IUPAC: Benzenol) एक एरोमैटिक कार्बनिक यौगिक है जिसका अणुसूत्र C6H5OH है। यह सफेद रंग का क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है। इसका अणु फिनाइल समूह (−C6H5) और हाइड्रॉक्सिल समूह (−OH) के आबन्धन से बना होता है। यह अल्प मात्रा में अम्लीय होता है तथा इसे सावधानीपूर्वक काम में लेना पड़ता है क्योंकि इससे रासायनिक जलन पैदा हो सकती है। फिनॉल एक महत्वपूर्न रासायनिक यौगिक है जिसके द्वारा अन्य अनेकों पदार्थ या यौगिक बनाए जाते हैं। यह प्रधानतः प्लास्टिक एवं उसी से सम्बन्धित पदार्थों के संश्लेषण में प्रयुक्त होता है। फिनॉल और इससे व्युत्पन्न यौगिक पॉलीकार्बोनेट, इपॉक्सी, बैकेलाइट, नाइलोन, डिटर्जेन्ट, शाकनाशी और अनेकों औषधियों के उत्पादन के लिए अत्यावश्यक है।
बेंजीन केंद्रक का एक या एक से अधिक हाइड्रोजन जब हाइड्रॉक्सिल समूह से विस्थापित होता है, तब उससे जो उत्पाद प्राप्त होते हैं उसे फिनोल कहते हैं। यदि केंद्रक में एक ही हाइड्रॉक्सिल रहे, तो उसे मोनोहाइ-ड्रिक फिनोल, दो हाइड्रॉक्सिल रहें तो उसे डाइहॉइड्रिक फिनोल और तीन हाइड्रॉक्सिल रहें, तो उसे ट्राइहाइड्रिक फिनोल कहते हैं।
- अन्य नाम
- Hydroxybenzene, Carbolic Acid, Benzenol, Phenylic Acid
- Hydroxybenzene, Phenic acid, Phenyl alcohol
फिनॉल अम्लीय क्यों?
जब फिनोल H+ आयन प्रदान करता है तो फिनॉक्साइड आयन प्राप्त होता है यह आयन अनुनाद के कारण और अधिक स्थाई हो जाता है जिससे फिनॉक्साइड आयन तथा H+ के बीच पूर्ण मिलन नहीं होता है परिणाम स्वरुप फिनॉल अम्लीय गुण दर्शाता है
निर्माण
मोनोहाइड्रिक फिनोल कोयले और काठ के शुष्क आसवन से बनते हैं। इसी विधि से व्यापार का कार्बोलिक अम्ल प्राप्त होता है। कार्बोलक अम्ल का आविष्कार पहले-पहले रूंगे (Runge) द्वारा 1834 ई. में हुआ था। 1840 ई. में लॉरें (Laurent) को अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता लगा। इसका फिनोल नाम ज़ेरार (Gerhardt) द्वारा 1843 ई. में दिया गया था। 1867 ई. में वुर्टस (Wurts) और केक्यूले (Kekule) द्वारा फिनोल बेंजीन से पहले पहल तैयार हुआ था।
फिनोल तैयार करने की अनेक विधियाँ मालूम हैं, पर आज फिनोल का व्यापारिक निर्माण अलकतरे या बेंजीन से होता है। अलकतरे के प्रभाजी आसवन से जो अंश 170 डिग्री सें 230 डिग्री सें. पर आसुत होता है उसे मध्य तेल या कार्बोलिक तेल कहते हैं। सामान्य फिनोल इसी में नैपथलीन के साथ मिला हुआ रहता है। दाहक क्षार के तनु विलयन से उपचारित करने से फिनोल विलयन में घुलकर निकल जाता है और नैफ़्थलीन अवलेय रह जाता है। विलयन के गन्धकाम्ल या कार्बन डाईऑक्साइड द्वारा विघटित करने से फिनोल अवक्षिप्त होकर जल से पृथक् हो जाता है।
गुण
शुद्ध कार्बोलिक अम्ल सफेद, क्रिस्टलीय, सूच्याकार, ठोस होता है, पर, यह वायु में रखे रहने से पानी का अवशोषण कर द्रव बन जाता है, जिसका रंग पहले गुलाबी पीछे प्राय: काला हो जाता है। इसके क्रिस्टल 430 डिग्री सें. पर पिघलते हैं। यह जल में कुछ विलेय होता है। इसका जलीय विलयन निस्संक्रामक होता है और घावों तथा सर्जरी के उपकरणों आदि के धोने में प्रयुक्त होता है। फिनोल की गंध विशिष्ट होती है। यह विषैला होता है। अम्लों के साथ यह एस्टर बनाता है। इसके वाष्प को तप्त (390 डिग्री से 450 डिग्री सें.) थोरियम पर ले जाने से फिनोल ईथर बनता है। फिनोल के ईथर सरल या मिश्रित दोनों प्रकार के हो सकते हैं। फॉस्फोरस पेन्टाक्लोराइड के उपचार से यह क्लोरो बेंजीन बनता है। ब्रोमीन की क्रिया से यह ट्राइब्रोमो फिनोल बनता है। यह क्रिया मात्रात्मक होती है और फिनोल को अन्य पदार्थों से पृथक करने या फिनोल की मात्रा निर्धारित करने में प्रयुक्त होती है। फिनोल सक्रिय यौगिक है। अनेक अभिकर्मकों के साथ वह यौगिक बनता है। अनेक पदार्थों के संपर्क में आने से वह विशिष्ट रंग देता है, जिससे यह पहचाना जाता है।
उपयोग
फिनोल से सैलिसिलिक अम्ल और उसके एस्टर सैलोल आदि बड़े महत्व के व्यापारिक पदार्थ बनते हैं। इससे पिक्रिक अम्ल भी बनता है, जो एक समय बड़े महत्व का विस्फोटक और रंजक था। कृत्रिक रंजकों के निर्माण में भी कार्बोनिक अम्ल प्रयुक्त होता है। यह बड़े महत्व का निस्संक्रामक है। इससे अनेक जीवाणुनाशक, कवकनाशक, घासपात नाशक तथा अन्य बहुमूल्य ओषधियाँ आज तैयार होती हैं।
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ अ आ इ ई उ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite journal
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ अ आ इ साँचा:Sigma-Aldrich
- ↑ अ आ इ साँचा:IDLH