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==परिचय==
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लहसुन एक बारहमासी फसल है जो मूल रूप से मध्य एशिया से आया है तथा जिसकी खेती अब दुनिया भर में होती है। घरेलू जरूरतों को पूरा करने के अलावा, भारत 17,852 मीट्रिक टन (जिसका मूल्य 3877 लाख रुपये हैं) का निर्यात करता है। पिछले 25 वर्षों में भारत में लहसुन का उत्पादन 2.16 से बढ़कर 8. 34 लाख टन हो गया है।
 
==लहसुन की खेती==
लहसुन एक दक्षिण यूरोप में उगाई जाने वाली प्रसिद्ध फसल है। [[भारत]] में लहसुन की खेती को ज्यादातर राज्यों में की जाती है लेकिन इसकी मुख्य रूप से खेती [[गुजरात]], [[मध्यप्रदेश]], [[उत्तर प्रदेश]], [[राजस्थान]] और [[तमिलनाडु]] में की जाती है। इसका 50 प्रतिशत से भी ज्यादा उत्पादन गुजरात और मध्यप्रदेश राज्यों में किया जाता है।
 
===भूमि===
लहसुन के लिए [[दोमट मिट्टी]] काफी उपयुक्त मानी गयी है। इसकी खेती रेतीली दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी में भी की जा सकती है। जिस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा होने के साथ-साथ जल निकास की अच्छे से व्यवस्था हो, वे इस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी गयी हैं। रेतीली या ढीली भूमि में इसके कंदों का समुचित विकास नहीं हो पाता है, जिस वजह से कम उपज हो पाती है।
 
===प्रजातियाँ ===
एग्रीफाउंड वाइट (जी. 41 ), यमुना वाइट (जी.1 ), यमुना वाइट (जी.50), जी.51 , जी.282 ,एग्रीफाउंड पार्वती (जी.313 ) और एच.जी.1 आदि।
 
=== खाद एवं उर्वरक ===
लहसुन को खाद एवं उर्वरकों की अधिक मात्रा में जरूरत होती है। इसलिए इसके लिए मिट्टी की अच्छे से जांच करवा कर किसी भी खाद व उर्वरक का उपयोग करना उचित माना गया है।
 
===बुवाई का सही समय===
इसकी बुवाई का सही समय उसके क्षेत्र, जगह व मिट्टी पर निर्भर करता है। इसकी पैदावार अच्छी करने के लिए उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर-नवम्बर माह सही है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च व अप्रैल के माह में करना उचित है।
 
=== सिंचाई ===
लहसुन की बुवाई के तुरन्त बाद ही पहली सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद करीब 10 से 15 दिनों के बाद सिंचाई करें। गर्मी के माह में हर सप्ताह इसकी सिंचाई करें। जब इसके शल्ककन्दों का निर्माण हो रहा हो उस समय फसल की सिंचाई सही से करें।
 
=== उपज===
लहसुन की फसल की उपज कई चीजों पर निर्भर करती है जिनमें मुख्य रूप से इसकी किस्म, भूमि की उर्वरा-शक्ति एवं फसल की देखरेख है। इसके साथ ही लम्बे दिनों वाली किस्में ज्यादा उपज देती हैं, जिसमें करीब प्रति हेक्टेयर से 100 से 200 क्विंटल तक उपज प्राप्त हो जाता है।


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१४:३०, ६ मार्च २०२२ के समय का अवतरण

साँचा:taxobox लहसुन (Garlic) प्याज कुल (एलिएसी) की एक प्रजाति है। इसका वैज्ञानिक नाम एलियम सैटिवुम एल है। इसके करीबी रिश्तेदारो में प्याज, इस शलोट और हरा प्याज़ शामिल हैं। लहसुन पुरातन काल से दोनों, पाक और औषधीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जा रहा है। इसकी एक खास गंध होती है, तथा स्वाद तीखा होता है जो पकाने से काफी हद तक बदल कर मृदुल हो जाता है। लहसुन की एक गाँठ (बल्ब), जिसे आगे कई मांसल पुथी (लौंग या फाँक) में विभाजित किया जा सकता इसके पौधे का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला भाग है। पुथी को बीज, उपभोग (कच्चे या पकाया) और औषधीय प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तियां, तना और फूलों का भी उपभोग किया जाता है आमतौर पर जब वो अपरिपक्व और नर्म होते हैं। इसका काग़ज़ी सुरक्षात्मक परत (छिलका) जो इसके विभिन्न भागों और गाँठ से जुडी़ जड़ों से जुडा़ रहता है, ही एकमात्र अखाद्य हिस्सा है। इसका इस्तेमाल गले तथा पेट सम्बन्धी बीमारियों में होता है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखे स्वाद और गंध के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे ऐलिसिन, ऐजोइन इत्यादि। लहसुन सर्वाधिक चीन में उत्पादित होता है उसके बाद भारत में।

लहसुन में रासायनिक तौर पर गंधक की अधिकता होती है। इसे पीसने पर ऐलिसिन नामक यौगिक प्राप्त होता है जो प्रतिजैविक विशेषताओं से भरा होता है। इसके अलावा इसमें प्रोटीन, एन्ज़ाइम तथा विटामिन बी, सैपोनिन, फ्लैवोनॉइड आदि पदार्थ पाये जाते हैं।

परिचय

लहसुन

आयुर्वेद और रसोई दोनों के दृष्टिकोण से लहसुन एक बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है। भारत का चीन के बाद विश्व में क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से दूसरा स्थान है जो क्रमशः 1.66 लाख हेक्टेयर और 8.34 लाख टन है। लहसुन में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्त्व पाये जाते है जिसमें प्रोटीन 6.3 प्रतिशत , वसा 0.1 प्रतिशत, कार्बोज 21 प्रतिशत, खनिज पदार्थ 1 प्रतिशत, चूना 0.3 प्रतिशत लोहा 1.3 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम होता है। इसके अतिरिक्त विटामिन ए, बी, सी एवं सल्फ्यूरिक एसिड विशेष मात्रा में पाई जाती है। इसमें पाये जाने वाले सल्फर के यौगिक ही इसके तीखे स्वाद और गंध के लिए उत्तरदायी होते हैं। इसमें पाए जाने वाले तत्वों में एक ऐलीसिन भी है जिसे एक अच्छे बैक्टीरिया-रोधक, फफूंद-रोधक एवं एंटी-ऑक्सीडेंट के रूप में जाना जाता है।

लहसुन एक बारहमासी फसल है जो मूल रूप से मध्य एशिया से आया है तथा जिसकी खेती अब दुनिया भर में होती है। घरेलू जरूरतों को पूरा करने के अलावा, भारत 17,852 मीट्रिक टन (जिसका मूल्य 3877 लाख रुपये हैं) का निर्यात करता है। पिछले 25 वर्षों में भारत में लहसुन का उत्पादन 2.16 से बढ़कर 8. 34 लाख टन हो गया है।

लहसुन की खेती

लहसुन एक दक्षिण यूरोप में उगाई जाने वाली प्रसिद्ध फसल है। भारत में लहसुन की खेती को ज्यादातर राज्यों में की जाती है लेकिन इसकी मुख्य रूप से खेती गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु में की जाती है। इसका 50 प्रतिशत से भी ज्यादा उत्पादन गुजरात और मध्यप्रदेश राज्यों में किया जाता है।

भूमि

लहसुन के लिए दोमट मिट्टी काफी उपयुक्त मानी गयी है। इसकी खेती रेतीली दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी में भी की जा सकती है। जिस मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा होने के साथ-साथ जल निकास की अच्छे से व्यवस्था हो, वे इस फसल के लिए सर्वोत्तम मानी गयी हैं। रेतीली या ढीली भूमि में इसके कंदों का समुचित विकास नहीं हो पाता है, जिस वजह से कम उपज हो पाती है।

प्रजातियाँ

एग्रीफाउंड वाइट (जी. 41 ), यमुना वाइट (जी.1 ), यमुना वाइट (जी.50), जी.51 , जी.282 ,एग्रीफाउंड पार्वती (जी.313 ) और एच.जी.1 आदि।

खाद एवं उर्वरक

लहसुन को खाद एवं उर्वरकों की अधिक मात्रा में जरूरत होती है। इसलिए इसके लिए मिट्टी की अच्छे से जांच करवा कर किसी भी खाद व उर्वरक का उपयोग करना उचित माना गया है।

बुवाई का सही समय

इसकी बुवाई का सही समय उसके क्षेत्र, जगह व मिट्टी पर निर्भर करता है। इसकी पैदावार अच्छी करने के लिए उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर-नवम्बर माह सही है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च व अप्रैल के माह में करना उचित है।

सिंचाई

लहसुन की बुवाई के तुरन्त बाद ही पहली सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद करीब 10 से 15 दिनों के बाद सिंचाई करें। गर्मी के माह में हर सप्ताह इसकी सिंचाई करें। जब इसके शल्ककन्दों का निर्माण हो रहा हो उस समय फसल की सिंचाई सही से करें।

उपज

लहसुन की फसल की उपज कई चीजों पर निर्भर करती है जिनमें मुख्य रूप से इसकी किस्म, भूमि की उर्वरा-शक्ति एवं फसल की देखरेख है। इसके साथ ही लम्बे दिनों वाली किस्में ज्यादा उपज देती हैं, जिसमें करीब प्रति हेक्टेयर से 100 से 200 क्विंटल तक उपज प्राप्त हो जाता है।

सन्दर्भ