"कुमाऊँनी होली" का अवतरण इतिहास

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  • सद्यपिछला ११:२८, २६ मार्च २०२१2402:8100:2158:e9ab:562b:3aee:d39:9ecf चर्चा १५,२६३ बाइट्स +१५,२६३ शशि भूषण मैठाणी पारस - एक समय ऐसा था जब पूरे पहाड़ में होली की एक समान परंपरा थी । होली महीनेभर का जश्न होता था पहाड़ वासियों के लिए । होली बड़े ही प्यार, आदर, सम्मान व बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त करने का पर्व था । एक ऋतु के आगमन दूसरी ऋतु के विदाई का पर्व भी होली को माना जाता है । समय बदलता गया, पहाड़ों से पलायन होता चला गया, गांव के गांव वीरान होते चले गए । और नब्बे के दशक तक आते-आते उत्तराखंड के एक हिस्से गढ़वाल मण्डल से करीब करीब होली का पर्व अपनी मूल परम्परा से पिछड़ते चला गया । इक्कसवीं स...