हौज़े शम्सी
1230 के आसपास की बात है । दिल्ली के सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमश परेशानी के आलम में टहल रहे थे। उनकी परेशानी का सबब था दिल्ली में पानी की किल्लत को कैसे दूर करे । सुल्तान तालाब बनवाने के लिए सही जगह की तलाश में थे। जावेद शाह की कलम से आगे पढ़िए सुल्तान की परेशानी कैसे दूर हुई और इस समस्या का निदान कब और कैसे हुआ।
हौज ऐ शम्सी की कहानी
सुल्तान अल्तमश से पूर्व हिंदुस्तान के सबसे पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक और उसके बेटे आराम शाह ने दिल्ली की बजाय लाहौर को राजधानी बनाया। इस कारण दिल्ली की पानी की समस्या बनी रही।
सुल्तान अल्तमश ने लाहौर की जगह दिल्ली को पसंद फरमाया । दिल्ली को राजधानी बनाया। आबादी भी तेजी से बढ़ने लगी। पानी की जरूरत पेश आने लगी।
मशहूर किताब 'दिल्ली के बाइस ख्वाजा' में हजरत कुतुबशाह रह0 को जीवनी में पेज नम्बर 67 पर हौज़े शम्सी का वाक्या दर्ज है और इब्नबतूता ने भी अपने सफ़रनामें में इसे विस्तार से लिखा है।
एक दिन सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमश ख्वाब में हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम की जियारत से मुशरफ हुए।
उन्होंने ख्वाब में देखा कि सरवरे क़ायनात बुराक़ (घोड़े) पर सवार है और एक मक़ाम पर जलवा अफ़रोज़ है
प्यारे नबी फरमाते है - ' ऐ शमसुद्दीन इस मुकाम पर हौज़ तैयार करवाना कि मख़लूक़ खुदा को फ़ायदा पहुंचे।'
सुल्तान अल्तमश ख्वाब से बेदार हुए। फ़ौरन अपने पीरो मुर्शिद ख्वाजा गरीब नवाज के लाडले कुतुबशाह रह0 को खबर कराई कि उसने एक ख्वाब देखा है और खिदमत में हाज़िर होने की इजाजत माँगी ।
कासिद हजरत कुतुबशाह के पास पहुंचा ।
हजरत कुतुबशाह रह0 ने जवाब में सुल्तान अल्तमश को कहला भेजा कि
-' माज़राए ख़्वाब मुझे मालूम है । मैं उस मुकाम पर जाता हूँ जहां रसूले खुदा प्यारे नबी हजरत मोहम्मद स0अ0स0 ने हौज तैयार कराने का हुक्म फरमाया है तुम जल्द मेरे बताये पते पर चले आओ।'
कासिद से जवाब पाकर सुल्तान अल्तमश बताई जगह पर पहुँचे ।
दिल्ली सुल्तान ने देखा कि हजरत कुतुबशाह रह0 नमाज अदा कर रहे है। जब आप नमाज से फारिग हुए तो सुल्तान शमसुद्दीन आदाब बजा लाया।
उन्होंने ख्वाब में जिस जगह सरवरे आलम को ख्वाब में देखा था । उसी जगह घोड़े के सुम ( खुर ) के निशान पाये । एक चटटान से पानी जारी था। उसी चट्टान पर 12 खम्बों से सजी हुई खूबसूरत छत्री का निर्माण करवाया। उसके चारों तरफ तालाब खुदवाया बनवाया ।
शमसुद्दीन के 'शम्स' लफ्ज़ से तालाब का नाम हौज़े शम्सी मशहूर हुआ। हौज का पानी पवित्र माना गया ।हौज बनने से दिल्ली में पानी की परेशानी दूर हो गई ।
इब्नबतूता का संस्मरण
मोरोक्को निवासी इब्नबतूता जब दिल्ली आया उसने हौज़े शम्सी का दीदार दिया । अपनी सफरनामे में इब्नबतूता ने हौज़े शम्सी की। खूबसूरती और विशालता से प्रभावित होकर लिखा है कि- 'शमसुद्दीन अल्तमश का बनवाया ये हौज नगर के लोगों की प्यास बुझाता है । नगर की ईदगाह भी इसके नजदीक बनी हुई है। इस हौज में बारिश का पानी भी भर जाता है । यह लगभग 2 मिल लम्बा और लगभग 1 मिल चौड़ा है । इसमें मगरिब की तरफ ईदगाह के सामने चबूतरों के आकार के घाट बने है। हर चबूतरे पर एक एक गुम्बद बना है ,जिसमें बैठकर जायरीन खूब सैर करते है। इस गुम्बद में एक मस्जिद भी है। जिसमें बहुत से साधु-फकीर पड़े रहते है। किनारे सुख जाने पर ककड़ी , कचरे ककड़ी ,तरबूज़ और खरबूज और गन्ने बो दिए जाते ।'
अन्य पर्यटन स्थल
इसके आसपास कई खूबसूरत इमारते बनी हुई है। मशहुर जहाज महल इसके किनारे पर ही बना है। कि पीर-फकीरों की मजारें इसके नजदीक है । हजरत मकदूम समाउद्दीन सोहरवर्दी रह0 की दरगाह के अलावा अन्य मक़बरे दर्शनीय है । फिरोज शाह तुगलक यहां से नहर बनवाकार पानी अपने शहर फिरोजबाद ले गया।
प्यारे नबी से जुड़ी हुई होने से लोग इसे पवित्र मानकर जियारत करने पहुँचते । नाव में बैठकर गुम्बद तक जाते।
बुराक़ वाली नाव
बर' के मायने बिजली है बुराक़ से अर्थ ऐसी सवारी जिसकी रफ्तार बिजली की तरह हो ।
कुछ बरसों पहले दिल्ली सरकार ने हौज शम्सी के अंदर एक बुराक़ की तस्वीर लगाई एक मोबाइल नम्बर दिया। डायल करने पर कुछ भी बोलने से बुराक़ पर लगी बिजली चमक उठती। लोग बुराक़ को देखने उमड़ पड़ते। बाद में सरकार ने इसे हटा दिया।
वर्तमान स्थिति
धीरे-धीरे हौज़े शम्सी सिकुड़ती गई।
बीचोबीच बना गुम्बद किनारे आ गया लोगों ने हौज पर कब्जे जमा लिए। नजदीकी कब्रस्तान भी सिकुड़ता गया और हौज़े शम्सी का जल देखभाल के अभाव में गंदा होने लगा।
संदर्भ
डॉ0 जहुरुलहसन शारिब की पुस्तक 'दिल्ली के बाईस ख़्वाजा' में पेज नम्बर 67 पर हौज़े शम्सी की उपरोक्त घटना का सम्पूर्ण विवरण दर्ज है। मोरोक्को निवासी ' इब्नबतूता की भारत यात्रा या चौहदवीं सदी का भारत' सफरनामे में पेज नम्बर 37 पर ये कथन दर्ज है। इसके लेखक जावेद शाह खजराना ने सभी तथ्यों को पढ़कर ,यूट्यूब, गूगल से जानकारी प्राप्त की है इसके अलावा ये स्मारक देखी भी है ।